विवेकानन्द के विचारों को समझना जरूरी

धर्म कभी लोगों पर अत्याचार नहीं किया

0 652

ब्रह्मानंद ठाकुर
कल 12 जनवरी था। स्वामी विवेकानंद की 162वीं जयंती। अपने देश में इनकी जयंती युवा दिवस के रूप में मनाई जाती है। इस बार भी स्वामी विवेकानंद की जयंती पर अन्य वर्षों की तरह गोष्ठियां और सेमिनार आयोजित हुए। वक्ताओं ने लम्बी लम्बी बातें कहीं। युवा पीढ़ी को उनके आदर्शों पर चलने की सलाह दी। आज के ठाकुर का कोना में मैं स्वामी विवेकानंद के कतिपय कथनों का उल्लेख कर रहा हूं, जिसे उन्होंने विभिन्न अवसरों पर व्यक्त किया है। धर्म को राजनीति ने अपने वर्ग स्वार्थ में किस तरह से विकृत किया है, इसपर विवेकानंद ने कहा था कि- “किसी भी धर्म ने कभी भी लोगों पर अत्याचार नहीं किया। … किसी भी धर्म ने इस गलत काम का समर्थन नहीं किया। तो फिर लोगों को इन सबके लिए किसने उत्तेजित किया? राजनीति ने ही लोगों को इन सब गलत कामों के लिए उकसाया, धर्म ने नहीं।” विवेकानन्द ने कहा था, “भारत में मुस्लिम विजय ने अत्याचार से पीड़ित लोगों को मुक्ति का स्वाद चखाया था। यही वजह है कि इस देश के पांच में से एक व्यक्ति मुसलमान बन गया था। ऐसा केवल हथियारों के बल पर नहीं हुआ। … गरीब लोग जमींदारों और पंडितों के कब्जे से मुक्ति चाहते थे।” उन्होंने यह भी कहा था, “अगर मेरी कोई संतान होती, तो उसके लिए जो सत्य प्रतीत होता, वह उसी की शिष्य होती। यह नितांत स्वाभाविक है कि एक ही साथ पूरी तरह से स्वतंत्र और निर्विघ्न रूप से मेरा बेटा बौद्ध, मेरी पत्नी ईसाई और मैं स्वयं मुसलमान होता। मंदिर के प्रसंग में विवेकानन्द कहते हैं, “करोड़ों रुपये खर्च कर काशी-वृन्दावन के देवताओं के घर के दरवाजे खुल रहे हैं और बंद हो रहे हैं। एक देवता कपड़े बदल रहे हैं, तो दूसरे देवता भोजन कर रहे हैं। एक तीसरे देवता दुष्टों के वंश का नाश कर रहे हैं। इधर असली देवता अन्न और वस्त्र के बिना मर रहे हैं।” (वाणी और रचना-विवेकानंद)
उन्होंने यह भी कहा था कि “जब तक भारत में करोड़ों लोग गरीबी और अज्ञानता के अंधेरे में डूबे रहेंगे, तब तक उनके पैसे से शिक्षित लेकिन उनकी ओर मुड़कर भी नहीं देखने वाले- ऐसे प्रत्येक व्यक्ति को में देशद्रोही मानता हूं। जब तक भारत के बीस करोड़ लोग भूखे जानवर … की तरह रहेंगे, तब तक जो अमीर लोग उन्हें पैरों तले रौंदकर आनंद मना रहे हैं, लेकिन उनके लिए कुछ भी नहीं करते, मैं उन्हें अभागा व अधम मानता हूं।” (वाणी और रचना-विवेकानंद) जाहिर है, विवेकानंद के कथनों को रटने और दुहराने से उन समस्याओं का समाधान सम्भव नहीं है, जो वे चाहते थे। विवेकानन्द के सपनों को साकार करने की जिम्मेवारी आज जिस युवा पीढ़ी पर है उसकी दशा किसी से छिपी नहीं है। धार्मिक असहिष्णुता, भीषण आर्थिक असमानता, अंधविश्वास, अवैज्ञानिक चिंतन, दौलत अर्जित करने वास्ते गलाकाट प्रतिस्पर्धा आदि संकटग्रस्त पूंजीवादी अर्थ व्यवस्था की अनिवार्य परिणति है। इस व्यवस्था को बरकरार रखते हुए विवेकानंद के सपनों को पूरा करना असम्भव है। इसके लिए पहली शर्त होगी पूंजीवाद का जड़ मूल से खात्मा। आज विवेकानन्द के विचारों को इसी रौशनी में समझने की जरूरत है।

 

motivational thoughts of Swami Vivekananda
ब्रह्मानंद ठाकुर
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)

 

Leave A Reply

Your email address will not be published.