सत्ता बदलने से व्यवस्था नहीं बदलती

व्यवस्था परिवर्तन की पहली शर्त क्रांति है

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ब्रह्मानंद ठाकुर

आजादी के बाद से आज तक भारत मे बहुत सारे दल बनें, बिखरे, टूटे भी। कुछ दलों के नाम भी बदले। उसमें अनेक दलों का अब नामोनिशान तक नहीं रहा।दलों के नेता भी बदले, नीतियां वहीं रही। पूंजीवाद परस्त। परिणाम स्वरूप आम आदमी के हक में कुछ खास नहीं हुआ। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजी-रोजगार की समस्याएं बढ़ती ही गई। वैसे तमाम बुनियादी सवाल जो राष्ट्रीय आंदोलन में उठाए गये थे, आज भी यथावत है। यह सब इसलिए हुआ कि राजनीतिक दलों का गठन जिस लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत होना चाहिए, नहीं हुआ।

पार्टियां बहुमत के आधार पर फैसले लेती रही। अल्पमत वाले सही होते हुए भी अपनी ही पार्टी में उपेक्षित, तिरस्कृत रहे। तब उन लोगों ने दूसरा दल बनाया। वहां भी वही पुराना खेल चलता रहा। जनता एक को त्याग, दूसरे को स्वीकारती रही। आज फिर एक नया दल सूबे बिहार में 2 अक्टूबर को अस्तित्व में आ चुका है। जनता उसे भी आजमा सकती है। यह आजमाना चलता रहेगा। पब्लिक हर बार हाथ मलती रहेगी। तब तक जब तक जनता में सही राजनीतिक चेतना का विकास नहीं होता। जान लीजिए, सत्ता बदलने से व्यवस्था नहीं बदलती। व्यवस्था परिवर्तन की पहली शर्त क्रांति है। और, क्रांति के लिए सही आजादी के बाद से आज तक भारत मे बहुत सारे दल बनें, बिखरे, टूटे भी। कुछ दलों के नाम भी बदले। उसमें अनेक दलों का अब नामोनिशान तक नहीं रहा।दलों के नेता भी बदले, नीतियां वहीं रही। पूंजीवाद परस्त।

परिणाम स्वरूप आम आदमी के हक में कुछ खास नहीं हुआ। और, क्रांति के लिए सही राजनीतिक विचारधारा वाली वाली राजनीतिक पार्टी का होना आवश्यक है। देख रहा हूं, सिद्धांतों के प्रति यह विचलन केवल दक्षिण पंथी एवं मध्यम मार्गी पार्टियों में ही नहीं वामपंथी दल भी इसके शिकार हो रहे हैं। जाति,धर्म, सम्प्रदाय और लिंग के आधार पर सर्वत्र भेद भाव जारी है। कभी सामंतवाद की कोख से जन्म लिए पूंजीवाद ने समता, स्वतंत्रता और बंधुत्व का नारा देकर उसे अपनी नीतियों में शामिल कर गुलामों, भू दासों को मुख्य धारा में शामिल किया था। उसी पूंजीवाद ने धर्म के खिलाफ जिहाद बोलते हुए नवजागरण की शुरुआत की थी। यहां ध्यान देने की बात यह है कि कोई भी समाज व्यवस्था चिर कालिक नहीं होती। पूंजीवाद के भी दिन लद गये। आज पूंजीवाद आखिरी सांसें ले रहा है। पूंजीपतिवर्ग इस व्यवस्था को टिकाए रखने के लिए एडी-चोटी का जोर लगाए हुए हैं। इसके लिए आम जनता को सही राजनीतिक चेतना, मूल्यबोध और उन्नत नीति-नैतिकता से वंचित रखना जरूरी है। पूंजीवादी राजसत्ता आज यही कर रही है। पूंजीवादी व्यवस्था को बनाए रखते हुए व्यवस्था में परिवर्तन की बात बिल्कुल बेमानी है। व्यवस्था में परिवर्तन सिर्फ क्रांति से ही होती है।

ऐसे में शोषित वर्ग को अपने वर्ग हित में सोचने-समझने की जरूरत है। उनको समझना होगा कि पूंजीवादी शोषण-जुल्म के खिलाफ वर्ग संघर्ष तेज करते हुए कौन-सी पार्टी क्रांति का परचम लहरा सकती है। क्योंकि क्रांति ही एक मात्र रास्ता है सही शिक्षा प्राप्ति का भी और शोषण से मुक्ति का भी।

changing the power does not change the system
ब्रह्मानंद ठाकुर
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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