संविधान और पद-ज्ञान

संविधान के मूल ढांचों पर भी बहस जरुरी

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डॉ योगेन्द्र
आपके पास केवल पद होना चाहिए, फिर जो कहेंगे, वही ज्ञान होगा। ज्ञानी होने के लिए किताबें नहीं चाहिए, न ही कोई गुरु। आधुनिक भारत में ज्ञान का स्रोत पद होता है। पद पर बैठ कर अगर नाले की गैस से चाय बना डालें तो तथाकथित ज्ञानी उस पर ताली बजायेंगे और कहेंगे- यह तो नई खोज है। शायद घर में जाकर प्रयोग भी करें, क्योंकि पदधारी ने यह नव ज्ञान दिया है। लोग ऐसे लोगों को वाक पटु कहते हैं और मीडिया कहती है कि ऐसे लोगों के पास ही जनता से कनेक्ट करने का सामर्थ्य होता है। ऐसे लोगों की यह भी ख़ासियत होती है कि वे इतिहास के साथ नहीं चलते, बल्कि इतिहास उनके साथ चलता है। वे नानक को कबीर के साथ बैठाकर संवाद करवा दें, तो यह उनकी युग-कृपा है। ऐसी विभूति कभी-कभी ही धरा पर अवतरित होते हैं। वे चाहें तो खंडहरों को कहाँ से कहाँ स्थापित कर दें। तक्षशिला को असम में या कश्मीर में स्थित कर दें तो आप चकित न हों, न विरोध करें। आप उनके समर्थन में लग जाएँ, क्योंकि वहीं से सुख और समृद्धि का सोता फूटता है।
वह युग गया, जब गुरु ज्ञान का स्रोत होता था। गुरु सत्ता के सामने तन कर खड़ा हो जाता था। अब गुरु जान गया है कि सत्ता के सामने तनने से उसके पीछे सीबीआई और ईडी लग सकती है। इसलिए ज़िंदगी के लिए सेफ यह है कि पदधारियों की हाँ में हाँ मिलायें। स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय के शिक्षकों को देखिए। वहां बक़ायदा शिक्षकों का एक गिरोह बन जाता है जो बड़े अधिकारियों के लिए वसूली का काम करता है। वहां हर चीज़ के लिए रेट फ़िक्स है। प्रमोशन लेना है तो इतना, ट्रांसफ़र करवाना है तो इतना। प्रधानमंत्री कहते हैं कि भ्रष्टाचार पर ज़ीरो टॉलरेंस और कौन सा दफ़्तर है जो ख़रीदा नहीं जा सकता। प्रधानमंत्री के रहते कई राज्यों की सरकारें गिरा दी गई। सिर्फ़ विधायकों की ख़रीद फ़रोख़्त से। कथनी और करनी का यह अंतर जब बड़े लोगों का चरित्र बन जाए तो सामान्य लोगों का क्या है, जिसे दो जून की रोटी भी नहीं मिलती। मैं तो उल्टा ही देख रहा हूँ। कुछ दिनों पहले मैं एक गाँव में गया था। वहाँ ग़रीबी थी, मगर बेईमानी नहीं थी। अगर किसी के घर में कोई बीमार है तो गाँव के लोग इकट्ठे होते हैं। अगर किसी के घर शादी होती है तो वे कुछ न कुछ लेकर पहुंचते हैं। वहाँ ग़रीबी है, मगर हँसने पर पाबंदी नहीं है।
संविधान पर जब संसद में बहस हो रही थी तो किसी ने संविधान पर बहस नहीं की। वे एक दूसरे पर आरोप मढ़ते रहे। प्रधानमंत्री ने कहा कि कांग्रेस को खून चखने की आदत है तो राहुल गांधी ने मनु स्मृति और संविधान को दिखाते हुए कहा कि प्रधानमंत्री मनुस्मृति लाना चाहते हैं। प्रधानमंत्री जी को इतना याद रखनी चाहिए थी कि कांग्रेस के दो-दो प्रधानमंत्री की हत्या हुई है और एक ने तेरह वर्ष की जेल काटी है। संविधान में हुए अबतक के संशोधनों पर बहस होनी चाहिए थी कि ये संशोधन क्यों हुए और आगे क्या संभावना है? संविधान के मूल ढांचों पर भी बहस होनी चाहिए थी, लेकिन सबके पास अपने-अपने जूते थे, वे उसे चलाते रहे।

 

Constitution in Parliament
डॉ योगेन्द्र
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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