नवम्बर क्रांति, जिसने सोवियत संघ के महिलाओं की दशा बदल दी

नवम्बर क्रांति के बाद सोवियत संघ ने वेश्यावृत्ति को जड़ से उखाड़ फेंका

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ब्रह्मानंद ठाकुर

जार के रूस में वेश्यावृत्ति को कानूनी मान्यता मिली हुई थी। देह व्यापार करने वाली महिलाओं को शासन की ओर से पीला कार्ड मिलता था। एक बार जिनको पीला कार्ड मिल गया, उनको कभी वेश्यावृत्ति से छुटकारा नहीं मिलता था। नवम्बर क्रांति के बाद सोवियत संघ ने वेश्यावृत्ति को समूल उखाड़ फेंका। यह काम कानून बनाकर या फिर पुलिस-फौज के सहारे नहीं किया गया। यह काम हुआ सोवियत संघ की महिलाओं की आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित कर और उनको सम्पूर्ण स्वतंत्रता देकर।
इस बारे में महान साहित्यकार रामवृक्ष बेनीपुरी लिखते हैं:
नवम्बर क्रांति के बाद सोवियत संघ में स्त्रीत्व ने एक नये संसार में प्रवेश किया है। सोवियत नारियां पुरुषों के साथ एक नई समानता का उपयोग करती है। चाहे वह किसी भी क्षेत्र में हों, अपना कीर्तिमान स्थापित करने में वे पुरुषों से पीछे नहीं हैं। यह मुक्ति उन्हें मुफ्त में नहीं मिली। इसके लिए उन्हें बड़ा कठोर संघर्ष करना पड़ा। युगों-युगों से रूस की महिलाएं गुलामी की बेड़ियों में जकड़ी हुई थीं। ईसा मसीह की पवित्र वेदी को छूने तक का उनको अधिकार नहीं था। शादी के समय पुरुष सोने की अंगूठी के हकदार होते थे। महिलाओं को लोहे की अंगूठी से ही संतोष करना पड़ता था। तब रूस के पोप ने फरमान जारी किया था —
‘औरतें मर्दों की व्यक्तिगत सम्पत्ति है।’ अगर कोई स्त्री अपने पति की बात नहीं मानती तो उसे कोड़े से पीटा जाता था। लेकिन इतना उत्पीड़न सहने के बाबजूद रूस की महिलाओं ने अपने भीतर छिपी मानवीय संवेदना को मरने नहीं दिया। जारशाही के विरुद्ध जब वहां की जनता में विद्रोह पैदा हुआ तो असंख्य पति परायण स्त्रियों ने अपना घर, वैभव -विलास और बच्चों का मोह त्याग कर साइबेरिया के संकटों को हंसते-हंसते झेला। जिस समय रूस में गृह युद्ध जारी था, वहां की महिलाओं ने अपने नाम सिपाही में लिखवाए। घुड़सवारी की। मशीनें चलाईं।
जब कार्निलोव अपनी विशाल फौज लिए लेनिनग्राड की और दौड़ा चला आ रहा था, दो लाख स्त्रियां युद्ध के मोर्चे पर आ डटी थीं। यह था उनका त्याग। यह थी उनकी वीरता और शौर्य! सोवियत संघ में समाजवादी सरकार के गठन के बाद जब संविधान का निर्माण हुआ तब आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक क्षेत्र में वहां की महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार दिए गए। बड़ी बात यह हुई कि उत्पादन और सामाजिक क्रिया कलापों में संलग्न महिला कामगारों के लिए किंडरगार्टन और नर्सरी स्थापित किए गए जहां काम पर जाती हुई महिलाएं अपने बच्चों को रख कर जा सकती थी। 1937 में वहां ऐसे 16लाख बच्चों को रखने की व्यवस्था थी। महिलाओं को उसकी क्षमता से अधिक काम लेने की सख्त मनाही थी। काम 7 घंटा प्रतिदिन निर्धारित किया गया। जारशाही रूस में जहां रेलवे में महिलाओं को बहाल करने पर प्रतिबंध था, वहां क्रांति के बाद सोवियत संघ ने इसमें भारी बदलाव किया। रेलवे, उद्योग, कल-कारखानों एवं तकनीकी संस्थानों में बड़ी संख्या में महिलाओं को बहाल किया गया। अपनी क्षमता के बल पर कोई भी महिला सोवियत संस्था का मैनेजर बन सकती थी। इस तरह शिक्षा और आर्थिक आत्मनिर्भरता ने नवम्बर क्रांति के बाद सोवियत संघ के महिलाओं की दशा और दिशा दोनों बदल गई।

 

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ब्रह्मानंद ठाकुर
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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