
बिहार लोकतंत्र का केंद्र रहा है। यह बात अलग है कि पहले बिहार में लोकतान्त्रिक चेतना हुआ करती थी, पर आज वह लोकचेतना, जातीय चेतना में परिवर्तित हो गयी है। वह लोक अब जाति बन गयी है। लोक-सघर्ष अब जातीय-संघर्ष हो गया है।
बिहार के लिए लोक-हर्षक कहानी कौन लिखेगा? लोम-हर्षक घटनाओं से बिहार को मुक्ति कब मिलेगी? भरोसा करें कि भाजपा बिहार में नया सवेरा लेकर आ रही है। इस सुनहरी सुबह की गुनगुनी धूप सबको मिलेगी और जिसके हिस्से की जितनी धुप है वह धूप तो सबको समान मिलनी ही चाहिए।
यह सच है कि बिहार की तबाही की कहानी जातीय आधार पर लिखी गयी थी। क्या अब यह जातीय आधार पर ही ख़त्म की जायेगी? यह बहस नहीं, बल्कि विमर्श का हिस्सा है। हम इस विषय पर आगे विमर्श करते रहेंगे और जो बिहार के लिए बेहतर होगा, उसे करते रहेंगे।
बिहार का चुनाव निकट है। बिहार के समाज का ताना- बाना ख़त्म नहीं हो जाए, इसकी सावधानी हम सबको बरतनी होगी। बयानों, विचारों और व्यवहारों के आधार पर हमें संयम बरतने की भी जरुरत है। हर समूह को अपने अधिकार के लिए लड़ने का अधिकार है, पर हमें कर्तव्य को भी याद रखना होगा। महत्वाकांक्षा मैकबेथ की नहीं हो, यह मोदी जैसी होनी चाहिए।
बहुतेरे दल कहीं न कहीं जाति की ही अभिव्यक्ति करता है। दल के अध्यक्ष अपने कुनबे के सरदार के नाते ही काम कर रहे हैं। जमात को साथ लेना इनके लिए मजबूरी है, जरुरी नहीं। जाति तोड़ने के बजाय इनके जज्बात से खेलना चाहते हैं।
जाति कोई चुनावी फसाना नहीं है, बल्कि यहां की हकीकत है। जाति का रास्ता जातीय अराजकता की ओर जाएगा या फिर सामाजिक समरसता की तरफ? सवाल समता के भी हैं कि भाजपा समता की बात क्यों नहीं करती है? समरसता की ही बात क्यों करती है? हमारी समझ साफ है कि समतामूलक समाज बनाने के लिए समाज को तैयार करने की जरुरत है।
बिना रक्तचाप या रक्तदोष की जांच किये बिना शल्य- चिकित्सा कर देना अन्याय है।
बिहार में भाजपा को चुनाव भी लड़ना है और समाज को भी बचाना है। यह दोहरी जिम्मेवारी भाजपा पर है। अन्य दल को केवल सीटों की संख्या की चिंता है। हमें समाज की संज्ञा की चिंता है।
भाजपा की बिहार में व्यापक तैयारी है। बहुत कुछ हो रहा है और बहुत कुछ होना है। मोदी का पांव पड़ चुका है। यह अंगदी पांव है। हिंसा और अराजकता का जितना भी विपक्षी षड्यंत्र हो, विपक्ष कर ले, पर बिहार को इनके भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता है।
बगल के सूबे में भी बहुत अपराध थे। इन्ही कथित परिवारवादियों ने उत्तर प्रदेश को तबाह किया था। आज उत्तर प्रदेश में क्या हो रहा है? अपराधियों को कही भी पनाह नहीं मिल रहा है। बिहार में भी ऐसा ही होगा। यहां भी बड़ा डोजर चलेगा। अपराधी पर कैसे नकेल कसा जाएगा, यह हम जानते हैं। बिहार की जनता वैसा ही अमन-चैन चाहती है जैसा बगल के राज्य में है। बिहार इतना विकास करेगा कि यह पूरे देश को संरक्षण देगा।
बिहार में कीचड़ बहुत है। कमल ही खिलेगा। यही एक उपाय है। बिहार की राजनीति की अपनी विसगतियाँ हैं जिसे हम जानते हैं। लेकिन हम गंभीर हैं कि बिहार को कैसे गंभीर परिणाम दिए जाए। इसलिए हल्के में किसी चुनाव को हम नहीं लेते। लोकतंत्र में गंभीरता जरुरी है।
फूहड़ता की लोकतंत्र में कोई जगह नहीं है। बिहार में ‘ऑपरेशन बहार’ है। मोदी जी इस ऑपरेशन में लग गए हैं। महागठबंधन के साइकलौन से बिहार की नैया ये ही पार लगाएंगे। मोदी है, तो मुमकिन है।
खुश होना, रूठना और मनाना तो चुनावी-श्रृंगार हैं। फूफा जैसी प्रजाति का पैदा होना एक स्वभाविक है। यह चुनाव का बायो प्रोडक्ट है। यह इधर उधर कहीं भी हो सकता है।
मंगल ग्रह का चुनाव यह तो है नहीं। यह चुनाव मगध का है। घणानंद ऐसे थोड़े ही ख़त्म होंगे। चाणक्य किसे यहां सम्राट बना देंगे। बहुत कुछ समय के गर्भ में है। जो कुछ सामने है वह है बिहार का भविष्य…. इस पर कोई समझौता नहीं। सीटों के सौदागर हम नहीं हैं। पर सबों को साथ लेकर चलने की आदत हमारी पुरानी है। एंटीक नहीं, व्यक्तित्व के उपयोगिता को समझना चाहिए।