वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ही सम्भव है अंधविश्वास और रुढ़िवाद का खात्मा

वैज्ञानिक चिंतन और वैज्ञानिक तकनीक के उपयोग

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ब्रह्मानंद ठाकुर
आज हम जिस युग में रह रहे हैं वह विज्ञान का युग है। विज्ञान आज हमारे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में व्याप्त है।
नई-नई तकनीकों, प्राकृतिक संसाधनों का मानव मात्र की भलाई के लिए प्रयोग किए जाने का अवसर विज्ञान ने उपलब्ध कराया है। कृषि, शिक्षा, चिकित्सा, उद्योग, मनोरंजन आदि के क्षेत्र में नये साधन और अवसर विज्ञान ने उपलब्ध कराए हैं। एक शब्द में कहें तो आज सम्पूर्ण मानवता की भलाई के लिए वैज्ञानिक साधन हमारे पास उपलब्ध हैं। चूंकि हमारा दृष्टिकोण वैज्ञानिक नहीं है, जिस कारण विज्ञान का उपयोग व्यापक जनहित में नहीं हो पा रहा है। बाढ और सूखे जैसी प्राकृतिक आपदा प्रायः हर साल लोगों को झेलनी पड़ रही है। विज्ञान ने इस समस्या का समाधन आसान कर दिया है। लेकिन क्या हम इसका उपयोग कर पा रहे हैं? चिकित्सा विज्ञान निरंतर उन्नति कर रहा है। नये-नये आधुनिक चिकित्सा उपकरण ईजाद किए गये हैं लेकिन हमारे ‘कल्याणकारी राज्य’ की सरकारें अस्पतालों में ऐसे उपकरणों की सुविधाएं नहीं दे रहीं हैं। सार्वजनिक मंचों से विज्ञान की शिक्षा, वैज्ञानिक चिंतन और वैज्ञानिक तकनीक के उपयोग की बातें तो खूब की जा रहीं हैं लेकिन वास्तविक जीवन में इसका लेश मात्र भी दिखाई नहीं देता। सरकार द्वारा प्रायोजित कार्यक्रमों की शुरुआत अगरबत्ती जला, नारियल फोड़ और शंख बजा कर की जाती है। मंत्रियों का शपथ ग्रहण समारोह ज्योतिषियों से दिन और समय निर्धारित कराने के बाद होता है। राजसत्ता के शीर्ष पर आसीन नेता अपने बाल चढ़ाने तिरुपति मंदिर जाते रहे है। जाहिर है, उनका यही व्यक्तिगत आस्था और विश्वास सरकारी धर्म मत का स्थान ले लेता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण न रहने के कारण ही नेता, बुद्धिजीवी, तकनीशियन, डाक्टर और वैज्ञानिक ऐसे कर्मकांडों, अंधविश्वास और रूढ़िवादिता की गिरफ्त में आ जाते हैं।

मनुष्य आदि काल से प्रकृति पर विजय पाने की लगातार कोशिश कर रहा है। अपने सामूहिक प्रयास और तत्कालीन परिवेश से उसने जो ज्ञान हासिल किया, उसी अनुभव जनित ज्ञान के आधार पर उसने आग जलाना, खाना पकाना, गोष्ठी बद्ध समाज का निर्माण, घर बना कर रहने, कृषि, पशुपालन, सुरक्षा के लिए हथियार बनाने आदि से लेकर आधुनिक काल के विकास तक की यात्रा तय की है। आदिम युग से ही मनुष्य अपने मस्तिष्क की विशिष्टता के बल पर प्राकृतिक घटनाओं और क्रियाओं को समझने की कोशिश करता रहा है। अपनी उस समझदारी को सैद्धांतिक रूप देकर उसे अगली पीढ़ी को हस्तांतरित भी करता रहा है। इसी के आधार पर ज्ञान में उत्तरोत्तर वृद्धि हुई। आज विज्ञान ने यह साबित कर दिया है कि किसी भी चीज को सत्य के रूप में तब तक स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए जबतक वह हमारी पंच ज्ञानेन्द्रियो और बुद्धि पर खड़ी नहीं उतरती। उसे तर्क की कसौटी पर भी खड़ा उतरना होगा। विज्ञान और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपना कर ही अंधविश्वास और रुढ़िवाद से छुटकारा मिल सकता है।

 

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ब्रह्मानंद ठाकुर
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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