नालंदा के मुख्यमंत्री से ज्यादा उम्मीद न करें

जहॉं राजनेता का जन्म होगा वहाँ विकास होगा!

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डॉ योगेन्द्र
जनवरी के छह दिन बीत गए। आज जनवरी का सातवां दिन है। सुबह- सुबह मोबाइल की स्क्रीन पर भूकंप के झटके की खबर आयी तो एक कहलगांव (विक्रमशिला) के पत्रकार प्रदीप विद्रोही ने टिप्पणी की -‘जिस इलाके के लोग दशकों से एनएच 80 सहित दर्जनों ग्रामीण सड़कों के गड्ढों से पल-पल झटके खाते- खिलाते हों, उसका यह भूकंप भला क्या उखाड़ लेगा? ‘बिहार में विकास के दावे बहुत किये जाते हैं, लेकिन सच्चाई का दूसरा चेहरा भी है। आप बिहार के राजगीर या नालंदा घूम लें। लगेगा कि बिहार का जम कर विकास हुआ है। यहाँ महो महो है। यह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गृह जिला है। नालंदा का तो विकास होना ही चाहिए। जहां विकास हुआ है, भूकंप उसे डरायेगा। नालंदा के पास खोने को है, विक्रमशिला को नहीं है। विक्रमशिला में मुख्यमंत्री का जन्म नहीं हुआ है। तब भला विक्रमशिला का विकास क्यों होगा? अब तो भाई नया चलन है। जहॉं-जहॉं राजनेता का जन्म होगा, वहाँ-वहाँ विकास होगा। विक्रमशिला किसी राजनेता के जन्म की प्रतीक्षा कर रहा है। विक्रमशिला में केंद्रीय विश्वविद्यालय स्थापित करने की घोषणा हुई। छह सात वर्ष बीत गए। आज तक यह तय नहीं हुआ कि वह कहाँ स्थापित होगा? नीतीश कुमार क्या कहलगाँव के मुख्यमंत्री नहीं हैं? बीस वर्ष से ज्यादा वे मुख्यमंत्री हैं। बीस वर्ष तक अगर कोई सरकारी सेवा करता था तो उसे फुल पेंशन मिलता था। मुख्यमंत्री फुल पेंशन के अधिकारी तो हैं ही। अब बिहार को ताजा हवा चाहिए। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को खुद ही राजनीति छोड़ देनी चाहिए।
बिहार के पटना में कल अच्छा खासा ड्रामा हुआ। सुबह चार बजे पुलिस धरनार्थियों पर टूट पड़ी। ऊपर से आदेश था। गांधी मैदान सार्वजनिक स्थल है। कोई धरना पर बैठा है तो बैठने दीजिए। कहते हैं कि बिहार लोकतंत्र की जननी है। महात्मा गांधी के सत्याग्रह ने यहां से ही पाँव पसारे। और खुद नीतीश कुमार तो 1974 के छात्र आंदोलन के सेनानी हैं। शांतिपूर्वक प्रदर्शन जनता का हक है। संविधान द्वारा प्रदत्त संवैधानिक अधिकार है। उसपर चुपके से ठंड में सुबह चार बजे आक्रमण करना कहीं से जायज नहीं है। जन सुराज पार्टी के प्रशांत किशोर को पुलिस पकड़ कर ले गयी। प्रशांत किशोर ने कोर्ट में जमानत की याचिका डाली। कोर्ट ने जमानत दी। साथ ही दो शर्तें लगा दी। पहली, उन्हें पच्चीस हजार जमानत राशि देनी होगी और दूसरी कि वे आंदोलन में शरीक नहीं होंगे। प्रशांत किशोर ने शर्तों को मानने से इंकार किया। कहा कि वे जेल जायेंगे। कोर्ट ने पुनः विचार किया और बिना शर्त उन्हें जमानत दे दी। एक ही दिन में इतनी घटनाएँ हो गयी। इससे यह जरूर लग सकता है कि कार्यपालिका और न्यायपालिका कितनी सक्रिय है। मुझे तो लगता है कि एक व्यापक छात्र आंदोलन होना चाहिए, जिसमें देश के हित के मुद्दे जुड़ें। फिलहाल शिक्षा और रोजगार को केंद्र में रख कर इसके फलक विस्तृत किये जायें। प्रशांत किशोर कहते हैं कि नीतीश कुमार की सरकार को उखाड़ फेंकनी है, लेकिन ऐसा क्यों करना है? क्या केवल इसलिए कि एकाध परीक्षा रद्द करवानी है? हमें क्या-क्या करना है, यह अगर स्पष्ट न हो तो कोई भी आंदोलन मात्र आंदोलन बन कर रह जाता है।

 

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डॉ योगेन्द्र
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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