डॉ योगेन्द्र
विदेश मंत्री जयशंकर अमेरिका से लौट आये हैं। जब वे अमेरिका में थे तो देश में यह खबर शबाब पर थी कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए निमंत्रण लाने गये हैं। ट्रम्प अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने वाले हैं। शपथ समारोह में शामिल होने के लिए चीन के राष्ट्राध्यक्ष को निमंत्रण दिया गया तो उन्होंने इसे ठुकरा दिया। इधर हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में चर्चा है कि वे निमंत्रण पत्र के लिए लालायित हैं। वैसे मुझे यह नहीं लगता कि कोई प्रधानमंत्री निमंत्रण पत्र के लिए अपने विदेश मंत्री को भेजेगा। जब भारत के प्रधानमंत्री शपथ लेते हैं तो अमेरिका के प्रधानमंत्री कहाँ आते हैं या उन्हें बुलाया जाता है? भारत जनसंख्या में नंबर वन है। सरकार भी यहाँ की निकम्मी रहती है। विज्ञान और तकनीक में बहुत भरोसा नहीं है। वह तो जय श्रीराम से ही संतुष्ट है। पिछले दस वर्षों में बहुसंख्यक हिंदू खतरे में है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का राजधर्म है कि पहले वे हिन्दू को बचायें। विज्ञान का क्या है? वह तो हर रोज बदलता है। जय श्रीराम स्थायी हैं। उनके लिए नये-नये घर दरवाजे चाहिए। जब तक उन्हें नये घर नहीं मिल जाते, तब तक हिन्दू असुरक्षित रहेंगे। अमेरिका में जय श्रीराम नहीं हैं। इसलिए वह नयी तकनीकों के विकास में लगा है। नये-नये उत्पाद पैदा कर रहा है। उसे नये उत्पाद बेचने के लिए नया बाज़ार चाहिए। हमें नया बाजार नहीं चाहिए, क्योंकि हमें नये उत्पादन में भरोसा नहीं है। अमेरिका जैसे मुल्क उत्पादन करता है, हम खरीदते हैं। खरीदने वाला बड़ा होता है। हमें विश्व गुरू बनने है। विश्व गुरू बनने के लिए खरीदारी जरूरी है।
अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, रूस, चीन आदि हमारे सामने क्या टिकेंगे? हमने सदियों पूर्व पुष्पक विमान बनाया था। हवा से हमने बात की है। आदमी तो आदमी बंदरों ने भी समुद्र में पुल बनाये हैं। अमेरिका झूठी शेखी बघारता है। हमारे पास क्या नहीं था? अमेरिका के पास तो चोरी का माल है। हमारी चीजें ही चुरायीं हैं। इसलिये हमें चीजें बनानी नहीं हैं, खरीदने है। हम दुनिया के लिए बाजार हैं। विदेशी मुल्कों को क्या पता कि जो मजा खरीदने में है, वह बेचने में नहीं है। हम दूसरे मुल्कों से विमान खरीदते हैं। हमें उसके एवज में सुविधा शुल्क मिलता है। जनता को मैंने जय श्रीराम दे दिया, सुविधा शुल्क हमारे पास है। इतने लंबे चौड़े लोकतंत्र की जनता को क्या चाहिए ? अमेरिका से निमंत्रण पत्र आये, न आये। भांड में जाये निमंत्रण पत्र। हम खरीदार लोग हैं। जिसे सामान बेचना है, वह हमें खुश करे। यह उनकी मजबूरी है। आपने बात नहीं समझी? रस्सी जल जाती है, ऐंठन नहीं जलती। जैसे जमीदारों की हालत हुई। जमींदारी चली गई, लेकिन दिवा स्वप्नों में जमींदार खोये रहे। जो भी हो भाई लोग। हम वो लोग हैं जो प्रभु को भी घर मुहैया करते हैं। हमें पता है कि किस प्रभु को कितने घर चाहिए। हमारे प्रभु के समक्ष किसी के प्रभु नहीं टिकते। प्रभु ने हमें बनाया होगा। उसने बनायी होगी पूरी सृष्टि। मगर हमारा फर्ज है कि ऐसे प्रभु को एक सुनिश्चित घर दें। बेचारे सदियों से भटक रहे थे। अब उनके भक्तों में ताकत आयी है। ये भक्त किसी भी कीमत पर प्रभु को आलीशान घर दिलवा कर ही मानेंगे।
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)