महाराष्ट्र के चुनाव में आरक्षण की आग

आरक्षण के साथ लगातार छल प्रपंच उचित नहीं

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बाबा विजयेन्द्र
महाराष्ट्र के चुनाव में आरक्षण फिर केंद्रीय मुद्दा बन गया है। महाविकास आघाड़ी गठबंधन ने मुसलमानों को दस प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा की है तब से बवाल मचा हुआ है। आरक्षण भूत नहीं, बल्कि भारत का वर्तमान है। आरक्षण के खिलाफ और समर्थन में यह समाज कभी आगे और कभी पीछे आता रहा है। यह सत्य है कि हमारे पुरखों द्वारा अत्याचार किया गया। अपने ही बंधु-बाँधव के साथ अंतहीन और असह्य अत्याचार हुआ। इस भोगे हुए यथार्थ को शब्दों की जुगाली कर झूठलाया नहीं जा सकता है। इस राष्ट्र को अगर एक राष्ट्र के रूप में बने रहना था तो आरक्षण एक मात्र उपाय था। आरक्षण हर स्तर के शोषण और अत्याचार का एक मात्र उपचार था।

सदियों की परकीय दासता हमारे सामने थी और आंतरिक विसंगतियाँ भी थी। बहुसंख्यकों को परकीय दासता की पीड़ा तो कम थी, पर स्थानीय दासता अवश्य ही जानलेवा थी। बगल की दासता इन्हें मनुष्य होने का अधिकार ही नहीं दें रही थी। हमारे रहनुमाओं ने परकीय दासता को बड़ा सत्य घोषित किया और स्थानीय दासता को छोटा सत्य घोषित किया। हमने पहले बड़े सत्य को हासिल किया और अंग्रेजों से मुक्ति पायी। आजादी का अवसर सभी के लिए समान हो, पर आजादी के बाद भी यथास्थितिवादी शक्तियां वंचितों को अधिकार देने के पक्ष में नहीं रही। सामंती संस्कार ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था। बाबासाहेब ने संविधान में जो शक्तियां दी, उसका व्यापक प्रभाव समाज पर पड़ा। धीरे ही सही, पर आरक्षण ने भारतीय समाज को एकजूट किया।

आरक्षण के विरोध के असंख्य तर्क दिए जा रहे हैं पर आज किसी भी दल की हिम्मत नहीं है कि इसे खारिज कर दे। आरक्षण के खिलाफ आज भी षड्यंत्र की कोई कमी नहीं है, बावजूद आरक्षण को रोकना मुश्किल है।
मंडल कमीशन लागू हुआ। बहुत ही पीड़ाजनक स्थिति बनी। इसके खिलाफ में आत्मदाह भी हुए, लेकिन यह रुका नहीं। खिलाफ में संघर्ष तो हुए ही इसे लागू करने के उससे ज्यादा संघर्ष हुए। सामाजिक न्याय अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता ही रहा।

पिछले कुछ वर्षों से जाति जनगणना की बात उठी है। व्यवस्था लाख ना नुकड़ की, पर इसे झुकना पड़ा। हिस्सेदारी और भागीदारी के प्रश्न से पीछा छुड़ाना किसी के लिए भी मुश्किल है। केंद्र सरकार ने जनगणना कराने की घोषणा कर दी है। बावजूद इसमें कई पेंच हैं जिसे समझना जरूरी होगा। गणना केवल जन की या जाति की भी? आरक्षण हासिये की जिंदगी को मुख्यधारा में लाएगा। जबतक यह हो नहीं जाता तबतक हाहाकार मचा ही रहेगा।

फिलहाल महाराष्ट्र और झारखण्ड चुनाव सर पर है। यह चुनाव फिर आरक्षण के सवाल से घिर गया है। मुस्लिम को दस प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा महा विकास आघाड़ी गठबंधन ने की है। वैसे इनके अपने तर्क हैं। भाजपा ने इस फैसले का विरोध किया है। यह धर्म आधारित आरक्षण संविधान के खिलाफ है। धर्म के आधार पर आरक्षण का कहीं कोई प्रावधान नहीं है। फिर यह क्यों? आखिर यह किसके हित के खिलाफ है? क्या यह पिछड़ों की हक़मारी नहीं है?

भाजपा पागल हुई जा रही है। जो पार्टी जनगणना तक कराना नहीं चाहती वह आरक्षण के पक्ष में इतनी उताबली क्यों हो रही है? कांग्रेस को भी समझना चाहिए कि आरक्षण गरीबी- उन्मूलन कार्यक्रम नहीं है। मुस्लिम समाज के पिछड़ेपन को दूर करने का और भी तरीका हो सकता है। इन्हें आगे लाने के लिए और भी कई आर्थिक सुधार के कार्यक्रम हो सकते हैं फिर आरक्षण ही क्यों?

बहाना कुछ भी हो आरक्षण को टारगेट किया जा रहा है। समाज निर्माण का काम संवेदना और संविधान के आधार पर होगा। केवल संवेदना से बात नहीं बनेगी। संविधान द्वारा दी गयी शक्ति को ईमानदारी से लागू करना होगा। आरक्षण के साथ लगातार छल प्रपंच हो रहा है। यह उचित नहीं है।

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