पब्लिक पालिका ही लोकतंत्र को बचा सकती है

लोकतंत्र पर पूंजीतंत्र हावी

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डॉ योगेन्द्र
अमेरिका से खबर आई है। वहाँ के जज दहशत में हैं। राष्ट्रपति ट्रंप के खिलाफ जो भी मुकदमे जिन जजों के मातहत चल रहे हैं, उन जजों को विभिन्न तरीकों से डराया जा रहा है। ट्रंप महोदय ने चुनाव प्रचार के दौरान जजों पर कड़ी कार्रवाई की चेतावनी दी थी। बम से मारने की धमकियाँ देने, घर के पते पर पुलिस भेजने के लिए गुमनाम कॉल, पिज्जा डिलीवरी के जरिए जजों को धमकियाँ मिल रही हैं। एक संघीय जज ने ट्रंप प्रशासन के खिलाफ फैसला सुनाया तो ट्रंप ने उस जज के खिलाफ महाभियोग की मांग कर दी। नतीजा हुआ कि जजों पर सोशल मीडिया में तरह-तरह के कमेंट होने लगे। यहाँ तक कि जज को हथकड़ी लगाये हुए पोस्टर सोशल मीडिया पर आम हो गए। यानी माइट इज राइट। भारत में जज लोया का अता पता नहीं चला। कितने ही जज और पुलिस कर्मी सच्चाई कहने और लिखने से डरते हैं। वे गिनी पिग होते जा रहे हैं। जिनके पैरों में घुंघरू बँधे हैं, वे तो नाचेंगे। जिसके हाथ में विधायिका है, वे अपने को तानाशाह समझते हैं। लोकतंत्र हो या कोई तंत्र हो, उसमें गद्दी पर बैठने वाला खुद को सर्वेसर्वा समझता है। और उससे अगर पूंजीतंत्र की साठगांठ हो जाए, तब तो एक तो करैला और ऊपर से नीम। अगर आपके पास पावर नहीं है तो आपकी कोई हैसियत नहीं है। ट्रंप और मोदी तरह की सरकारों में लोक का तंत्र सुरक्षित नहीं रह सकता।
अगर लोकतंत्र बचाना है तो लोक को एक जीवंत इकाई बनाना है। आज कल लोक क्या है? दस-पाँच किलो के लिए रिरियाने वाला और स्वाभिमान से रिक्त कोई मांस का लोथड़ा! ऐसे लोगों को तो यह भी नहीं पता कि लोकतंत्र होता क्या है और हमारे जीवन के लिए क्यों जरूरी है? लोक को एक सृजनशील और उत्तरदायी बनाना है। जो अपने, अपने परिवार, गाँव, जिला, राज्य और देश के निर्माण में फैसला ले सके। यह तब होगा, जब लोक को अधिकारों और कर्तव्यों से संपन्न करेंगे। आज लोक को देखिए। वह अपने उद्धार के लिए किसी मसीहा की तलाश में है। मसीहा इस कमजोरी को समझता है और मसीहा बने रहने के लिए मांस के छोटे-छोटे टुकड़े फेंकता रहता है। लोक को लगता है कि मांस का टुकड़ा जो दे रहा है, वह तो मुफ्त में दे रहा है। उसने कोई काम तो किया नहीं है। इससे ही वह खुश हो जाता है और वह यह नहीं समझता कि इससे उसकी आदमियत को चुनौती दी जा रही है और उसे जानवर बनाया जा रहा है। मानुष के ऊपर कुछ नहीं है। मानुष होना बहुत बड़ी बात है। यह मानुष- बोध छीना जा रहा है। ऐसी दशा में जनतंत्र की पूरी संरचना को नये सिरे से रचना होगा। पब्लिक की ऐसी पालिका बनानी होगी, जिसमें जनता निर्णय ले सके। वहाँ साहित्य, दर्शन, विज्ञान, सांस्कृतिक कार्यक्रम का पूरा इंतजाम हो। सामूहिकता जिसके केंद्र में हो। पब्लिक पालिका की एक सरंचना पंचायत से लेकर केंद्र तक रहेगी। सभी स्तर की पालिका एक सक्षम इकाई की तरह काम करेंगी। अभी के सिस्टम में केंद्रीकरण है। पब्लिक पालिका का आधार विकेंद्रीकरण होगा। पावक का केंद्रीकरण पब्लिक को लुंजपुंज बना देता है। ग्राम पालिका को भी बजट बनाने, कर वसूलने, झगड़ों का निपटारा करने और स्थानीय प्रशासन को भी नियंत्रित करने का अधिकार होगा।

 

Public Palika is democracy
डॉ योगेन्द्र
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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