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झारखंड
नव वर्ष, आदिवासियत और उलटबाँसी
नव वर्ष में क्या हिन्दू, क्या मुसलमान- सभी जश्न मनाने निकल पड़ते। कुछ लोग लिख रहे हैं कि यह नव वर्ष ईसाइयों का है।
ईसा, प्रकृति और तथाकथित संन्यासी
ईसा मसीह माफ करना जानते थे। यहाँ अक्सर धर्म को जानने का दावा करने वाले तथाकथित संन्यासी पाखंड परोसते रहते हैं।
मांदर, पुटुस के फूल और भूमिज आदिवासी
गाँव में ग़रीबी है, मगर वहां के लोग पुटुस के फुल जैसे खिले हुए और वो गावं भूमिज आदिवासियों का बाहुल्य है।
स्वर्णरेखा, खड़कई नदी और जमशेदजी टाटा
जमशेदपुर स्वर्णरेखा और खड़कई नदी के किनारे दलमा पहाड़ियों से घिरा हुआ है। जमशेदजी नौसरवानजी टाटा ने जमशेदपुर शहर को बसाया।
विश्वविद्यालय की सैर
हज़ारीबाग़ पहुँचा तो शिक्षकों से पता चला कि दो वर्ष से विश्वविद्यालय में कोई रेगुलर कुलपति नहीं है जो चिंता का विषय है।
झारखण्ड में क्यों धराशाई हो गए नफ़रत फैलाने के विशेषज्ञ?
झारखण्ड वासियों की आपसी एकता के चलते नफ़रत फैलाने के विशेषज्ञ राज्य चुनावों में बुरी तरह धराशाई हो गए।
चुनाव के बाद आपका कर्तव्य
चुनाव के बाद सरकार अपना कर्तव्य भूलकर जब किसी पूँजीपति को बचाने में लग जाये, तो सोचना चाहिए कि लोकतंत्र का गला घोंटा जा रहा है।
सत्यार्थ यात्रा: पहला पड़ाव बालासोर
सुकांत ने गूगल की मदद से बालासोर को अपना पहला पड़ाव बनाया और अपनी अर्धांगिनी को लेकर वह “सत्यार्थ यात्रा” पर निकल पड़ा।
घुसपैठिया आया, घुसपैठिया आया
दस वर्षों से केंद्र में बीजेपी की सरकार है, तब भी घुसपैठ हो रहे हैं तो यह असफलता किसकी, केंद्र सरकार को बताना चाहिए।
सराय काले खां चौक का नाम अब बिरसा मुंडा चौक
राजधानी दिल्ली में दशकों पुराने सराय काले खां चौक का नाम बदल दिया है। अब नया नाम बिरसा मुंडा चौक रखा गया है।