महिला सम्मान की उम्मीद और इनसे?

महिला सम्मान की बात केवल राजनैतिक प्रपंच

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निर्मल रानी
हमारे समाज में महिला हितों व उनके सम्मान की बातें यदि किसी वर्ग द्वारा सबसे अधिक की जाती हैं तो वह है देश का राजनैतिक वर्ग। इन्हीं के मुंह से समय समय पर महिला सम्मान में ऐसे-ऐसे लुभावने शब्द गढ़े व निकाले जाते हैं जिन्हें सुनकर एक बार तो यही धोखा होता है कि भारतीय पुरुषों विशेषकर राजनेताओं से अधिक महिला सम्मान की चिंता तो शायद पूरी दुनिया में किसी को भी नहीं होगी। कभी कन्या पूजन, कभी देवी, कभी पूज्या, कभी लाडली बहना, कभी लखपति दीदी, तो कभी प्यारी दीदी, कभी आधी आबादी जैसे अनेक लोकलुभावन नामों से पुकारा जाता है तथा उनके हित में ऐसे ही नामों की योजनायें भी चलाई जाती हैं। परन्तु सही मायने में यह सभी राजनैतिक प्रपंच केवल महिलाओं के वोट बैंक साधने मात्र के लिए ही किये जाते हैं। इस पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं की वास्तव में क्या इज्जत है इसे समझने के लिये केवल एक ही तर्क पर्याप्त है कि भारत में प्रचलित लगभग सभी गलियां महिलाओं को ही केंद्रित कर गढ़ी गयी हैं। मां बहन की गालियां तो लोग देते हीं हैं परन्तु यदि सबसे हल्की गाली यानी कोई किसी को ‘साला’ भी कहता है तो भी वह उसकी बहन को ही गरिया रहा होता है। सदियों से ऐसे ही धारणा पाले हुये इस पुरुष प्रधान समाज से महिलाओं द्वारा मान सम्मान आदर सत्कार सुरक्षा या संरक्षण की उम्मीद करना कतई बेमानी है और यह महिलाओं द्वारा केवल अपने को धोखे में रखना है।
काफी दिनों से एक प्रवृति यह भी देखी जा रही है कि पहले लोग अपनी विकृत सोच को अपने जहरीले बोल के द्वारा बाहर निकलते हैं। उसके बाद जब उन की बदकलामी के चलते उनपर दुनिया थूकने लगती है तो बड़ी ही चतुराई से यह सधे हुये शब्दों में मुआफी मांगकर ‘बगुला भगत’ बन जाते हैं। जैसे अभी पिछले दिनों दिल्ली भाजपा नेता रमेश बिधूड़ी द्वारा किया गया। रमेश बिधूड़ी 2014 व 2019 में दो बार दक्षिणी दिल्ली से सांसद रह चुके हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उन्हें लोकसभा प्रत्याशी तो नहीं बनाया था परन्तु इस बार बिधूड़ी को भाजपा ने कालकाजी विधानसभा सीट से संभवतः अपना प्रत्याशी तो बनाया है परन्तु उनकी बदज़ुबानी के चलते उन्हें चुनावी मैदान से हटाये जाने की खबरें सुनाई देने लगी हैं। पिछले दिनों रमेश बिधूड़ी ने अपने चुनाव क्षेत्र में एक जनसभा को संबोधित करते हुये कहा कि- ‘लालू ने वादा किया था कि बिहार की सड़कों को हेमा मालिनी के गालों जैसा बना दूंगा, लेकिन वे ऐसा नहीं कर पाया। मैं आपको विश्वास दिलाता हूं, जैसे ओखला और संगम विहार की सड़कें बना दी हैं, वैसे ही कालकाजी में सारी की सारी सड़कें प्रियंका गांधी के गाल जैसी बना दूंगा।’ दूसरी सभा में विधुड़ी ने अपने विरुद्ध आम आदमी पार्टी की प्रत्याशी व दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी के सरनेम को लेकर इसी तरह की ओछी टिप्पणी करते हुये उनके बुज़ुर्ग पिता तक को अपनी घटिया टिप्पणी में शामिल कर लिया। उसके बाद बड़ी ही शातिराना अंदाज में मुआफी मांगकर मामले को रफा दफा करने की कोशिश की परन्तु तब तक उनके भीतर का विकार बाहर निकल चुका था। अपनी व अपनी पार्टी की घोर फजीहत के बाद विधुड़ी ने यह कहकर अपना मुंह छुपाने की कोशिश की कि – “मेरा आशय किसी को अपमानित करने का नहीं था। परंतु फिर भी अगर किसी भी व्यक्ति को दुख हुआ है तो मैं खेद प्रकट करता हूँ।”
इसी दिल्ली भाजपा के नेता प्रवेश वर्मा ने दिल्ली के पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान शाहीन बाग के आंदोलन का जिक्र करते हुये यहाँ तक कह दिया था कि- ‘दिल्ली के लोगों को सोच-समझकर फैसला लेना होगा। ये लोग आपके घरों में घुसेंगे, आपकी बहन-बेटियों को उठाएंगे, रेप करेंगे, उनको मारेंगे’। इसी तरह भाजपा के बंगलुरु से फायर ब्रांड सांसद तेजस्वी सूर्य ने 2015 में ट्वीट कर अपना अधकचरा ज्ञान सांझा करते हुये कहा था कि- 95 प्रतिशत अरब महिलाएं ऐसी हैं जिन्‍होंने पिछले कई वर्षों में ऑर्गजेम (कामोत्तेजना की चरम अवस्था) का अनुभव नहीं किया है। हर मां ने बच्‍चे बस सेक्‍स की वजह से पैदा किए हैं न कि प्‍यार की वजह से।’ सूर्या की इस घटिया व निम्न स्तरीय टिप्पणी के बाद कई अरब देशों ने इस बयान पर आपत्ति जताई थी। गोया ऐसे बयानों से न केवल महिलाओं के प्रति इनकी दुर्भावना व ओछापन जाहिर होता है बल्कि यह देश की बदनामी का भी सबब बनते हैं। याद कीजिये हमारे देश में महिलाओं को ‘नमन’ करने का ढोंग करने वाले ऐसे नेताओं द्वारा कौन-कौन से भद्दे बोल नहीं बोले गये?
किसी नेता ने ‘कांग्रेस की विधवा’ शब्द का इस्तेमाल किया किसी ने 50 करोड़ की गर्ल फ्रेंड कहकर महिला समाज को नीचा दिखाने का प्रयास किया। कभी विधवा विलाप शब्द इस्तेमाल किये गये तो किसी ने महिलाओं को ‘टंच माल’ बताया। कभी ‘मंगलसूत्र’ पर प्रहार किया गया तो कभी महिलाओं को ‘मुजरा’ करने से जोड़ा गया। किसी ने ‘मंडी का भाव’ पूछा तो किसी ने महिलाओं के लिये ‘परकटी’ शब्द का प्रयोग किया। न जाने कितने सांसद, विधायक व मंत्री, पाखंडी धर्मगुरु, उच्चाधिकारी आदि महिलाओं के यौन शोषण के आरोपी हैं और रहे हैं। कोई अपनी पत्नी को त्याग कर देश की महिलाओं के कल्याण की बातें कर रहा है तो कई बिन ब्याहे नेता लोगों को घर गृहस्थी का सलीका सिखा रहे हैं। मणिपुर में देश की महिलाओं के साथ जो दुष्कृत्य वहां की शासन व्यवस्था की नाकामी के कारण लंबे समय से होते आ रहे हैं उसे लेकर पिछले दिनों 18 महीने बाद राज्य के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने ऐसी घटनाओं पर पीड़ितों से मुआफी मांग कर अपनी जि दारी पूरी कर दी। और इन सबसे शर्मनाक बात यह भी है कि महिलाओं के पक्ष विपक्ष की बातें भी अब दलीय स्तर पर होने लगी हैं। यानी मणिपुर की महिलाओं से नग्न परेड कराई जाती है तो भाजपाई महिला नेत्रियाँ मणिपुर की महिलाओं पर चिंता व्यक्त करने या उन हालत पर आक्रोशित होने के बजाये यह ढूंढने लग जाती हैं कि किस गैर भाजपा शासित राज्य में महिलाओं के साथ ज्यादती हुई है। उस तरह के मामलों को उठा कर मणिपुर की महिलाओं के हालात का काउंटर करने की कोशिश की जाती है। ऐसे में इन अवसरवादी व सत्ता लोभी राजनीतिज्ञों से महिला सम्मान की उम्मीद रखना कितना व्यवहारिक है यह स्वयं सोचा जा सकता है।

 

Expecting respect for women
निर्मल रानी
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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