राष्ट्रपति भवन और सड़क पर करतब दिखाती लड़की

दिल्ली तो संसद और विधानसभाओं से बाहर बसती है

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डॉ योगेन्द्र
दिल्ली में उधर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के शवदाह को लेकर राजनेताओं में विवाद हो रहा था, तो इधर मेरी कार जब सिग्नल पर रुकी तो एक सात-आठ वर्षीया लड़की कार के सामने करतब दिखाकर हाथ फैला कर पैसे मांगने लगी। दिल्ली नये-नये करतबों का शहर है। यहाँ करतब दिखाये बिना कुछ नहीं होता। जिनके पास अकूत संपत्ति या बड़ा ओहदा है, वे करतब दिखाने और मोहने में माहिर हैं। पेट पालने के लिए सात वर्षीया लड़की करतब दिखाने को विवश हैं और तोंद फुलाने के लिए भी बड़े-बड़े दफ़्तरों में करतब हो रहे हैं। चमकदार दिल्ली की छाया में एक और दिल्ली पलती है। शायद वही दिल्ली आजादी के अमृत महोत्सव की सच्ची कथा कहती है। एक दिल्ली आजादी के अमृत महोत्सव का जश्न मनाती है और दूसरी दिल्ली आजादी के अमृत महोत्सव का दर्द भोगती है। दिल्ली संसद और विधानसभाओं से बाहर बसती है। संसद की ज्यादातर बहसें उसके काम की नहीं होती। ये बहसें भी आखिर क्या हैं? लगता है कि एक नेता दूसरे नेताओं की छाती फाड़ देगा। नेता समस्याओं के हल नहीं चाहते, बल्कि वे चाहते हैं कि उनकी बातें दूसरे नेताओं के कलेजे को कितनी चीरती हैं। अधैर्य, चीख- चिल्लाहट और टोका-टोकी ही संसद की नियति है।
स्वर्गीय मनमोहन सिंह कांग्रेस पार्टी के नेता थे। वर्तमान प्रधानमंत्री बीजेपी के। बेहतर होता कि प्रधानमंत्री विपक्ष के नेताओं की एक बैठक बुलाकर मामले को तय कर लेते कि कहाँ अंतिम संस्कार करना है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी गुजरे या अन्य प्रधानमंत्री गुजरे, तो उनका जहाँ दाह संस्कार हुआ, वहीं उनकी स्मृति कक्ष भी बना। वैसे मुझे लगता है कि लोकतंत्र के प्रधानमंत्री का सामान्य लोगों की तरह ही दाह-संस्कार होना चाहिए। हाँ, उनकी स्मृतियों के लिए एक अलग भवन बनाना चाहिए जिससे पता चले कि उन्होंने क्या-क्या किया और उन्हें क्यों याद किया जा रहा है। जहाँ लाखों लाख लोग बेघर हैं, वहाँ कई एकड़ में किसी की स्मृति रहे, यह भी ठीक नहीं लगता। 1957 में जब भारतीय विद्रोही हार गये और ईस्ट इंडिया कम्पनी को हटाकर ब्रिटेन ने सीधा शासन करना शुरू किया तो वायसराय की नियुक्ति हुई। 1911 तक अंग्रेजों की कलकत्ता राजधानी रही। उसके बाद उन्होंने दिल्ली राजधानी को शिफ्ट किया। वास्तुकार लुटियंस को वायसराय के लिए भव्य भवन बनाने की जिम्मेदारी दी गयी। 1911 में काम शुरू हुआ और 1932 में काम पूरा हुआ। इसमें कुल 340 कमरे हैं। वायसराय इसमें रहने लगे। उस वक्त वायसराय को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री से दुगुना वेतन मिलता था और उसकी सेवा के लिए सात सौ नौकर रखे गए। एक आदमी की सेवा के लिए सात सौ नौकर! आज जिस आलीशान भवन में राष्ट्रपति रहते हैं, वहाँ वायसराय रहा करते थे। यों आजाद भारत के प्रथम गवर्नर जनरल सी राजगोपालाचार्य जब यहाँ रहने आए तो उन्हें यह बहुत भव्य लगा और वे अतिथि गृह में रहने लगे। पर यह भवन राष्ट्रपति के नियंत्रण में है और विश्व के किसी भी राष्ट्राध्यक्ष के भवन से बड़ा है। लोकतंत्र के नेता की सुरक्षा और कामकाज के लिए प्रबंध रहना चाहिए, लेकिन ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि उस पर गैरजरूरी खर्च हों। अभी नेताओं द्वारा जिस तरह के शान शौकत का प्रदर्शन किया जाता है, वह चिढ़ पैदा करता है। नेता जितने सहज और सरल ढंग से जीवन यापन करें, लोकतंत्र के लिए उतना ही बेहतर रहेगा।

 

Rashtrapati Bhavan and a girl performing stunts on the road
डॉ योगेन्द्र
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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