विनोद कुमार विक्की
परिवर्तनशील संसार में समय, साल, सरकार और संबंधी भले ही बदल जाएं लेकिन अपनी हरकतों और करतूतों के कारण सदैव याद किए जाते हैं। कुछ इसी तर्ज पर कैलेंडर वर्ष 2024 भी सतरंगी कारनामों एवं अतरंगी घटनाओं के कारण भारतीय जनमानस के मानस पटल पर हमेशा बना रहेगा।
साल के प्रथम महीने में अयोध्या में त्रेता कालीन रामलला की भव्य वापसी हुई, जुबां केसरी फेम सिंघम, मंजुलिका और स्त्री तथा अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प का पुनर्आगमन हुआ और तो और अंतिम महीने टेढ़े कंधे की वजह से नहीं झुक सकने वाले पुष्पा का राज (पुष्पा:द रूल) भी आ गया किन्तु जनता के लिए ‘अच्छे दिन’ इस साल भी नहीं आ सकें।
अजी जनता की छोड़िए, ‘अबकी बार चार सौ पार’ का उद्घोष करने वाले विश्वसनीय पार्टी की सरकार भी गठबंधन की बैसाखी के सहारे ही संसद में सत्तासीन हो पाई। हालांकि चार सौ के लक्षित जादूई आंकड़े को पार करने में जब राजनीतिक पार्टी असफल साबित हुई तब प्याज के मौसेरे भाई लहसुन ने उस आंकड़े को पार करने का साहस दिखाया। इस उपलब्धि के आलोक में साल 2024 को प्याज़, टमाटर की अपेक्षा लहसुन वर्ष के रूप में याद किया जाएगा। नागरिकों के अच्छे दिन का पता नहीं किंतु पॉपकॉर्न पर जीएसटी बढ़ने से भुट्टे के अच्छे दिन जरूर आ गए। प्रांतीय स्तर से राष्ट्रीय स्तर तक विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षाओं के प्रश्न पत्र लीकेज होने से संबंधित आयोग की पाचनशक्ति एवं डायपर के साथ-साथ छात्रों के भविष्य पर स्वर्णिम हालमार्क की बजाय प्रश्न चिह्न का टैग मार्क नज़र आता रहा।
एक ओर देश की लाइफलाइन अर्थात भारतीय रेल नामक विकास लड़खड़ाता और आपस में टकराता रहा, जबकि दूसरी ओर बिहार में पुलों के गिरने की प्रतिस्पर्धा एवं तीव्रता ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय मुद्रा एवं नेताओं के नैतिक पतन की दर को काफी पीछे छोड़ दिया।
देखने और दिखाने के मामले में साल 2024 को शोऑफ ईयर के रूप में याद किया जा सकता है। किसान खेतों एवं छात्र शिक्षण संस्थानों में दिखाई पड़ने की बजाय सड़कों पर धरना-प्रदर्शन करते नजर आएं। माननीय सांसद आपस में धक्का-मुक्की के रूप में मल्ल युद्ध का पूर्वाभ्यास करते दिख गये जबकि दिल्ली और झारखंड के मुख्यमंत्री सीएम सेल की बजाय जेल में दिखाई दिए।
देश में बढ़ रही महंगाई,आम जन की समस्या और बेरोज़गारी को देख और दिखा सकने में असमर्थ देश की धृतराष्ट्र मीडिया को अनंत-राधिका के विवाह की सभी रस्में,पड़ोसी देशों की भूखमरी एवं त्रासदी के साथ अंतरराष्ट्रीय समस्याएं खूब नजर आई।
संयुक्त राष्ट्र एसडीएसएन की रिपोर्ट की मानें, तो संतोषम् परम सुखम् की अवधारणा वाले हमारे देश से ज्यादा खुशहाली हमारे पड़ोस (म्यांमार, चीन, पाकिस्तान और नेपाल) में देखी गई जबकि गरीबी और भुक्खड़ी में हमारा अन्न प्रधान देश बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका से भी आगे है।
लोकसभा चुनाव के दौरान ईवीएम को सती सावित्री की तरह चरित्रवान मानने वाली पार्टियां विभिन्न प्रदेशों में अपनी हार का ठीकरा ईवीएम की चरित्रहीनता के नाम पर जमकर फोड़ा। हालांकि सालों भर आरोप के घेरे में रहने वाली अबला ईवीएम मशीन इस बात से राहत महसूस कर रही हैं कि आने वाले समय में ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ लागू हो जाने पर बदचलनी का आरोप पाँच-पाँच वर्षों पर ही लगेगा। स्थानों के नाम परिवर्तन और स्थलों की खुदाई द्वारा विकास को ढूंढने की कोशिश इस वर्ष भी लगातार जारी रही।
बहरहाल संभल, संसद, संविधान और स्लोगन (बंटेंगे तो कटेंगे,एक हैं तो सेफ हैं) के नाम पर नेताजी जनता जनार्दन को ऐड़ा बनाने में लगे रहें, तो दूसरी ओर महंगाई व बेरोज़गारी के बुस्टर डॉज से वैक्सिनेटेड इंटरनेट जीवी जनता सोशल मीडिया पर रील्स बनाने में लगे रहें।
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)