यह असली धर्मनिरपेक्षता नहीं है
धर्मनिरपेक्ष राज्य धर्म को राजसत्ता से पूर्ण रूप से अलग रखता है
ब्रह्मानंद ठाकुर
पिछले दिनों पटना के बापू सभागार में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जन्म जयंती पर एक समारोह आयोजित था। समारोह में भोजपुरी गायिका देवी गईं हुई थीं। उन्होंने जब लक्ष्मणाचार्य द्वारा रचित, विष्णु दिगम्बर पुलुस्कर द्वारा संगीतबद्ध किया हुआ महात्मा गांधी का प्रिय भजन, रघुपति राघव राजा राम गाया तो बबाल मच गया। देवी को माफी मांगनी पड़ी। इस घटना पर बिहार के लेखक, कवि और रंगकर्मियों ने कड़ा विरोध जताया है। इसे धर्मनिरपेक्षता की मूल भावना पर हमला कहा जा रहा है। ऐसे समय में असली धर्मनिरपेक्षता क्या है, यह जानना जरूरी है। बिना इसके असली मर्म को जाने सामाजिक एकता, आपसी भाईचारा और सामाजिक सद्भाव की कल्पना को साकार नहीं किया जा सकता है।
धर्मनिरपेक्षता का सही अर्थ है किसी भी अलौकिक सत्ता को मान्यता न देना। एक सच्चा धर्मनिरपेक्ष राज्य धर्म को राजसत्ता से पूर्ण रूप से अलग रखता है। धर्म मनुष्य का व्यक्तिगत मामला होता है। किसी के धर्म में दखल न देना या किसी की धार्मिक भावना को ठेस न पहुंचाना अलग होता है और किसी की धार्मिक मान्यता को प्रोत्साहित करना, उसे तरजीह देना अलग बात। एक सही धर्मनिरपेक्ष राज्य का काम है कि वह न तो किसी प्रकार के धार्मिक विश्वास को प्रोत्साहित करेगा और न तो किसी के धार्मिक विश्वास का विरोध करेंगा। सरकार द्वारा सभी धर्मों को समान रूप से प्रोत्साहित करना भी सही धर्मनिरपेक्षता नहीं है। दुर्भाग्यवश हमारे देश में धर्मनिरपेक्षता की ऐसी अवधारणा पैदा हूई है
जिसका मायने ही है सभी धर्मों को प्रोत्साहित करना। यहीं वजह है कि आज धर्मांधता को बढ़ावा मिल रहा है। धर्मनिरपेक्षता की सही समझ विकसित करने का काम स्कूली शिक्षा से ही शुरू की जानी चाहिए। इसके लिए शिक्षा व्यवस्था को धार्मिक प्रभाव से मुक्त रखना होगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। शिक्षा को धर्म के प्रभाव से मुक्त करने के बजाय शिक्षा व्यवस्था में धर्म का घुसपैठ हो गया है। अब तो धार्मिक शिक्षा को विभिन्न स्तरों के पाठ्यक्रम में शामिल भी कर लिया गया है। इसी का परिणाम है कि आज संकीर्णता, साम्प्रदायिकता और जातिवाद का विकास बड़ी तेजी से होने लगा है। देश में प्रतिक्रियावादी ताकतें मजबूत हुई हैं। यह अकारण नहीं है। आजादी के बाद सामंतवाद और साम्राज्यवाद से समझौता कर जो वर्ग देश की राजसत्ता पर काबिज हुआ उसने समाज के जनवादीकरण के लिए सामाजिक, सांस्कृतिक क्रांति के महत्वपूर्ण कार्य नहीं किए। ऐसा उन्होंने अपने वर्ग हित में किया। यही वजह है कि हम आज भी धर्म, भाषा, नस्ल और जाति के आधार पर आपस में बंटे हुए हैं।
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)