
प्रयागराज में आयोजित धर्मजगत के लिए महाकुम्भ इस नये वर्ष का एक सबसे बड़ा उपहार है। ऐसा कहा जा रहा है कि आजादी और आध्यात्म का यह महाकुम्भ एक अमृत महोत्सव ही साबित होगा? विषाक्त धारा के बीच बहती मनुष्यता को एक किनारा मिलेगा, इसकी अपेक्षा इस महाकुम्भ से की जा सकती है। अहिंसा, करुणा, सम्बन्ध, संवेदना और नये सम्बोधन का शंखनाद होगा। हिन्दू समाज बाह्य और आंतरिक अराजकता के खिलाफ एक धर्मयुद्ध के लिए तैयार होगा। इस महाकुम्भ से बहुत सारी आशाएं हैं।
राजसंसद तो अपनी विसंगतियों का शिकार है, पर यहाँ की धर्म संसद कुछ विधायक संकल्प और अपने प्रकल्पों के साथ अवश्य ही आशा का संचार करेगी। मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना पर शेष मजहब की बात तो छोड़ दीजिये हिन्दू तो एक धर्म है। हिन्दुत्ववादियों को लेकर हिन्दुओं को मजहब मानने से परहेज है। इनके लिए हिंदुत्व एक मुकम्मल धर्म है। धर्म तो केवल हिन्दू धर्म है, शेष सारे मजहब हैं। छोड़िये मजहबों की बात। आपस में बैर नहीं रखने की हिन्दू धर्म से अपेक्षा तो की ही जा सकती है।
यह महाकुम्भ धर्म और विज्ञान का भी संगम है। आधुनिक तकनीक तो इस महाकुम्भ की चेरी हीं है। एक तरफ आस्था और विश्वास है, तो दूसरी तरफ यह डिजिटल-कुम्भ है। यहाँ डाटा का भी खेल है और दाता का भी खेल है। यहाँ ज्ञान भी है, और वैराग्य भी है।
गंगा-यमुना तो एक नया तहजीब लिए खड़ी है। यहाँ पुराण है, पर पुराना कुछ भी नहीं है। वह पुरानी हमारी गंगा-यमुनी संस्कृति यहां नहीं है। इस संगम तट पर हिन्दू-संस्कृति का जयघोष हो रहा है। संगम तट पर सरस्वती अदृश्य ही है। सरस्वती तो विवेक है, ज्ञान है। पर यह संगम एक विवेकहीन संगम ही साबित हो रहा है। इस कुम्भ का निमंत्रण सरकार बाँट रही है, समाज गौन हो चला है। काश! संगम पर सरस्वती नजर आती तो शायद भारतीय वैविध्य को सम्मान मिलता? हिन्दू समाज अगर संगम तट पर खड़ा होता तो समरसता का संगम होता। पर सबकुछ यहां सरकार है।
यहाँ सब कुछ है पर वह गंगा-जमुनी तहजीब नदारद है। घृणा और अलगाव की धारा ही बह रही है। इस बार पिछले कुम्भ के मुकाबले ज्यादा भीड़ आने की संभावना है। इस कुम्भ में चालीस करोड़ हिन्दुओं का समागम होगा, ऐसी उम्मीद की जा रही है। कई दिनों से मीडिया कुम्भ पर फोकस्ड है। चौबीस घंटे कुम्भ का ही कवरेज चल रहा है।
हिन्दू समाज अपनी गहरी उत्सवधर्मिता के साथ आगे बढ़ रहा है। क्या यही भीड़ भारत का निर्माण करेगी? भीड़ असत्य की होती है। सत्य अक्सर अकेला ही खड़ा रहता है। भीड़ कभी भी परिवर्तन का वाहक नहीं होती। भीड़ से कोई परिवर्तन हुआ होता तो शायद भारत की तस्वीर और तकदीर कुछ अलग ही होती।यह हिंदुत्व को मजबूत करता हुआ तो दिखता है, पर हिन्दू समाज वैसी ही निर्बलता की तरफ जा रहा है।
विगत दिनों के जितने भी कुम्भ आयोजित हुए उनसे भारतीय समाज की विद्रूपता खत्म नहीं हो पायी। विसंगतियाँ यथावत बनी हुई हैं। इस महाकुम्भ से कितनी अपेक्षा की जाए? हिन्दू समाज के ऊंच-नीच, छुआछूत और अन्य प्रकार की विषमता आजतक दूर नहीं हो पायी। इस कुम्भ से हिंदुत्व को तो बल मिल सकता है, पर हिन्दुओं को नहीं। समाज वैसा ही संज्ञाहीन बना रहेगा। हिन्दू एक सरोकार है और हिंदुत्व एक सरकार। जितनी भीड़ यहाँ आ रही है अगर किसी संज्ञा की तरफ यह भीड़ बढ़ी होती तो भारत का कायाकल्प हो जाता। तब यहां किसी भी प्रकार की समस्या ही नहीं रह जाती?
महाकुम्भ से समाज को महात्राण मिल जाय तो एक बड़ी बात हो जाएगी। ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य अभिमुक्तेश्वरानन्द के बयानों में कभी-कभी प्रगतिशीलता नजर आती है। उन्होंने कहा है कि शाही-स्नान किस पानी में होगा? गंगा आज तक मैली क्यों है? क्या इसी मैले तट पर शाही-स्नान होगा?
सत्ता और समाज सभी ने मिलकर गंगा और यमुना की निर्मलता को समाप्त किया है? आस्था के नाम पर डुबकी लगा रहे लोगों ने समाज में भाईचारा के लिए कुछ नहीं किया। इन्होने भारत को एक भीड़ बनाकर छोड़ दिया है।
सवाल शेष है। क्या कुम्भ अपनी इस महान विरासत को बचाने के लिए कुछ सोच पायेगा? इसका हम सबको इंतजार है। यद्यपि गोविंदाचार्य के नेतृत्व में यहाँ नदी-संवाद का कार्यक्रम है। क्या केवल इस उत्सव से ही हिन्दू धर्म को ताकत मिल पाएगी? क्या इस कुम्भ की अभिव्यक्ति मतदाता-सूची के रूप में होगी? इस महाकुम्भ का अगर यही परिणाम है तो एक बड़ा प्रश्न है।
यह संयोग है कि इस वर्ष संघ सौ वर्ष का हो गया है। संघ के इस शताब्दी वर्ष में यह महाकुम्भ क्या कुछ कहता है? पिछले कुछ वर्षों में इस देश के संत और साधु समाज अप्रसांगिक हो गए थे। हिंदुत्व का भविष्य संघ के हाथ में आ गया था। संघ प्रमुख ही हिंदुत्व के खलीफ हो गए थे। पिछले कुछ दिनों से कुछ संत और शंकराचार्य संघ प्रमुख के खिलाफ आग उगलते नजर आये? आखिर कौन है हिन्दू और हिंदुत्व का ठेकेदार? संतों का अखाड़ा या संघ की शाखा? लीडर कौन और डीलर कौन? यह समर अभी शेष है।
फिलहाल इस युद्धरत दुनिया में यह महाकुम्भ कैसा सन्देश लेकर आगे खड़ा होगा, यह देखना बांकी है।