योग, राम और मुस्लिम महिलाएँ

देश के निवासियों को निवासी ही मानें

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डॉ योगेन्द्र
मुजफ्फरपुर में आज तीसरा दिन है। तीन दिनों में तीन सुबह आयी और मैं शहर की तीन अलग-अलग गलियों में घूमता रहा। मन में एक आशा बँधी रही कि कहीं कोई पार्क या ख़ाली मैदान मिलेगा, जहाँ आराम से टहल सकूँगा। दो दिन तो सड़क पर ही चक्कर मारता रहा। आज जब हाथी चौक के पास पहुँचा तो एक बोर्ड पर लिखा था- जुब्बा साहनी पार्क। मैं उत्साह से उस ओर मुड़ गया, जिधर पार्क होने की उम्मीद थी। आगे बढ़ा तो मुजफ्फरपुर नगर निगम का कार्यालय था और सबसे मज़ा यह था कि निगम के आसपास ही गंदगी थी। थोड़ा आगे मुश्किल से सात-आठ सौ मीटर के पास जिला स्कूल का भवन दिखा। भवन बहुत भव्य है और बहुत बड़ा है। किसी भी प्राइवेट स्कूल के भवन से ही बेहतर है। यह स्कूल 1844 में बना है। यानी 180 वर्ष पूर्व। सामने मैदान है। इस मैदान पर जनता का बहुत दबाव है। सैकड़ों लोग टहलने, युवा पुलिस में भर्ती होने के लिए दौड़ लगाने और लोग योग शिविरों के लिए आते हैं। जब मैं वहाँ पहुँचा तो तीन अलग-अलग योग शिविर लगी थी जिसमें अस्सी प्रतिशत महिलाएँ थीं। महिलाओं में तीन बुर्क़ा पहने हुए थीं और माइक पर बज रहे राम राम की धुन भी गा रही थी। सहज ही विश्वास नहीं होता कि दोनों संप्रदाय को अलग करने की कितनी कोशिशें हो रही हैं, तब भी यह दृश्य देखने को मिले तो थोड़ी उम्मीद जगती है। देश के निवासियों को निवासी ही मानें। किसी के लिए भी दोयम दर्जे की श्रेणी न बनायें। जिस भी देश ने यह कोशिश की, वह तरक़्क़ी नहीं कर सका। पाकिस्तान हो या बांग्लादेश- दोनों में विकास की संभावना ख़त्म हो रही है, क्योंकि एक संप्रदाय दूसरे पर वर्चस्व क़ायम करता जा रहा है। वह निश्चित तौर से पतन की गर्त में जायेगा, अगर उसने अपने रास्ते नहीं बदले तो।
देश में भी कुछ लोगों को बहुत हड़बड़ी दिखती है। वे चाहते हैं कि इस देश को भी पाकिस्तान जैसा बना दिया जाए। पाकिस्तान इस्लामिक देश है। इस्लामिक बना देने के बाद कोई भी पाकिस्तानी यह दावा नहीं कर सकता कि इस देश में भूख, ग़रीबी, बेरोज़गारी, अशिक्षा, अंधविश्वास आदि सामाजिक बीमारियों से मुक्ति मिल गयी है। मनुष्य का जीवन को जिन बीमारियों ने ग्रास रखा है, हम उस ओर ध्यान नहीं दे रहे, बल्कि नये नये धार्मिक वितंडे खड़े कर रहे हैं। इससे कुर्सी पाने में तात्कालिक सुविधाएँ भले मिली हों, लेकिन इसकी बीमारी ख़त्म नहीं हो रही। राजनीति बुरी नहीं है, लेकिन निहित स्वार्थों के लिए इसका इस्तेमाल हो तो बहुत बुरी होती है। राजनेता को जबतक इसमें लाभ दिखेगा, वे ज़ोर लगाते रहेंगे और देश को जोखिम में डालते रहेंगे। फ़ैसला हमारे आपके हाथ में है कि हम क्या करें? हम सब के लिए कुर्सी प्यारी नहीं है, बल्कि हमारा देश प्यारा है। मन जब शांत रहता है तो नये नये सृजनात्मक विचार आते हैं। अशांत मन रचना नहीं कर सकता। उसी तरह अशांत देश तरक्की नहीं कर सकता। युक्रेन हो या रूस, फिलिस्तीन हो या इजराइल- वह विध्वंस के रास्ते पर है। हज़ारों वर्षों से यह देश सामाजिक गैर बराबरी की पीड़ा से उबर नहीं सका। इस देश की और पीड़ा न बढ़ायें।

Yoga, Ram and Muslim women
डॉ योगेन्द्र
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए The Dialogue उत्तरदायी नहीं है।)
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