केजरीवाल की शह और मात

अन्ना आंदोलन के केंद्र में जन लोकपाल था। आज कल यह जन लोकपाल कहाँ हैं? इसे भ्रष्टाचार रोकने के लिए रामबाण माना गया था।

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दिल्ली से लौटा हूँ। उसका असर मन पर है। खास कर दीवारों पर सटे चुनावी पोस्टर को लेकर। जब मैं वहाँ था तो दीवारों पर नब्बे फीसदी पोस्टर बीजेपी के लगे थे। कहीं कहीं आम आदमी पार्टी के। कांग्रेस के पोस्टर मैंने कहीं नहीं देखे। ऑटो पर भी बीजेपी के पोस्टर लगे थे और आम आदमी पार्टी के भी। ज्यों-ज्यों चुनाव करीब आयेगा, पोस्टर वार और तेज होगा। एक दूसरे पर आक्रमण भी। राजनैतिक आक्रमण आजकल कमर के नीचे भी होता है। दिल्ली की राजनीति में अरविंद केजरीवाल पहले फैक्टर हैं। वे भी सर्वगुण संपन्न हैं। वे जीत के लिए कुछ भी कर सकते हैं। अन्ना आंदोलन के एक तरह से नायक रहे। उन्होंने जन लोकपाल का नारा दिया और जीरो भ्रष्टाचार की बात कही। आज जिस पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के लिए ‘भारत रत्न’ की माँग कर रहे हैं, उसपर भ्रष्टाचार को लेकर न केवल तीखे हमले किए, बल्कि एक पुस्तिका भी छापी। अब उनके लिए भारत रत्न की माँग कर रहे हैं, क्योंकि वे सिख हैं और केजरीवाल को सिख वोट की जरूरत है। उन्होंने ग्रंथियों को 18 हजार की सम्मान योजना की घोषणा यों ही नहीं की है। भ्रष्टाचार के आरोपों को पुख़्ता करने में कैग के अध्यक्ष विनोद राय ने भी इसमें भारी मदद दी। उन्होंने दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की तो ऐसी तैसी कर दी। आरएसएस ने अरविंद केजरीवाल को बहुत कुछ मुहैया करवाया। आज उन्होंने जो चिट्ठी आरएसएस चीफ मोहन भागवत को लिखी है, उसमें मदद की ही याचना है। वैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अरविंद केजरीवाल को बधाई देनी चाहिए कि उनके द्वारा बिछाये गये रेड कार्पेट पर सवार होकर वे प्रधानमंत्री बने। कांग्रेस पर लगे भ्रष्टाचार के सारे आरोप पता नहीं कहाँ हैं? न प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और न ही मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल किसी कांग्रेसी को भ्रष्टाचार के मामले में जेल भेज सके।
अन्ना आंदोलन के केंद्र में जन लोकपाल था। आज कल यह जन लोकपाल कहाँ हैं? इसे भ्रष्टाचार रोकने के लिए रामबाण माना गया था। अरविंद केजरीवाल बता सकते हैं कि जन लोकपाल दिल्ली में कौन हैं और पिछले दस सालों में वे गुमनामी में क्यों पड़े हैं? दरअसल यह एक झूठ था जिसे उन्होंने गढ़ा। उन्होंने कहा था कि मुख्यमंत्री बनने के बाद गाड़ी- बंगला नहीं लेंगे, लेकिन उन्होंने इसका जम कर इस्तेमाल किया और मुख्यमंत्री भवन की मरम्मती में हुए करोड़ों रूपये के खर्चे पर विवाद भी उठे। भ्रष्टाचार के आरोपों में वे भी घिरे और उनके मंत्री भी। वैसे मैं मानता हूँ कि इसमें बीजेपी का षड्यंत्र ज्यादा है। दिल्ली में  केजरीवाल राज आने के बाद अन्ना हजारे महाराष्ट्र में चिंता मुक्त होकर बैठे हैं। इसके बावजूद मुझे मुहल्ला क्लीनिक और सरकारी स्कूलों को बेहतर बनाने की कोशिशें बहुत अच्छी लगती हैं। चुनाव में एक दूसरे की सफलताएँ- असफलताएँ गिनायी जायेंगी, मगर सवाल है कि दिल्ली में हार- जीत का असर क्या पड़ेगा? अरविंद केजरीवाल अगर जीतते हैं तो वे कांग्रेस पर टूट पड़ेंगे और इंडिया ब्लॉक से उसे निकालने की पुरजोर कोशिश करेंगे। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जब इंडिया ब्लॉक की नेत्री बनने की इच्छा की, तब अरविंद केजरीवाल, अखिलेश यादव, लालू यादव और शरद पवार ने उसका समर्थन किया। वजह यह है कि इन लोगों को कांग्रेस से ही खतरा है। कांग्रेस जैसे बढ़ेगी, वैसे ही इन क्षेत्रीय दलों पर संकट गहरायेगा। दिल्ली में अरविंद केजरीवाल कांग्रेस पर बहुत आक्रमक हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि दलित और मुस्लिम वोट अगर कांग्रेस की ओर मुड़े और कांग्रेस का वोट प्रतिशत बढ़ा तो उनकी हार पक्की है। कांग्रेस चाहती है कि वह किसी भी तरह केजरीवाल की राजनीति को पटकनी दे दे, चाहे बीजेपी ही क्यों न जीत जाये, क्योंकि पंजाब, गुजरात, हरियाणा जैसे राज्यों में केजरीवाल प्रतिद्वंद्वी हैं।

 

 

Kejriwal's checkmate
डॉ योगेन्द्र

 

(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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