डॉ योगेन्द्र
बीजेपी के सभी नेता- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, बीजेपी अध्यक्ष जे पी नड्डा, केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह, असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा ने जब भी कोई सभा या प्रेस सम्मेलन किया, तो यह ज़रूर कहा कि झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठिये हैं। अगर उनकी बात मान लें, तो प्रश्न है कि इसके लिए दोषी कौन है? क्या झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन है या प्रधानमंत्री सहित केंद्र सरकार है? क्या झारखंड के मुख्यमंत्री को सरहद की देखरेख की ज़िम्मेदारी है? क्या उनके पास ऐसा कोई अधिकार है कि बॉर्डर पर झारखंड की पुलिस लगा दी जाय? अगर बांग्लादेश से घुसपैठिए झारखंड में आये हैं, तो क्या सीमा पार कर ही आये हैं। इसका मतलब है कि सीमा की सुरक्षा ठीक से नहीं हो रही। जो जासूसी संस्थाएँ हैं, वे फ़ालतू हैं। घुसपैठ का कोई आधिकारिक डाटा हो, तो केंद्र सरकार को जारी करनी चाहिए। दस वर्षों से केंद्र में बीजेपी की सरकार है, तब भी घुसपैठ हो रहे हैं तो यह असफलता किसकी है? कभी-कभी गाँव में चोर भी भीड़ में शामिल होकर कहना शुरू कर देता है- चोर को पकड़ो। भारतीय लोकतंत्र का दुर्भाग्य है कि ज़िम्मेदार पदों पर बैठे लोग ग़लतबयानी करते रहते हैं और अपनी ग़लतियों को भी दूसरे के सिर मढ़ देते हैं।
बिहार में एकाध- दो वर्षों को छोड़कर बीजेपी का ही राज है। किशनगंज, अररिया और पूर्णिया तक देखिए तो लगता है कि बांग्लादेशी घुसपैठिए कुछ न कुछ ज़रूर है। पहले राजद या कांग्रेस का राज था तो अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के लोग अक्सर हल्ला करते थे। अब चुप हैं। जबकि केंद्र और राज्य दोनों में उनकी सरकार है। दरअसल हम सिर्फ़ नारे लगाते हैं। पब्लिक का ओपिनियन वोट के लिए बनाते हैं और फिर ढोरबा साँप बन जाते हैं। किसी भी दूसरे देश का नागरिक बिना इजाज़त के देश में रहें या प्रवेश करें, यह अब कहीं से ठीक नहीं लगता। वैसे धरती का जिस्म एक है। ग्लोबलाइज़ेशन के दौर में अगर यह भी हो जाता है कि कोई भी नागरिक विश्व के किसी भी कोने में धड़ल्ले से आ जा सकता है, तो बहुत अच्छा होता, लेकिन ग्लोबलाइज़ेशन तो एक व्यापार है और सभी सरकारें व्यापारी। जो मोल तोल करने में ज़्यादा सक्षम है, उसे उतना ही फ़ायदा है। वस्तुएँ यहाँ से वहाँ टहल्ला मार सकती हैं, सशरीर मनुष्य नहीं आ जा सकता। वैसे इंटरनेट और एआई ने बहुत दूर तक हस्तक्षेप किया है। तब भी लोगों का आवा-जाही तो संभव हुआ नहीं है। खैर। मैं यह कह रहा था कि हम अगर घुसपैठ पर गंभीर हैं तो चुनाव में वोट के लिए इसे मत उछालिए। अपनी-अपनी ज़िम्मेदारी स्वीकार कीजिए और इस पर क़ानून सम्मत कार्रवाई कीजिए। देश का बँटवारा एक भयानक ग़लती थी। जिन्ना और सावरकर ने हिन्दुओं और मुस्लिमों को दो देश कहा, क्योंकि दोनों के धर्म अलग थे। जिन्ना को पाकिस्तान मिल गया। फिर मुजीबुर्रहमान उठ खड़े हुए। उन्होंने कहा कि उर्दू बंगला को मार रही है। हमारी भाषा और संस्कृति अलग है और फिर पाकिस्तान का विभाजन हो गया। भारत के वे मुस्लिम जो उर्दू भाषी थे, पाकिस्तान बनने के बाद ढाका में या आसपास बसे। फिर वे छटपटाने लगे कि अरे, यह तो मेरी संस्कृति नहीं है। वे फिर वहाँ से उखड़े और कराची- रावलपिंडी पहुँच गये। भारत में भी मुस्लिम मलयालम, कन्नड़, बँगला, हिन्दी, तेलगू, तमिल आदि भाषाएँ बोलते हैं और उनमें ही जीते हैं। दरअसल, साथ रहने के भी बहुत बहाने हैं और अलग रहने के भी। यह आप पर निर्भर करता है कि आप किधर जाना चाहते हैं!
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)