भाषा की स्वतंत्रता और गुलामी

भाषाओं की विविधता

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डॉ योगेन्द्र
देश में सैकड़ों भाषाएँ हैं। लोग उन भाषाओं में बोलते हैं, हँसते हैं, गाते हैं, नाचते हैं। भाषाओं की विविधता देश को खूबसूरत बनाती है। कुछ लोगों के दिमाग में खुजली हो गई है। एक देश- एक टैक्स, एक चुनाव- एक झंडा…। अमेरिका के जितने राज्य हैं, उनके पास अलग-अलग झंडे हैं और अलग-अलग राज्यों के गान है। अमेरिका का एक केंद्रीय झंडा और राष्ट्र गीत है। राज्य राष्ट्र के झंडे को भी फहराता है और राज्य के झंडे को भी। मगर हमें तो एक की पड़ी है। कश्मीर से झंडा हटाया गया, मगर नागालैंड में अभी भी कायम है। इसी सरकार के मातहत जिसे एक से बहुत प्यार है। अमेरिका में राज्यों के झंडे के तले अलग देश तो नहीं मांग रहा। आराम से रहता है और तरक्की कर रहा है। हमारे यहाँ भाषाओं को लेकर हाथापाई होती रही है। आजादी की लड़ाई में संवाद और संपर्क के लिए अहिन्दी प्रदेशों के नेताओं ने भी पैरवी की थी। किसी को कोई आपत्ति नहीं थी। आपत्ति अंग्रेजी भक्त नेहरु को थी। उन्होंने मामले को पेचीदा बनाया। अब गंगा में बहुत पानी बह चुका है। पुराने समय को लौटा नहीं सकते। हमें तकनीक, प्यार और संवेदना से देश को संचालित करना है। किसी भी भाषा से कोई छेड़खानी नहीं और न ही किसी भाषा भाषी से।
बंगाल में हिंदी के लोग रह सकते हैं और बिहार में बंगाल के लोग। तमिलनाडु में कर्नाटक के लोग रह सकते हैं और कर्नाटक के तमिलनाडु में, लेकिन बंगाल कोई भी दूसरे के भाषा क्षेत्र पर कब्ज़ा करने या घुसपैठ करने की कोशिश नहीं करेगा। भाषा का जो क्षेत्र है, वह हर हाल में कायम रहेगा। झारखंड में अनेक भाषाएँ हैं- मुंडारी, संथाली और अन्य भाषाएँ भी। सभी रहें, विकसित हों, खिलें फूलों की तरह और देश को सुगंधित करें। अगर किसी भाषा को बोलने वाले की संख्या बहुत कम हो, तब भी उनकी रक्षा की जानी चाहिए। भाषाओं में उसकी संस्कृति रहती है। एक भाषा के लोग दूसरी भाषा सीखें, जानें, परस्पर अनुवाद करें। मगर बिहार की एक भाषा है – मैथिली। मिथिलांचल की भाषा है। बढ़िया है। अनेक महत्वपूर्ण लेखक कवि हैं। इस भाषा के समर्थक केंद्र सरकार, प्रशासन आदि में रहे। उनके अंदर लोभ जगा कि इस भाषा को केंद्रीय सूची में दर्ज करवाया जाए तो इसे केंद्रीय सुविधाएं मिलेंगी। उसने केंद्रीय सूची में दर्ज करवाने के लिए अंगिका क्षेत्र को निगल लिया। उसे दिखाना था कि वह बहुत बड़े क्षेत्र में बोली जाती है। अंगिका को निगलने के लिए इन लोगों ने साजिश की। केंद्र सरकार जब भाषाओं को कोड देने लगी तो अंगिका को उसने कोड नहीं दिया। उसे मैथिली में शामिल कर दिया। एक तरफ मैथिली के लोग कहेंगे कि अंगिका मैथिली ही है और अकादमी पुरस्कार से लेकर तमाम सम्मान दरभंगा के तथाकथित साहित्यकारों को मिलेगा। ये लोग जानते हैं कि अंगिका एक अलग भाषा है, लेकिन जबर्दस्ती इन लोगों ने अंगिका पर कब्जा जमा रखा है। यह एक तरह का भाषाई दुराग्रह है और दिमागी विपन्नता है। मैथिली के लोग भाषाई जमींदार बनने की कोशिश न करें। वे अपनी हद में रहें। खुद भी विकसित हों और अंगिका को भी विकसित होने दें। वैसे भाषा बहता नीर होती है। वह अपना रास्ता ढूँढ लेती है।

 

There are hundreds of languages ​​in the country. Diversity of languages ​​makes the country beautiful.
डॉ योगेन्द्र
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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