शौचालय दिवस और गांधी की स्वच्छता सम्बंधी अवधारणा
शौचालय दिवस 19 नवम्बर से मानवाधिकार दिवस तक मनाने का कार्यक्रम
ब्रह्मानंद ठाकुर
विश्व मे अन्य दिवसों की तरह एक शौचालय दिवस भी है। यह प्रति बर्ष 19 नवम्बर को मनाया जाता है। इस बार इस दिवस को 19 नवम्बर से 10 दिसंबर (मानवाधिकार दिवस) तक मनाने का कार्यक्रम है। लिहाजा यह सरकारी अभियान 21 दिनो तक चलेगा। इस विश्व शौचालय दिवस के अवसर पर स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण एवं लोहिया स्वच्छ बिहार अभियान के तहत शौचालय पर केंद्रित कई कार्यक्रम होंगे।
व्यक्तिगत शौचालय और सामुदायिक शौचालयो की आवश्यकतानुसार मरम्मति, उचित रखरखाव तथा सौंन्दर्यीकरण किया जाएगा। समुदाय को अपने शौचालय को स्वच्छ बनाते हुए आकर्षक तरीके से चित्रित करने हेतु प्रोत्साहित किया जाएगा। ये सभी कार्यक्रम जीविका आधारित जन-जागरूकता गतिविधियां, स्कूल, कॉलेज आधारित गतिविधियां, संध्या चौपाल, श्रमदान, रैली आदि के माध्यम से करने की बात कही जा रही है। सर्वश्रेष्ठ व्यक्तिगत शौचालय की प्रतियोगिता होगी। आम लोगों को शौचालय का उपयोग करने के लिए जागरूक किया जाएगा। जाहिर है यह सब करने में एक बड़ी राशि भी खर्च होगी ही। विश्व शौचालय दिवस का यह अभियान आम जन की आदत और व्यवहार में कितना बदलाव ला पाएगा, इसपर कुछ लिखने की जरूरत नहीं है। यह सब देख-सुन कर मुझे फिर गांधी याद आ गये। मौजूदा स्वच्छता अभियान गांधी के स्वच्छता अभियान सम्बंधी अवधारणा से बिल्कुल विपरीत है। गांधी के स्वच्छता अभियान का दायरा बड़ा ही व्यापक था। स्वच्छता से उनका आशय पृथ्वी, जल, वायु और पर्यावरण संरक्षण के साथ पूरी प्रकृति के संरक्षण से है। आज एक समस्या का समाधान करते हुए दूसरी समस्याएं पैदा की जा रहीं हैं, जो गांधी कै विचारों से कतई मेल नहीं खाता। पूंजीवादी व्यवस्था में मुनाफे के लिए जल, जंगल, जमीन, पहाड़ आदि बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधनों के अविवेकपूर्ण दोहन के कारण पर्यावरण अभूतपूर्व संकट की दौर से गुजर रहा है। जीवन दायिनी नदियां, जिसके तट पर कभी हमारी सभ्यता और संस्कृति का निर्माण हुआ था, आज भीषण संकट से गुजर रही हैं। इन नदियों के किनारे स्थापित बड़े-बड़े उद्योग समय-समय पर अपना कचरा नदियों में बहाते रहते हैं, जिससे नदियों का जल भयानक रूप से प्रदूषित हो जाता है। उसमें रहने वाले जलीय जीव असमय मौत के शिकार हो जाते हैं। ऐतिहासिक और धार्मिक नदी गंगा भी इस प्रदूषण की शिकार हो गई है। गंगा मुक्ति आंदोलन से जुड़े कार्यकर्ता गंगा की अविरलता बचाए रखने और इसे प्रदूषण रहित बनाने के लिए समय-समय पर आवाज उठाते रहे हैं। सेमिनार और विचार गोष्ठियां भी आयोजित होती रही हैं। जंगलों की अंधाधुंध कटाई से पर्यावरण संकट में है।
अत्यधिक मुनाफे की लालच में हमारे प्राकृतिक संसाधनों के अविवेकपूर्ण दोहन से जो संकट पैदा हुआ है उसे गांधी के बताए रास्ते से ही दूर किया जा सकता है। जरूरत है स्वच्छता सम्बंधी अवधारणा को व्यापक रूप से देखने और समझने की। स्वच्छता का अर्थ सिर्फ शौचालय तक ही सीमित नहीं है।
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए The Dialogue उत्तरदायी नहीं है।)