जब मंत्रियों ने महाकवि का रथ खींचा था
पंडित लेखनाथ पौड्याल नेपाल के वयोवृद्ध महाकवि थे
ब्रह्मानंद ठाकुर
बात अपने पड़ोसी देश नेपाल की है। 4 जनवरी 1955 का दिन। नेपाल में वयोवृद्ध महाकवि पंडित लेखनाथ पौड्याल (शास्त्री) का सम्मान समारोह आयोजित था। कलम के जादुगर रामवृक्ष बेनीपुरी उन दिनों नेपाल की यात्रा पर थे। नेपाल से उनका बड़ा ही भावात्मक लगाव था। नेपाल को राणा शाही से मुक्त कराने के आंदोलन में बेनीपुरी जी की पत्रिका ‘जनता’ की अहम भूमिका थी। इसकी चर्चा फिर कभी।
आज के ठाकुर का कोना में नेपाल के महाकवि पंडित लेखनाथ पौड्याल के राजकीय सम्मान समारोह की चर्चा। पंडित लेखनाथ पौड्याल नेपाल के वयोवृद्ध महाकवि थे। उनका राजकीय सम्मान किया जा रहा था। स्वागत समिति के निमंत्रण पर बेनीपुरी जी अपने नेपाली मित्र भद्रकाली मिश्र के साथ समारोह में उपस्थित थे। इस स्वागत समारोह की चर्चा उन्होंने अपनी पुस्तक ‘डायरी के पन्ने’ में की है। बेनीपुरी जी लिखते हैं, महाकवि रथ पर सवार थे। वहां के प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, यातायात मंत्री, शिक्षा मंत्री, बड़े-बड़े सरकारी अफसर, नगर के विशिष्ट जन सभी उनके रथ को खींच रहे थे। खुद बेनीपुरी जी ने भी उस रथ को खींचने में अपना हाथ लगाया था। बेनीपुरी जी आगे लिखते हैं, जब भद्रकाली मिश्र ने महाकवि से उनका परिचय कराया तो महाकवि ने बेनीपुरी जी को झट से उनको छाती से लगाते हुए कहा, आप तो साहित्य के महारथी हैं। महाकवि के सम्मान समारोह के प्रति वहां के लोगों में बड़ा उत्साह था। बेनीपुरी जी लिखते हैं, नेपाल के प्रधानमंत्री समेत अन्य मंत्रीगण, कमांडर इन चीफ, चीफ जस्टिस, भारतीय राजदूत, अंग्रेजी राजदूत, राजधानी के सभी प्रतिष्ठित लोग, लेखक और कवि सम्मान समारोह में उपस्थित थे। सरकार के मंत्रालयों, न्यायालयों, विद्यालयों, महा विद्यालयों में उस दिन अवकाश घोषित था। समारोह स्थल पर लोगों की अपार भीड़ थी। स्वागत, अभिनन्दन के बाद बेनीपुरी जी को संबोधन के लिए बुलाया गया था। उन्होंने महाकवि के प्रति अपने उद्गार व्यक्त किए और अपनी ग्रंथावली की प्रति भेंट की। नेपाल के तत्कालीन भारतीय राजदूत ने भी भारत सरकार की ओर से महाकवि को सम्मान अर्पित किया। समारोह के अंत में नेपाल सरकार के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने सरकार की ओर से वयोवृद्ध महाकवि पंडित लेखनाथ शास्त्री जी को सम्मान स्वरूप 5 हजार रुपये की एक थैली भेट की थी जिसे महाकवि ने नेपाल में साहित्य भवन की स्थापना के लिए दान कर दिया था। यह था नेपाल सरकार एवं नेपाली जनता के दिल में विचार जगत से जुड़े एक महाकवि के प्रति सम्मान भाव! क्या अपने देश में लेखकों, कवियों के लिए ऐसा सम्मान सम्भव है?
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)