डॉ योगेन्द्र
मैं गंगोत्री में था। गंगा सामने बह रही थी। जल इतना ठंडा था कि कोई पाँच सेकंड भी खड़ा नहीं हो सकता था। लेकिन लोग किसी तरह पत्थरों पर बैठते और लोटे या मग से देह पर जल उड़ेलते। जल सिर से पाँव तक कंपकंपाता हुआ फिर महान नदी में मिल जाता। मैंने भी सोचा कि पता नहीं, फिर गंगोत्री आना हो या न हो, एक बार स्नान तो कर ही लिया जाय। भागलपुर में पास ही गंगा बहती है, लेकिन उसे देख कर कभी स्नान करने की इच्छा नहीं हुई। पानी ऐसा मटमैला या काई भरा कि उसमें स्नान करने की इच्छा मर जाती है। गंगोत्री को देख कर स्नान करने की इच्छा बलवती हुई और कपड़े उतार कर मैं पत्थर पर बैठ गया और मग से जल देह पर डाला। जल इतना ठंडा था कि देह में थरथरी घुस गयी। लेकिन सचमुच आनंद आया। गंगा किनारे बसने वाले लोगों का दुर्भाग्य यह है कि अब भागलपुर हो या बनारस-गंगोत्री की एक बूँद जल भी वहाँ नहीं पहुँचता। आधे से ज़्यादा दिल्ली पहुँचता है और जो बचता है, वह नरौरा जाते-जाते ख़त्म हो जाता है। उसके बाद जो पानी है, वह या तो सहायक नदियों का है या फिर शहरों के नालों का। गंगा के मुँह को टिहरी बांध ने बांध दिया है और पूछ को फ़रक्का बराज ने। गंगा दोनों के बीच दम तोड़ रही है।
गंगा जब गंगोत्री की ओर से उतरती है तो पूरी की पूरी टिहरी में समा जाती है। टिहरी बांध क़रीब 47 किलोमीटर का है। बाँध के किस्से फिर कभी कहे जायेंगे, लेकिन इतना भर जान लें कि हिमालय कच्चा पहाड़ है। इसके जल को जो रोका गया है तो यह जल पहाड़ों में समाता है और इसका बहुत ही बुरा असर पड़ रहा है। वैज्ञानिकों, स्थानीय निवासियों और पर्यावरणविदों ने लाख समझाया, आंदोलन भी हुआ, लेकिन अटल सरकार अटल रही और टिहरी बाँध बना। जब मैं गंगोत्री गया था तो रास्ते में बहुत से पुराने पेड़ों पर चिह्न लगा दिये गये थे, क्योंकि डबल लेन बनना था। प्रकृति हमारी चेरी नहीं है, लेकिन हम सबने उसे चेरी ही समझा है।
गंगा को कोई राजीव एक्शन प्लान या नमामि गंगे कुछ नहीं कर सकता। ज़्यादातर सरकारी आवंटन में महान लुटेरों को फ़ायदा होता है और नेताओं के अहंकार की तुष्टि होती है। इनकी कुल समझ यह है कि घाट चमकाओ, आरती दिखाओ, शहरों के गंदे जल को साफ़ करने की अनमने ढंग से प्रयत्न करो। बस। हम मूलभूत ढंग से सोच ही नहीं सकते। हम गंगा को जगह-जगह बांध रहे हैं। इसकी अविरलता को बाधित कर रहे हैं और बैठे-बैठे सोचते हैं कि वह साफ़ हो जायेगी। गंगा या किसी भी नदी को बचाना है तो उसके बहाव को रोकने वाली तमाम बाधाओं को ख़त्म करना होगा। कई अमीर देशों ने अपनी नदियों पर जो बांध बनाये थे, उसे तोड़ दिया। हम तो नक़लची हैं। दूसरे देशों की सड़ी गली तकनीक को अपने यहाँ लाते हैं। कम से कम बांध तोड़ने की ज़रूरतों को तो हम समझें। गंगा सिल्ट यानी गाद से भर गयी है। वजह दो हैं- एक हिमालय के क्षेत्र में हम पेड़ों पर टूट पड़े हैं और दूसरी, फ़रक्का बराज जिसने सिल्ट को रोक रखा है। देश के प्रधानमंत्री से लेकर समाज के लोग यह बात जानते हैं, लेकिन करेंगे कुछ नहीं। गंगा को बचाना है तो आज न कल फ़रक्का बराज को तोड़ना ज़रूरी है।
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)