ब्रह्मानंद ठाकुर
चारों ओर नव वर्ष के आगमन का उत्साह है। अपनी-अपनी हैसियत से लोग नये वर्ष के स्वागत की तैयारी में लगे हैं। हर्ष-विषाद, उमंग-उत्साह, दुख-सुख, घृणा -प्रेम, वैमनस्य-सौमनस्य आदि का अपना वर्ग चरित्र होता है।
लिहाजा इस नव वर्ष के उमंग-उत्साह का भी अपना वर्गचरित्र है। सनातनी लोग इसे ईसाई नववर्ष कह कर नाक- भौं सिकोड़ते रहे हैं। ऐसे लोगों में विश्व दृष्टिकोण का अभाव है। वैसे हमारा भारत विविधताओं का देश है। कहते हैं, यहां क्षेत्र विशेष में अलग-अलग तरह से नववर्ष मनाए जाते हैं। सब की अपनी-अपनी अहमियत है। जैन धर्म में नव वर्ष दिवाली के अगले दिन से मनाने की परम्परा है तो हिंदु धर्म में चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से नव वर्ष की शुरुआत होती है। मिथिलांचल में नव बर्ष जूर सीतल के दिन 14 अप्रैल को मनाया जाता है। ईसाई नव बर्ष की शुरुआत 1 जनवरी से होती है। इसे व्यापक मान्यता मिली हुई है। पतझड़ के मौसम की समाप्ति के साथ ही इस नव वर्ष का आगमन होता है। कुछ खास लोग काफी पहले से नव वर्ष मनाने की तैयारी में जुट जाते हैं। ऐसे लोग अपनी हैसियत के मुताबिक गोवा, मुंबई, जयपुर, उदयपुर, दिल्ली आदि पर्यटन स्थलों पर जाकर नववर्ष का आनंद मनाते हैं। हजारों-लाखों का वारा न्यारा।स्वानत:सुखाय। इस दिन सोशल मीडिया, फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम पर शुभकामना संदेशों की बाढ -सी आ जाती है। अतिशय महत्वाकांक्षी लोग कुछ संकल्प भी लेते हैं। नेतागण आम-आवाम को नव वर्ष की औपचारिक शुभकामनाएं देते हैं। मन में राम, बगल में छूरी। कुछ उत्साही युवा आधी रात को पटाखे फोड़ कर नये साल का खैर मकदम करते हैं। देख रहा हूं भयंकर आर्थिक असमानता के इस दौर में पर्व -त्योहारों में खुशियां मनाना सब को नसीब नहीं है। फिर भी दिल है कि मानता नहीं। नया साल आने वाला है, भोजन मे कुछ तो खास होना चाहिए। वंदे उदरम् मातरम्। आखिर पापी पेट का सवाल है। मटन खरीदने की क्षमता नहीं। सात-आठ सौ रुपये किलो जो है। सामत निरीह मुर्गे पर आ जाती है। नव बर्ष के दिन गांव-देहात में मुर्गे की दुकान पर लगी भीड़ यही बताती है।परीक्षण भाई भीषण ठंड में गेहूं में पटवन कर रहे थे। मैंने पूछ दिया, आज नये साल का पहला दिन है। इस दिन भी इतनी मशक्कत? उसने छूटते ही कहा, पर्व -त्योहार और नये साल का जश्न हम जैसे मिहनतकशों के नसीब में कहां? यह तो खाए-अघाए लोगों की किस्मत में है। यहां तो हाड़तोड़ मिहनत करने पर भी अभाव से पीछा नहीं छूटता। देहाती खेतिहर परीक्षण भाई ने बड़े पते की बात कह दी। उनकी बातों से मुझे नव वर्ष पर ठाकुर का कोना के लिए विषय मिल गया। मेरे जीवन का 72 वां पतझड़ (वसंत तो हर्गिज नहीं) अगले कुछ महीनों में बीतने वाला है। प्रकृति ने चाहा तो 73 वें पतझड़ की भी शुरुआत हो सकती है।अपने खुद के बस में कहां कुछ रहता है? नव वर्ष के आगमन पर शुरु से ही मुझमें कभी कोई उत्साह नहीं रहा। हां, नववर्ष शुरू होने से दो-तीन दिन पहले ठाकुर प्रसाद का नया कैलेंडर दीवार पर जरूर टांग देता हूं। इस दिन भी भोजन में रोटी और पालक-चना दाल की सब्जी। मैं जिस वर्ग में हूं, उसके लिए इससे अधिक कहां सम्भव है?
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)