नवम्बर क्रांति के बाद सोवियत संघ में हुआ था शिक्षा का सर्वव्यापीकरण

नवम्बर क्रांति के बाद सोवियत संघ में डाल्टन की शिक्षा पद्धति को ख़ारिज किया

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ब्रह्मानंद ठाकुर
जार निकोलस प्रथम का मानना था कि शिक्षा तानाशाही की दुश्मन होती है। इसलिए किसानों, मजदूरों और अन्य श्रमिक वर्ग के लिए रूस मे माध्यमिक और उच्च शिक्षा का दरबाजा बंद कर दिया गया था। 1917 में नवम्बर क्रांति के सफल होते ही सरकार ने शिक्षा को अपनी सर्वोपरि प्राथमिकता में शामिल करते हुए यह घोषणा की, कि सोवियत संघ मे शिक्षा सर्वव्यापी, नि:शुल्क और अनिवार्य होगी।
क्रांति के बाद के तीन-चार वर्षों तक प्रथम विश्वयुद्ध, गृहयुद्ध, बाहरी हस्तक्षेप और 1921-22 का भयंकर अकाल जैसी परिस्थितियों के कारण समाजवादी सरकार शिक्षा सम्बन्धी अपने एजेंडे को समय से लागू नहीं कर सकी। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इस दिशा में तेजी से काम शुरू हुआ। प्रारम्भ में इस कार्य को आगे बढ़ाने में काफी कठिनाई हुई। पुराने शिक्षकों ने सोवियतों के अधीन शिक्षा देना अस्वीकार कर दिया। जिन लोगों ने ऐसे हालात में शिक्षण का दायित्व स्वीकार किया, उन लोगों ने भी अपने छिपे एजेंडे के तहत समाजवादी सरकार के विरुद्ध लोगों को भड़काने का काम शुरू कर दिया। शिक्षा की आधारभूत संरचना पहले से काफी कमजोर थी। जर्जर स्कूल भवन, पुराने संसाधन और भिन्न-भिन्न शिक्षा पद्धतियों के कारण अनेक समस्याएं पैदा हो रहीं थीं। इस स्थिति में शिक्षण संस्थानों में आधारभूत संरचनाओं का विकास, जरूरत के अनुरूप श्रेष्ठ शिक्षापद्धति का चुनाव और उसे ठीक से लागू करना समाजवादी सरकार के लिए बड़ी चुनौती थी। बाबजूद इसके अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति की बदौलत समाजवादी सरकार ने वह सब कर दिखाया जिसकी तब किसी ने कल्पना तक नहीं की थी। 1918 में जहां सिर्फ 8 लाख छात्र विद्यालयों में पढ रहे थे, 1938 मे यह संख्या बढ़कर 3 करोड 40 लाख तक पहुंच गई। सोवियत संघ में हर किसी के लिए नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा लागू कर दी गई। केवल मास्को शहर में 1935 मे 70 और 1936 मे 120 ऐसे स्कूल खोले गये जिसमें हर स्कूल में 800 लड़के-लड़कियां पढ सकें। दूसरी पंचवर्षीय योजना में डाल्टन की शिक्षा पद्धति को पूरीतरह खारिज कर दिया गया। योग्य, कर्मठ और विवेकशील नागरिक पैदा करने वाले पाठ्यक्रम लागू किए गये। योग्यता के मुताबिक काम और जरूरत के अनुसार वेतन जैसे समाजवादी नियम के आधार पर शिक्षा की नींब डाली गई।
सोवियत समाजवादी क्रांति के 15 बर्ष बाद जार परिवार की बेटी इरिना स्कारियातिना अपने अमरीकी पति के साथ 1932 में सोवियत संघ आयी थी। इस दौरान उसने सोवियत रूस का भ्रमण किया। वहां की शिक्षा व्यवस्था देखने वह स्कूलों में गई। पूरे देश में शिक्षा को निचले पायदान से शीर्ष तक ले जाने की कोशिश ने उसे अभिभूत कर दिया। उसने लिखा , क्रांति से पहले 80 लाख छात्र प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में जाते थे। क्रांति के बाद महज कुछ वर्षों में यह संख्या ढाई करोड़ पार कर गई है। इरिना ने अपने पति के साथ स्कूलों का भ्रमण किया। छात्र -छात्राओं से रू-ब -रू हुई। उनसे सवाल पूछे। बच्चे सिर्फ़ पाठ्य पुस्तक ही नहीं पढ़ते, साहित्य, कला, संगीत, चित्रांकन और वाद विवाद में भी पारंगत थे। इरिना ने लिखा——-अद्भुत।

 

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ब्रह्मानंद ठाकुर
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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