धारा 370 और रणबीर संहिता

धारा 370 का विरोध करने वाले और समर्थन करने वाले दोनों ही नासमझी के शिकार

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बाबा विजयेन्द्र
जम्मू कश्मीर की नवोदित विधान सभा में लात-घूंसों का जो नवाचार हुआ वह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। वर्षों बाद यहाँ लोकतान्त्रिक तरीके से चुनाव सम्पान हुआ। उम्मीद यही थी कि जो जनप्रतिनिधि चुनकर आएंगे वे लोकतान्त्रिक मूल्यों को जीएंगें और जिन्दा रखेंगे। इस सदन में अगर लोकतान्त्रिक आचरण घटित हुआ होता तो यहाँ के समाज में भी लोकतंत्र के प्रति सम्मान बढ़ता, पर ऐसा नहीं हुआ। जैसा यह राजा है, वैसी ही कश्मीर की प्रजा भी होगी? नेताओं के जीवन में जब लोकतान्त्रिक आचरण नहीं होगा तो वे बाहर के लोकतंत्र को कैसे मजबूत करेंगें? विधानसभा में धारा 370 को लेकर जो घटना घटी ऐसा प्रतीत हुआ कि सभी नेता मिलकर कश्मीर में अराजकता पैदा करना चाहते हैं। ये लोग ही हैं जो अतिवाद को बढ़ावा दे रहे हैं। यहाँ की विधान सभा में जो हुआ इससे यह उम्मीद नहीं की जा सकती है कि कश्मीर में जल्दी अमन चैन बहाल हो पायेगा।

क्या हुआ यहाँ? क्यों हुई मारपीट? बस एक ही कारण था धारा 370 की वापसी। जम्मू कश्मीर सरकार की सहयोगी पार्टियों ने मिलजुल कर इस प्रस्ताव को पटल पर रखा। प्रस्ताव रखने वाले को भी पता था कि यह धारा अब इतिहास है। यह अब किसी भी स्थिति में देश का वर्तमान नहीं हो सकती। देश की सर्वोच्च संस्था ने इसे कानूनी दर्जा दे दिया है। इसकी वापसी अब असंभव है। यह तभी संभव है जब केंद्र की सरकार बदल जाय और दो तिहाई बहुमत से इसकी वापसी का क़ानून बनाये? पर यह होता हुआ नहीं दिख रहा है। सच यही है कि ये सारे नेता कश्मीर की आम जनता को बेवकूफ बना रहे हैं। केवल अहंकार सहलाने का काम हो रहा है। जनता के सामने सच कहने की इनकी हिम्मत नहीं है कि यह 370 फिर वापस नहीं हो सकता है। नेता होना और इनका सच बोलना यह अप्रत्याशित है। खबर इनकी झूठ नहीं बनती। कोई नेता अगर भूल से भी सच बोल दे तो, वह ही खबर होती है। एक विधायक 370 वापस लाओ वाला पोस्टर लेकर सदन आये। इसे देखते ही भाजपा भड़क गयी। भाजपा विधायक बेल में आ गए और लात घूंसे के खेल में शामिल हो गए। मार्शल न होते तो शायद हिंसक अतिवाद का नजारा देखने को मिलता? तब सड़क और सदन एक नजर आती यहाँ।

विरोध करने वाले और इस धारा का समर्थन करने वाले दोनों ही नासमझी के शिकार हैं। कोई यहाँ की रणबीर संहिता पर बात नहीं करना चाहता? 1932 में बनी यह संहिता यहाँ लागू थी। इस संहिता की अपनी कुछ विशेषता भी रही है। इस संहिता में यह प्रावधान था कि जो गोहत्या करेगा उसे फांसी की सजा होगी। 370 के कारण यह संहिता यहाँ सुरक्षित थी। मुस्लिम बहुल होने के बावजूद यहाँ गोहत्या पर सम्पूर्ण प्रतिबन्ध था। इस गोभक्त सरकार ने थोड़ी जल्दीबाजी कर दी। इसे हटाने के कारण हिन्दू हित भी प्रभावित हुए हैं। अब देश के हिन्दू भी इसे रिटेन करने की बात करने लगे हैं। हमेशा हिन्दू मुसलमान करने से भी बात नहीं बनेगी, देश तो संविधान के आधार पर ही चलेगा। संविधान को शरीयत और मनुस्मृति से क्या मतलब है? भाजपा ने धारा 370 हटाकर संविधान को मजबूती दी है। इसके लिए शुभकामनाएं। लेकिन निराई गुड़ाई के वक्त यह ख्याल रखना चाहिए कि औषधीय पौधों की क्षति न हो जाय। शायद 370 हटाने के बाद इस क्षति पर चर्चा ठीक से नहीं हुई जिसकी जरुरत थी।

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