कितने पाकिस्तान

धार्मिक समारोह में अहंकार

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डॉ योगेन्द्र

लगता नहीं है कि सूर्य की उपासना हो रही है। इतने पटाखे छूट रहे हैं कि लगता है कि दिवाली लौट आयी है। पटाखों से सूर्य उपासना में कोई अंतर नहीं पड़ता! खैर। सब्र क्यों हो? जब पैसा है। बाजार है। अहंकार है और नासमझी है तो डर किस बात का? पर्यावरण रहे या जाए, मुझे मस्त रहना है। धार्मिक समारोहों में अहंकार का महत्व बहुत बढ़ गया है। पटना स्टेशन से उतरिए तो हनुमान मंदिर है। कुछ दूरी पर मस्जिद है। दोनों में प्रतियोगिता है। एक की ऊंचाई बढ़ती है तो दूसरी भी ऊंची हो जाती है। दोनों के भक्त अपने-अपने ईश्वर को एक दूसरे का प्रतियोगी बना दिया है। मूर्खता वहीं नहीं है। हमारे जीवन में वह दम खम से प्रवेश कर गया है। हमने इतिहास से कुछ नहीं सीखा। राही मासूम रज़ा के उपन्यास ‘आधा गांव‘ में विभाजन के समय का वर्णन है। अलीगढ़ से एक मुस्लिम लीग का कार्यकर्ता गंगौली पहुंचता है। आधा गांव के केंद्र में यही गंगौली है। गांव के लोग पूछते हैं कि अगर पाकिस्तान बन गया तो अलीगढ़ विश्वविद्यालय कहां रहेगा? कार्यकर्ता कहता है कि वह तो मुस्लिमों का मीनार है, वह पाकिस्तान में रहेगा और अगर भारत सरकार ने अलीगढ़ विश्वविद्यालय पाकिस्तान को नहीं दिया तो पाकिस्तान की हुकूमत भारत पर हमला कर उसे पाकिस्तान में मिला लेगी। कितनी बड़ी बेवकूफियों का प्रचार कर पाकिस्तान बनाया जा रहा था? अलीगढ़ कहां, पाकिस्तान कहां? इस पर तुर्रा यह कि पाकिस्तानी हुकूमत अलीगढ़ विश्वविद्यालय पर हमला कर देगी, यह समझ और दुष्प्रचार देश को दो हिस्सों में बांट दिया।
बेवकूफियां यहीं नहीं थीं। जिन्ना और सावरकर ने द्विराष्ट्र का सिद्धांत गढ़ा। हिन्दू और मुस्लिम दो राष्ट्र हैं। सुन कर भी अजीब लगता है। दो धर्म है, यह तो समझ में आता है, लेकिन दोनों दो राष्ट्र हैं, इसलिए साथ नहीं रह सकते, यह कितना शातिराना तर्क है! इस तर्क के सहारे दो भागों में हम विभाजित हुए। बात खत्म नहीं हुई है। जब मंच से एक संप्रदाय को टारगेट कर कहा जाता है कि वह मंगलसूत्र छीन लेगा या तुम्हारी बेटी उठा कर ले जायेगा तो हम फिर उसी कलंकित रास्ते पर हैं, जिसने देश को विखंडित किया। जिन्ना ने एक देश‌ बनाया। सावरकर नहीं बना सके। अब वे देश के अंदर एक और देश बनाना चाहते हैं। मन अभी भरा नहीं। विभाजन पर लिखे उपन्यास पढ़ लें तो पता चलता है कि दोनों संप्रदायों की बेटियों के साथ क्या-क्या हुआ? इतिहास कोई शव नहीं है। वह एक स्मृति है और स्मृतियों को समझ बूझकर छेड़ना चाहिए, नहीं तो वह पलटवार करती हैं। जिन्ना पहले धर्मनिरपेक्षता के पक्षधर थे। वे न नमाज पढ़ते थे, न मस्जिद जाते थे। वे उन चीजों का सेवन करते थे, जिनका इस्लाम में मनाही थी, लेकिन जब कट्टरता की राह उन्होंने अपनायी तो एक मुल्क बना दिया। विभाजन के उस कलंक से दोनों मुल्क उबर नहीं पाया। आये दिन दोनों की सरहद पर गोलीबारी होती है और हमारे और उनके सैनिक मारे जाते हैं। यहां तक कि दोनों देशों की राजनीति में वह जहर घुला हुआ है। इसलिए हुजूर लोगों से निवेदन है कि आप संभलकर चलिए। आपके कंधों का दायित्व बहुत बड़ा है। इतिहास विभाजन कारियों को माफ नहीं करता। कमलेश्वर के ‘कितने पाकिस्तान‘ पढ़ लीजिए।

 

Kitne-Pakistan
डॉ योगेन्द्र
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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