देश की पहली महिला शिक्षिका सावित्री बाई फुले

भारतीय शिक्षिका होने का गौरव सावित्री बाई फुले को प्राप्त हुआ था

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ब्रह्मानंद ठाकुर
17 साल की उम्र में जिस युवती ने देश में महिला शिक्षा का अलख जगाया, उसका नाम सावित्री बाई फुले है। 3 जनवरी को उनकी 194वी जयंती है। आज ही के दिन 1831 ई. मे इनका जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले के नया गांव में हुआ था। अपने पति महात्मा ज्योतिराव फुले से कदम में कदम मिला कर इन्होंने पहली बार महिला शिक्षा का गुरुतर दायित्व संभाला। 1 जनवरी 1948 के दिन पूना के भिडेवारा में लड़कियों का जो पहला स्कूल खुला था ,उसकी पहली भारतीय शिक्षिका होने का गौरव सावित्री बाई फुले को प्राप्त हुआ था। उनके लिए यह काम तब बिल्कुल आसान नहीं था। महाराष्ट्र में पेशवाओं का शासन था। अछूतों पर बड़ी कड़ी पाबंदी थी। उन्हें सार्वजनिक स्थलों से पानी भरने तक का अधिकार नहीं था। ऐसे में इनकी शिक्षा की बात भी कल्पना से परे थी। फिर भी सावित्री बाई फुले ने अपने पति के सहयोग से दलितों,वंचितों में शिक्षा का प्रचार शुरू कर दिया। तब ऊंची जाति के लोगों ने इनके खिलाफ मुहिम छेड़ दिया। शिक्षा के प्रचार के लिए इस दम्पति को अपना घर छोड़ना पड़ा। फिर भी ऊंची जाति वालों का विरोध जारी रहा। वे उन्हें गालियां देते, धर्म भ्रष्ट करने वाली कहते। स्कूल जाते हुए सावित्री बाई पर गंदी फब्तियां कसते, उनके कपड़ों पर गोबर और कीचड़ फेंकते। अपनी धुन की पक्की उस महिला ने इसकी तनिक भी परवाह नहीं की। वह अपने साथ एक अतिरिक्त साड़ी लेकर स्कूल जाती। विरोधी रास्ते में उसके कपड़े पर कीचड़ और गोबर फेंकते। उनके कपड़े खराब हो जाते थे। स्कूल पहुंच कर सावित्री बाई अपनी साड़ी बदल कर लड़कियों को पढ़ाने में जुट जाती थीं। एक बार एक युवक ने स्कूल जाते हुए सावित्री बाई फुले के साथ बदतमीजी कर दी। उसे छेड़ने की कोशिश की। गुस्से से आग-बबूला सावित्री बाई ने उसकी गाल पर दो थप्पड़ जड़ दिए। इस घटना के बाद फिर किसी ने उसकी राह रोकने की हिम्मत नहीं की। वह एक शिक्षिका के साथ-साथ समाज सुधारक भी थीं। उन्होंने समाज के दबे-कुचले, दलितों के उत्थान के साथ-साथ बाल विवाह रोकने के क्षेत्र में अपनी उल्लेखनीय भूमिका का निर्वाह किया। वह निर्वैयक्तिक मातृत्व की जीवंत प्रतीक थी। उसने एक आश्रम की स्थापना की थी। उस आश्रम में पलने वाले अनाथ बच्चों की देखभाल वह सगी मां की तरह करती थी। ऐसे बच्चे उसके लिए अपनी संतान की तरह थे। उसी आश्रम में एक महिला द्वारा जन्म दिए गये एक बच्चे को उसने गोद लेकर उसकी परिवरिश की। पढ़ा-लिखा कर उसे डाक्टर बनाया। बाद में उसका अन्तर्जातीय विवाह भी कर दिया। उसका नाम यशवंत राव फुले था।
सावित्री बाई फुले का जीवन संघर्ष और उनके प्रगतिशील विचार नई समाज व्यवस्था की स्थापना के संघर्ष में आज भी प्रेरणा के स्रोत बने हुए हैं। जरूरत है ऐसी महान महिला के जीवन संघर्ष से जन-जन को परिचित कराने की।

 

Savitribai Phule was the first woman teacher of the country
ब्रह्मानंद ठाकुर

 

(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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