घुन लगते समाज में लोकतंत्र

सवाल लोकतंत्र का

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डॉ योगेन्द्र
कल गणतंत्र दिवस था। आजादी पर तो सवाल मोहन भागवत ने उठा ही दिया है। अप्रत्यक्ष रूप से गणतंत्र दिवस और संविधान पर भी उन्होंने सवाल किया है। जब आजादी ही नहीं मिली तो उसके बाद संविधान क्या, गणतंत्र किया? मैं सेवानिवृत्त हो चुका हूँ। जब मैं सेवा में था तो अपने हिन्दी विभाग में गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस मनाने की नींव रखी। हिन्दी विभाग तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय का सबसे पुराना विभाग है। विश्वविद्यालय बनने के पूर्व ही हिन्दी विभाग स्थापित हो चुका था, लेकिन यहाँ झंडोत्तोलन का कार्यक्रम नहीं होता था। अब बाकायदा समारोह होते हैं। भागलपुर के पास बाँका जिला है, पहले यह भागलपुर का ही हिस्सा था। वहाँ एक प्रखंड है अमरपुर। लगभग 25 किलोमीटर दूर। अमरपुर प्रखंड के शोभानपुर गाँव में एक गांधी आश्रम स्थापित किया गया है। वहाँ झंडोत्तोलन का कार्यक्रम रखा गया था। मैं वहाँ चला गया। गांधी आश्रम मनोज जी की देखरेख में चल रहा है। अभी शैशवावस्था में है। मनोज जी, मैं और त्रिभुवन गांधी आश्रम के लिए कार से चले। दिन खुला हुआ था। सूरज भारत के गणतंत्र को झाँक रहा था। सुहावनी सुबह थी। जगह- जगह तिरंगा फहराया गया था। खास कर निजी स्कूलों के बच्चों में उत्साह बहुत था। सरकारी स्कूलों में भी झंडे फहराए गए थे। कुछ घरों के सामने भी झंडोत्तोलन हुआ था। आश्रम पहुँचा तो वहाँ कोई नहीं था। वजह यह थी कि यहाँ 11.30 में झंडोत्तोलन होता रहा है। गांधी जी की प्रतिमा के इर्द गिर्द इस बार बहुत सारे गेंदे के फूल थे। लगभग तीन एकड़ में गांधी आश्रम है। सेव, आम, केले आदि के पौधे लगाए गए हैं।
थोड़ी देर में गाँव के लोग आने लगे। दो चार युवक भी आये। बच्चे भी। उम्रदराज मुखिया जी हैं, वे प्रारंभ से गांधी आश्रम से जुड़े हैं। उनका जन्म 1938 में हुआ है। आजादी के समय वे नौ वर्ष के थे। हर वर्ष मुखिया जी ही झंडा फहराते थे। इस बार उन्होंने इंकार कर दिया तो मैंने झंडा फहराया। मनोज मीता जी ने संविधान की प्रस्तावना का पाठ किया और सभी लोगों ने उसे दुहराया। मैंने गणतंत्र दिवस और संविधान की महत्ता पर प्रकाश डाला। देश में जो वैचारिक संकट है, उस पर भी बातें कहीं। गणतंत्र, संविधान और गांधी संबंधी नारे लगाये और कार्यक्रम खत्म हुआ। सभी लोग कुर्सी या बेंच पर बैठे। समारोह के बाद औपचारिक बहसों में असली बातें निकल कर आती हैं। एक ने कहा कि और सब तो ठीक है, मगर संविधान में एक चीज गड़बड़ है कि एक ही आदमी कई कई बार मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री हो जाता है। अमेरिका की तरह यहाँ नियम होना चाहिए कि दो बार से ज्यादा कोई भी प्रधानमंत्री न हो। दूसरे ने कहा कि संविधान ने तो जनता को छूट दिया है कि वह अपना प्रतिनिधि खुद चुने। आप बार-बार एक ही आदमी को क्यों चुनते हैं? चुनने के समय तो टका लेते हैं। मुखिया के चुनाव में हारने वाला और जीतने वाला दोनों प्रत्याशियों ने 50 -50 लाख रूपया खर्च किया। यह रूपया किसने खाया? हम अच्छे होंगे नहीं तो नेता अच्छा क्यों होगा? मुखिया पैसा खर्च चुनाव जीतता है और फिर वह वसूली करता है। आम बैठक वह बुलाता ही नहीं है। मनमानी करता है, क्योंकि हम भी भ्रष्ट हो गए हैं।

 

The question of democracy in society
डॉ योगेन्द्र
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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