स्वर्णरेखा, खड़कई नदी और जमशेदजी टाटा

जमशेदपुर स्वर्णरेखा और खड़कई नदी के किनारे दलमा पहाड़ियों से घिरा हुआ

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डॉ योगेन्द्र
कल जब सुबह रांची से जमशेदपुर के लिए चला था तो रास्ते में कुहरा छाया था। चौड़ी सड़क पर तब भी कार भागी जा रही थी। मैं और अलका कार की खिड़कियों से दूर देखने की कोशिश करते तो ऐसा लगता कि कुहरों के बीच पेड़-पौधे फँस गए हों। जमशेदपुर पहुँचते-पहुँचते कुहरा ग़ायब हो गया था और शहर दिखने लगा था। कई वर्षों पहले में जमशेदपुर आया था और ‘दस्तक’ के संपादक राघव आलोक के घर ठहरा था। साथ में आशुतोष भी थे। हम तीनों को पोटका जाना था जो वहाँ से चौरासी किलोमीटर दूर था। राघव आलोक ने साहस बटोरा और अपनी मोटरसाइकिल पर दोनों को बैठाया। पोटका में आदिवासी मित्रों ने आंदोलन का बिगुल फूँक रखा था। हम तीनों चले। दो तीन किलोमीटर की दूरी ही हमलोगों ने तय की थी कि मोटरसाइकिल एक्सीडेंट कर गयी। मैं मोटरसाइकिल के दूर जा गिरा। घुटने छिल गये। पास के मेडिकल स्टोर से दवा ली। छीले घुटनों पर दवा लगाई और फिर चल पड़े। जवानी के दिनों में उमंग की कोई सीमा तो होती नहीं। उस समय कोल्हान रक्षा संघ के संस्थापक के सी हेम्ब्रम का जलवा था। सरकार उनसे ख़ौफ़ खाती थी।
आज जब जमशेदपुर में पाँच दिवसीय परिवर्तनशाला कार्यशाला में आया हूँ। जमशेदपुर शहर ने भी अपने डैने फैला दिए हैं। दरअसल यहाँ कभी साकची गाँव हुआ करता था जिस पर जमशेदपुर 1912 में बसा। जमशेदपुर स्वर्णरेखा और खड़कई नदी के किनारे दलमा पहाड़ियों से घिरा हुआ है। दरअसल यहाँ अपनी फैक्ट्री लगाने की जगह की तलाश में जमशेदजी नौसरवानजी टाटा यहाँ आये थे और उन्होंने ही इसे बसाया। भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड चेम्सफोर्ड ने टाटा समूह के संस्थापक के नाम पर इस शहर का नाम 1919 में जमशेदपुर रखा। यह शहर बहु सांस्कृतिक है, बावजूद इसके यहाँ 1964 और 1979 में भयानक सांप्रदायिक दंगे हुए। 1964 में बिनोवा आग बुझाने आये थे और 1979 में जयप्रकाश नारायण। जयप्रकाश नारायण ने तब शांति समिति बनायी थी। तबसे दंगा रूका हुआ है। जमशेदपुर झारखंड राज्य का सबसे बड़ा शहर है।
मैं जहाँ रूका हूँ, यह एक कैथोलिक का चेरिटेबल ट्रस्ट है। बहुत लंबी चौड़ी जगह है। रहने के लिए होटल जैसे कमरे हैं। खेतीबाड़ी समारोह पूर्वक होती है। फल और सब्जियां खुद ही उगाते हैं और खाने में वही परोसा जाता है। ईसाई और सिख धर्म में चैरिटी होती है। हिंदू धर्म में इसका घोर अभाव है। यहाँ तो मंदिरों में जाइए तो पंडे औक़ात के हिसाब से ईश्वर से मुलाक़ात करवायेंगे। सामान्य जन के लिए अलग इंतज़ाम है, वीआईपी के लिए अलग। हिंदू धर्म में भी बहुत बड़े-बड़े धार्मिक हुए हैं, लेकिन उनके कहे हुए पर कौन चलता है? वैसे हर धर्म में यह दुर्गुण घुस आया है। इस्लाम के बारे में कहा जाता है कि वह भाईचारे वाला धर्म है। व्यवहारिक रूप में क्या हो रहा है? इतने नेक धर्म में इतनी हिंसक वारदातें ! बांग्लादेश में देखिए। हर घटना मन को क्षुब्ध करती है। हिंसा अगर किसी भी धर्म का हिस्सा बन जाए तो उसे धर्म मानने में संकोच करना चाहिए। दुनिया के अधिकतर हिस्सों में धर्म ने जो तबाही मचा रखी है, वह किसी भी विश्व युद्ध से डरावना है।

Jamshedpur Kharkai and Swarnarekha rivers
डॉ योगेन्द्र

 

(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए The Dialogue उत्तरदायी नहीं है।)
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