भगत सिंह की क्रांति सम्बन्धी अवधारणा

गैर समझौतावादी धारा के महान क्रांतिकारी

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ब्रह्मानंद ठाकुर
आज भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव का शहादत दिवस है। भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की गैर समझौतावादी धारा के ये महान क्रांतिकारी रहे हैं। आजादी के बाद देश में शोषणमुक्त, वर्ग विहीन, समाजवादी समाज की स्थापना के लिए क्रांतिकारी देशभक्तों ने अपनी शहादत दी थी। आज उनका शहादत दिवस है। ऐसे में भगत सिंह की क्रांति सम्बन्धी क्या अवधारणा थी, उसे उन्होंने किस रूप में परिभाषित किया, यह जानना जरूरी हो जाता है। निचली अदालत में भगत सिंह के मुकदमे की सुनवाई हो रही थी। अदालत ने उनसे पूछा, क्रांति से उनकी क्या मंशा है। इस सवाल पर भगत सिंह ने जो कुछ कहा, वही क्रांति का उद्देश्य है।भगत सिंह ने कहा था, क्रांति का अर्थ न तो केवल रक्तपात है, न व्यक्तिगत द्वेष और न वह केवल बम और पिस्तौल है। क्रांति से हमारा मतलब है, आज की शासन व्यवस्था को, जिसकी आधारशिला अन्याय है, बदल कर रख देना। शोषक वर्ग उत्पादक किसान और मजदूर, जो समाज के आवश्यक अंग है, शोषण कर रहे हैं। उनके प्राथमिक अधिकारों का हनन कर रहे हैं। किसान, जो अनाज पैदा करता है, वह भी अपने परिवार सहित भूखों मर रहा है। बुनकर, जो दुनिया की मंडियों को कपड़ों से पाट देता है, उसे अपना तथा अपने बाल बच्चों का तन ढकने के लिए कपड़ा नसीब नहीं होता। बढ़ई तथा अन्य कारीगर जो बड़े-बड़े शहरों का निर्माण करते हैं, वे स्वयं गंदी बस्तियों में सिसकते रहते हैं। दूसरी ओर स्थिति यह है कि पूंजीपति वर्ग, शोषक तथा समाज के जोंक रुपी तत्व अपनी एक सनक पर लाखों बर्बाद कर देते हैं। इस भीषण असमानता का जबर्दस्ती निर्माण किया गया। यह असंतुलन समाज में अराजकता का कारण होगा। परंतु, यह व्यवस्था अधिक दिनों तक नहीं टिक सकती। आज का समाज ज्वालामुखी के मुहाने पर बैठा खर्राटे भर रहा है। सभ्यता के इस इमारत को यदि समय पर न बचाया गया, तो वह नष्ट-भ्रष्ट हो जाएगी। इसलिए क्रांतिकारी परिवर्तन आवश्यक है। जो इसकी आवश्यकता समझते हैं, उन्हें चाहिए कि समाजवादी व्यवस्था के आधार पर नये समाज का निर्माण करें। जबतक यह नहीं होगा, मनुष्य द्वारा मनुष्य और राष्ट्र द्वारा राष्ट्र का शोषण खत्म नहीं होगा। दूसरे शब्दों में, जबतक पूंजीवाद को समाप्त नहीं किया जाता, मानवता के भीषण कष्ट और विनाश को रोका नहीं जा सकता, तब तक युद्ध रोकने की लंबी-चौड़ी बातें करना भी बेकार और दम्भ मात्र है। क्रांति से हमारा मतलब ऐसे समाज का निर्माण है, जो इन समस्त आपदाओं से मुक्त हो, जिसमें किसान मजदूरों का वर्चस्व स्वीकार किया जाए, जिससे विश्वसंघ मानवता को पूंजीवाद के शोषण से बचाया जा सके तथा युद्ध के संकट से छुटकारा दिलाए। यही सपना था भगत सिंह का जो आजाद भारत में अबतक साकार नहीं हो सका है। आज के दिन इस दिशा में सार्थक सोचने और करने की जरूरत है। सिर्फ भगत सिंह जिंदाबाद कहने से कुछ होना-जाना नहीं है।

Revolutionaries of the non-compromising stream
ब्रह्मानंद ठाकुर

 

(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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