सी-2 फार्मूले पर एमएसपी की सिफारिश को जानना आवश्यक
एमएसपी को जानना किसानों के लिए जरुरी
ब्रह्मानंद ठाकुर
देश के विभिन्न किसान संगठन एमएसपी समेत अन्य मांगों को लेकर लम्बे समय से आंदोलनरत हैं। सरकार इस मुद्दे पर उनकी नहीं सुनी रही है। ऐसे में आम किसानों के लिए यह जानना जरूरी है कि एमएसपी क्या है और डाक्टर एम एस स्वामीनाथन आयोग ने सरकार से इसके लिए क्या सिफारिशें की थीं। डाक्टर एम एस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में गठित राष्ट्रीय किसान आयोग ने आज से 18 साल पहले 2006 में सरकार को अपनी रिपोर्ट पेश की थी। इसमें किसानों को उनकी फसल की लागत का 50 प्रतिशत ज्यादा देने की सिफारिश की थी। इसे फसल में लगने वाली लागत को तीन हिस्सों- ए-2, ए-2+ एफ एल और सी-2 में बांटा गया था। ए-2 की लागत में फसल की पैदावार में हुए सभी तरह के नकदी खर्च शामिल होते हैं। इसमें बीज, खाद और केमिकल से लेकर मजदूरी, ईंधन और सिंचाई में लगने वाली लागत भी शामिल होती है।
ए2+एफ एल में फसल की पैदावार में लगने वाली कुल लागत के साथ-साथ परिवार के सदस्यों की मेहनत की अनुमानित लागत को भी जोड़ा जाता है। जबकि, सी-2 में पैदावार में लगने वाली नकदी और गैर-नकदी के साथ-साथ जमीन के किराए और खेती से जुड़ी अन्य खर्च पर लगने वाले ब्याज को भी शामिल किया जाता है। स्वामीनाथन आयोग ने इसी सी-2 की लागत में ही डेढ़ गुना यानी 50 प्रतिशत अतिरिक्त जोड़कर फसल पर एमएसपी देने की सिफारिश की थी। किसान संगठन इसी फार्मूले पर सभी फसलों की एमएसपी निर्धारित करने की मांग कर रहे हैं। किसी फसल पर एमएसपी का निर्धारण कमीशन फॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड प्राइसेस करती है।
सीएसीपी की रिपोर्ट के मुताबिक, 2023-24 के लिए प्रति क्विंटल गेहूं की फसल पर ए2 की लागत 903 रुपये, ए2+एफएल की लागत 1,128 रुपये और सी-2 की लागत 1,652 रुपये निर्धारित की गई थी। जबकि, 2023-24 के लिए प्रति क्विंटल गेहूं पर एमएसपी 2,125 रुपये तय की गई थी। यदि स्वामीनाथन आयोग का सी2+50 प्रतिशत का फॉर्मूला के आधार पर उत्पादन लागत तय किया जाता तो प्रति क्विंटल गेहूं के उत्पादन लागत पर उसका 50 प्रतिशत (826 रुपये) जोड़कर उसका एमएसपी 2,478 रुपये होता। इस फार्मूले से 2023-24 के लिए ए-2+एफएल फार्मूले पर किसानों को गेहूं का जो एमएसपी मिला वह सी-2 वाले फार्मूले से प्रति क्विंटल 353 रुपये कम मिला। बिहार में ज्यादातर लघु एवं सीमांत किसानों की संख्या ज्यादा है। ये लोग बड़े जोतदारों से ठेका, बंटाई और लीज पर जमीन लेकर खेती करते हैं। इसके लिए उनको प्रति एकड़ 30 से 35 हजार रुपये सालाना जमीन के किराए का भुगतान करना होता है। इस तरह उत्पादन लागत काफी बढ़ जाता है। किसान संगठनो एवं विभिन्न राजनीतिक दलों को चाहिए कि वे ऐसे किसानों को एमएसपी निर्धारण सम्बन्धी सी-2 फार्मूले की जानकारी दें। किसानों की जागरूकता से किसान आंदोलन को बल मिलेगा।
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)