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देश
महाकुम्भ! सरकार या सरोकार का?
महाकुम्भ का निमंत्रण सरकार बाँट रही है, समाज गौन हो चला है। हिन्दू समाज अगर संगम तट पर खड़ा होता तो समरसता का संगम होता।
महात्मा बुद्ध के विचारों को ‘आचार’ में लाना भी ज़रूरी
महात्मा बुद्ध के विचारों की बात करना ही पर्याप्त नहीं बल्कि इन्हें अपने 'आचार' व व्यवहार में लाना भी उतना ही ज़रूरी है।
सवालों के घेरे में हम आप भाजपा भी
राजनीति में दोहरे चरित्र का सम्बन्ध भाजपा से गहरा है क्योंकि अभी पूर्वांचलियों के हितैषी होने का दावा केवल यही कर रही है।
दिल्ली चुनाव का पूर्वी राग!
दिल्ली में रह रहे पूरे देश से आये हुए लोग भी पूर्वांचली के रूप में ही जाने जाते है। दिल्ली चुनाव में पूर्वांचल के लोग कितना प्रभावित करती है।
शीशे के दो घर और उछलते पत्थर
दिल्ली अब अपनी समस्याओं को भूल शीशमहल और राजमहल में उलझ गई है। अच्छा होता दोनों महल की सच्चाई देश के सामने रख देते।
सोने का शौचालय!
मोदीजी ने सोने का शौचालय खोज निकाला है। उन्होंने ही देश को सूचना दी है कि दिल्ली में सोने का शौचालय है।
कलम चाह ले तो सियासत को पछाड़ सकती है
आज के अधिकांश कलमकार समझौतावादी बन चुके हैं। उनकी कलम शोषितों-पीडितों की पीड़ा को अब आवाज नहीं देती।
महिला सम्मान की उम्मीद और इनसे?
अवसरवादी व सत्ता लोभी राजनीतिज्ञों से महिला सम्मान की उम्मीद करना अपने को धोखे में रखने जैसा है।
आपदा और विपदा के बीच दिल्ली का चुनाव
भीषण शीतलहर के बीच दिल्ली चुनाव की तिथि की घोषणा हो चुकी है। पांच को मतदान और आठ को परिणाम आएंगे।
बिधूड़ीयों के राज में हम सब
इच्छाओं और आकांक्षाओं में लिपटी हमारी चेतना को पता ही नहीं चलता कि कब हमारा शिकार हो गया। उस पर बिधूड़ी जैसे लोगों का राज।