झूठ के पाँव, ठाँवें ठाँव

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झूठ के पाँव नहीं होते। वह बिना पाँव के चलता है । यहॉं- वहाँ, जहॉं- तहाँ । पाँव के बिना ग़ज़ब की रफ़्तार होती है उसमें।वह दिल्ली से चलता है तो क्षण में राँची पहुँच जाता है । मैं राँची में रहता हूँ, इसलिए यहाँ जल्दी बुला लिया। वरना , वह कहीं भी पहुँच सकता है। अंडमान, अरुणाचल, नागालैंड- सब जगह । वह समुद्र की लहरें जिस विवेकानंद रॉक से टकराती है, वहाँ भी पहुँच जाता है और कपिलवस्तु में भी , जहॉं गौतम पहली बार रोये थे। झूठ ग़ज़ब होता है, वह वहाँ भी जा सकता है जहॉं कोई नहीं जाता। बेतार का असली तार वही है। पहले झूठ धीमे धीमे चलता था। फैलने – फूलने में वक़्त लगता था। अब जैसे ही कोई झूठ को जन्म देता है, उसके लिए सवारी तैयार रखता है । झूठ को बड़ा होने में कोई देर नहीं होती । जन्म लिया, सीधे जवान हुआ और लोगों की चेतना में विस्फोट किया और ख़त्म हुआ । अब उसके बहुत से वाहक हैं । सैकड़ों चैनल, सोशल मीडिया और यूट्यूब झूठ की ऐसी बम बरसा करते हैं कि सच किसी कोने में थरथराता रहता है ।

आदमी आज सच से परेशान नहीं है । झूठ की फ़ौज के पास इतने घातक हथियार हैं कि सच सड़क पर निकलना ही नहीं चाहता। कोई ग़लत काम करता है तो जज उसे सजा देता है, मगर आज ऐसा समय है कि सच पर किसी कोर्ट में सुनवाई नहीं हुई, न उस पर केस मुक़दमा हुआ, लेकिन वह सजा काट रहा है ।वह भी खुली जगहों में , जहॉं कोई बंदिश नहीं है । शायद साल था 2016। मेरे ऊपर भूत सवार हुआ कि कोलकाता से गंगोत्री तक की यात्रा की जाय। कोलकाता से चला तो मुर्शिदाबाद के लालगोला में ठहरा । रात्रि विश्राम के लिए । वहाँ एक खुली जेल है।उस जेल की ख़ासियत है कि सामान्य लोगों की तरह क़ैदी सुबह काम के लिए शहर निकलते हैं और शाम को लौट कर जेल आ जाते हैं । वहाँ उनका परिवार भी रहता है । जज ने जो भी सजा मुक़र्रर की है, उसे वहाँ वे काटते हैं । जेल के गेट पर भी कोई भारी बंदोबस्त नहीं है। लेकिन लालगोला की एक और दिलचस्प कहानी है , जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मोहन भागवत, हेमंत बिस्वा सहित उन तमाम लोगों को जानना चाहिए, जो झूठ फैला कर अपने को तो छोटा करते ही हैं, आम लोगों में भी ज़हर भरते हैं ।

लालगोला मुर्शिदाबाद ज़िले में है। मुर्शिदाबाद में 66 फ़ीसदी मुस्लिम है। देश का जब बँटवारा होने लगा तो तय हुआ था कि आबादी के अनुसार भूखंड बंटेगा । पाकिस्तान को वह इलाक़ा मिलेगा, जहॉं मुस्लिम ज़्यादा होगा। मुर्शिदाबाद में मुस्लिम की जनसंख्या बहुत थी , वह पाकिस्तान में चला गया। 14 अगस्त 1947 को वहाँ पाकिस्तान का झंडा फहराया गया। मुर्शिदाबाद का ज़मींदार एक मुस्लिम था। उसने कहा कि उसका इलाक़ा पाकिस्तान में नहीं जायेगा । वह भारत में रहेगा । सो, वहाँ भारत का झंडा चार दिनों बाद 18 अगस्त को फहराया गया। अब मुर्शिदाबाद अपने कर्म पर रोये या गाये? क्या करे? उस पर ग़ज़ब कहानी है पद्मा की। गंगा का एक स्रोत पद्मा बन जाता है। वह बांग्लादेश में प्रवेश करती है और फिर भारत में आकर समुद्र से मिलती है। लालगोला की गायों के कान में चिप्स लगी है । बेचारी सीमा तो पहचानती नहीं! वह जानवर है । मनुष्य सीमा पहचानता है। भारत गायें चरती हुई बांग्लादेश देश जाती हैं और शाम को भारत चली आती हैं ।

अकथ कहानी है। फ़िलहाल झूठ की रफ़्तार तेज है। आइए, हम सब भी झूठ की नदी में गोते लगायें और नदी किनारे सच को बिसूरते हुए देखें । तब तक ज़रूर यह दृश्य देखें, जब तक घर – दरवाज़ों से धूल नहीं उड़ने लगे। श्मशान की चीख कानों के पर्दे न फाड़ दे। लाशों की चिरायंध गंध आपकी चेतना को तहस-नहस न कर दे।

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