सम्पूर्ण क्रांति और सम्पूर्ण कर्मकांड

आज लोकनायक जयप्रकाश और अमिताभ बच्चन का आज जन्मदिन है

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बाबा विजयेन्द्र

लोकनायक को याद करूँ या सदी के महानायक को याद करूँ? आज लोकनायक जयप्रकाश और अमिताभ बच्चन का आज जन्मदिन है। आज जन्मदिन नानाजी देशमुख का भी है। यहाँ कौन बेहतर और कौन कमतर का प्रश्न नहीं है। प्रश्न प्रतिबद्धता का है। वर्तमान के जो सुलगते सवाल हैं इनका उत्तर कैसे और किस तरह दिया जाए,सवाल इसका है।

‘कौन बनेगा करोड़पति’ इस वक्त की जरुरत नहीं है। इस वक्त की जरुरत है ‘कौन बनेगा क्रांतिकारी’ की ? देश और दुनिया में जो परिवर्तनकारी शक्तियां शेष हैं ये लोकनायक को ही याद करेंगे। ग्यारह अक्टूबर लोकनायक का या सदी के महानायक का? बाजार महानायक के साथ खड़ा है। बाजार को क्या मतलब है किसी क्रांति से ? बाजार को मूवमेंट नहीं,मुनाफा चाहिए। सम्पूर्ण क्रांति से बाजार पोषित नहीं होगा। सम्पूर्ण क्रांति की समता बाजार के खिलाफ है। यह एकीकृत पूंजीवाद के खिलाफ है। बाजार को अभिकर्ता चाहिए। बाजार के उत्पाद का प्रमोटर चाहिए।

अमिताभ सहायक बने हुए हैं बाजार का नमक तेल बेचने में। जेपी की भी नोन-तेल की चिंता है कि किस तरह यह लोगों को सुलभ हो। कैसे भूखमुक्त भारत बन सके। इस कारण बाजार और बाजार पोषित मीडिया का अमिताभ जैसे सेलेब्रेटी के साथ खड़ा होना लाजमी है। बड़ी साजिश है कि यह तिथि अमिताभ की तिथि हो जाय, जय प्रकाश की नहीं। प्रतीक पॉलिटिल्स के अपने निहितार्थ होते हैं। एक षड्यंत्र के तहत इतिहास मिटाने की साजिशें हो रही हैं। 6 दिसंबर की तिथि ‘बाबरी ध्वंस’ से जुड़ेगी न कि बाबासाहेब की पुण्य तिथि से। बुद्ध पूर्णिमा के दिन एटम बम का विस्फोट किया गया। इसके लिए दूसरी तिथि भी निर्धारित की जा सकती थी। काली जयंती और हनुमान जयंती को अणु बम विस्फोट किया जा सकता था पर नहीं किया गया क्योंकि बुद्ध को समाप्त करना था। समता और ममता को खत्म करना था इसलिए बुद्ध पूर्णिमा निश्चित की गयी। लोकनायक को इनके चेले ने जहाँ पहुंचाया यह भी कम विसंगतिपूर्ण नहीं है। बात साफ़ है यथास्थितिवाद के पक्ष में हर तरफ मोर्चे खुले हुए हैं। नए नैरेटिव्ज़ गढ़ने की असंख्य तैयारियां हो रही हैं।

‘अँधेरे के तीन प्रकाश, गाँधी, लोहिया, जय प्रकाश’ का नारा कब तक चलेगा? ये लोग अपने समय के सवालों का अपने तरीके से समाधान दे रहे थे। समय बदल गया है। सवाल भी बदल गए हैं तो समाधान भी बदलना चाहिए। युद्ध अगर नया हो तो औजार भी हमारा नया हो। नए युद्ध का मुकाबला हम पुराने औजार से नहीं कर सकते हैं। इसलिए हमें दुहराव से बचना चाहिए। किसी भी महानायक को नकारने की बात नहीं कर रहा हूँ। इनसे प्रेरणा ली जा सकती है पर इनकी नक़ल नहीं की जा सकती है। हमें अब लोकनायक प्लस की बात सोचनी चाहिए। क्रांति को भ्रान्ति समझने या भ्रान्ति को क्रांति समझने की जल्दीबाजी नहीं होनी चाहिए। हर पुराना विचार अगर नहीं मरता है तो नया विचार पैदा नहीं होगा। वृक्ष की पुरानी पत्तियां अगर नहीं झड़ेगी तो नए किसलय कैसे निकलेंगें? अगर पत्तियां नहीं झड़ती है तो वह निर्जीव है, प्लास्टिक का है। सभ्यता को मरना सीखना होगा तभी नहीं सभ्यता का जन्म होगा। ज्ञान का सम्बन्ध नक़ल से नही है, ज्ञान कभी लोकतान्त्रिक नहीं होता। यह राजमार्ग पर भी नहीं चलता। यह नयी पगडण्डी पर चलता है और नया रास्ता निर्मित करता है। इसमें खतरा बहुत है बावजूद इसके अलावे कोई विकल्प नहीं है। नए रास्ते की तलाश जरूरी है।

सम्पूर्ण क्रांति, सप्त क्रांति या समग्र क्रांति की जरूरत नहीं है। हमें नयी क्रांति की कहानी लिखनी होगी। नए किरदार खोजने होंगें ? आंदोलन की मौतें बहुत हुई हैं। पर मर्सिया पढ़ने की भी जरुरत नहीं है। यह होगा और होता रहेगा। चिंता स्वयं की भूमिका की होनी चाहिए। हमारे पुरखों ने जैसी भी विरासत हमें सौंपी है उसे और बेहतर बनाया जा सकता है आने वाली पीढ़ी के लिए। पुरखों ने गलती की तो की। कितना कोसते रहोगे ? इसे विसारना चाहिए और आगे की सुधि लेनी चाहिए। सौ वर्ष और लोकनायक को याद कर लेंगें तो भी कुछ नहीं होगा। याद तो पचास साल से कर ही रहे हैं ,क्या परिणाम निकला ? सच यही है कि जेपी को नकारने वाले ही जेपी को ज्यादा याद करते हैं। याद करने के बजाय हम ही क्यों नहीं जेपी बन जा रहे हैं ? अधूरी क्या, हम तो आंशिक क्रांति करने की स्थिति में भी नहीं हैं। अब याद करने का तरीका भी बदलना चाहिए। अन्यथा सम्पूर्ण क्रांति केवल सम्पूर्ण कर्मकांड बनकर रह जाएगी।

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