डॉ योगेन्द्र
सुबह- सुबह ट्रक की आवाजाही से धूल उड़ रही थी। मैं सड़क के किनारे सोचते विचारते जा रहा था। धूल मेरी आदत हो गई है। हर रोज मुलाक़ात हो जाती है। कहना चाहिए कि मैं धूल का अभ्यस्त हो चुका हूँ। आदमी को पता नहीं चलता कि कब वह किस चीज का अभ्यस्त हो चुका है। अन्याय हो रहा है, पर अन्याय का अहसास नहीं होता। अहसास का खत्म होना बेहद खतरनाक है। अमेरिका के नायाब राष्ट्रपति हैं ट्रंप। उन्हें लगता है कि विश्व एक स्कूल है और उस स्कूल के वे हेडमास्टर हैं। वे कुछ भी कर सकते हैं। कभी कनाडा को मिलाने की बात करते हैं, कभी ईरान को धमकाते हैं। कभी आदमी को रस्से में बाँध कर देश से निकालते हैं, कभी टैरिफ बढ़ाने की बात करते है। वे तीसरे ट्रर्म के लिए अमेरिकी संविधान बदलने की भी बात करते हैं। उनके पास विकलांग, निर्धन और बूढ़ों के लिए कोई जगह नहीं है। उन्हें कल्याणकारी योजनाओं से सख्त नफरत है। उनकी छटपटाहट तीसरे विश्वयुद्ध की पूर्व पीठिका है। अमेरिका की आबादी है 34 करोड़। भारत की आबादी है एक अरब चौंतीस करोड़। आबादी में अमेरिका नहीं टिक पा रहा। लेकिन हमारे प्रधानमंत्री से उसने जबर्दस्ती ऐसे समझौते पर साइन करवा लिया जो हमारे देश के लिए हितकर नहीं है। वैसे ही ब्रिटेन एक छोटा देश था। भारत की आबादी के सामने वह कहीं से भी नहीं टिकता था, तब भी उसकी गुलामी हमने खटी। उस वक्त भी हमारे पास तैंतीस करोड़ देवी- देवताएं थे। किसी ने काम नहीं दिया। आज भी इतने देवी- देवताओं के रहते हत्या, बलात्कार, आत्महत्याएं आम हैं। किसी देवालय में कोई कंपन नहीं है। प्रधानमंत्री चंदन-टिक्का लगा कर मंदिर-मंदिर घूम रहे हैं। यह जानते हुए कि मंदिर- मस्जिद ज़िंदगी में खुशहाली नहीं ला सकते। हाँ, उन्हें गद्दी पर जरूर बनाए रख सकते हैं।
दरअसल अन्याय-न्याय का अहसास खत्म होना गुलाम बनने का संकेत है। सोमनाथ मंदिर को बार-बार लूटा गया। लुटेरों को न बीमारी हुई, न कोढ़ फूटी। वह मरा तो अपनी मौत मरा। आप अपना उपक्रम नहीं करेंगे, न नयी खोज और ज्ञान हासिल करेंगे तो आपको सड़क छाप गुंडा आपको धमकायेगा ही। कम आबादी वाले देशों में बार-बार बड़ी आबादी वाले देशों को न केवल धमकाया है, बल्कि शासन किया है। वर्षों बरस तक। हम आपस में उलझते रहे। आज भी हमारे सिर पर 205 लाख करोड़ का कर्जा है। 2014 में 55 लाख करोड़ था, जो दस वर्षों में बढ़कर 205 लाख करोड़ हो गया। यह किसने किया? जिनके लोग स्वदेशी जागरण आंदोलन कर रहे थे। सच यही है कि सत्ता चलाने का सउर नहीं है। अपने तो ठाठ बाट में रहेंगे। लेकिन दो पंक्ति शुद्ध नहीं लिख सकते, लेकिन बच्चों को परीक्षा कैसे पास करें, इस पर प्रवचन दे रहे हैं। झूठ बोलना जिसकी आदत हो। बात से पलट जाना जिसका स्वभाव हो, उससे देश के कल्याण के बारे में सोचना बताता है कि न्याय- अन्याय और सच- झूठ का अहसास नहीं है। जब हमारी चेतना कुंठित हो जाती है और दूसरों का उस पर कब्जा हो जाता है, तब उससे किसी तरह की उम्मीद करना व्यर्थ है। इतने बड़े देश में हम सब रहते हैं। सबकुछ है इस देश में, लेकिन स्वार्थी लोगों का आधिपत्य है और जनता अपने में खोयी हुई है।

(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)