भागवत-ज्ञान का कितना असर भाजपा पर ?

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संघ प्रमुख मोहन भागवत चर्चा में हैं। पिछले पांच वर्षों से देश में जाति-आधारित जनगणना के प्रश्न रह-रहकर धुँधुआते रहे हैं। इस सवाल पर विपक्ष तो एकजुट है ही,राजग के भीतर भी यह सवाल सुलगता ही रहा है। नीतीश,चिराग,नायडू अनुप्रिया राजभर ये सब भीतर के ही लोग हैं। भाजपा बाहर-भीतर दोनों से घिर चुकी है। विपक्ष को चाहे-अनचाहे लगातार सैद्धांतिक आधार मिल रहा है।यह कभी संघ की तरफ से तो कभी समाज की तरफ से। संघ के बयान आने के बाद विपक्ष का हर मुद्दा अब संवेदनशीलता की श्रेणी में आता नजर आ रहा है।इस सवाल पर भाजपा भूलकर भी अब किसी को पप्पू नहीं बनाना चाहगी? अगर राहुल को इस सवाल पर आप देशद्रोही साबित करना चाहेगें तो भागवत जी क्या करेंगें जो जाति आधारित जनगणना के पक्ष में आ खड़े हुए हैं?

भाजपा कहती रही है कि जाति-आधारित जनगणना के सवाल देश को तोड़ने वाले हैं। इससे हिन्दू और हिंदुत्व खतरे में आ जायेगा? यह समाज और देश के हित में उचित नहीं है। पार्टी को एक पार्टी के तरह व्यवहार करना चाहिए था.अगर भाजपा को यह लगता है कि यह देश में हित में नहीं है तो इसे अपने स्टेण्ड पर टिका रहना चाहिए था? पर ऐसा नहीं हो रहा है।संघ ने तो अब इस गणना को देश के हित में बता दिया है? अब तेरा क्या होगा रे कमल वाले? गोलमिर्च खा-खाकर टीवी पर गला साफ़ करने वाले भाजपा प्रवक्ताओं की स्थिति तो सांप-छुछुंदर जैसी हो गयी है। ये बोले तो क्या बोले ? भारत केवल भांटो का देश नहीं रहा है,पर यह तथ्य है कि यहाँ भी भाँट रहे हैं? आज के प्रवक्ता उसी विरासत के दावेदार हैं? पहले तो उन भांटों की भी अपनी सीमा और मर्यादा हुआ करती थी,पर इन प्रवक्ताओं की दुमहीनता तो बहुते ही शर्मनाक है भाई ?जनगणना को मिले संघ के समर्थन के बाद अब ये प्रवक्ता कौन सा मुँह लेकर टीवी पर बिचकाने आयेंगें ?

वर्ष में दो बार संघ,समन्वय-समिति की बैठक बुलाता है। संघ के देश-विदेश में बहुत सारे अनुषांगिक संगठन खड़े हो गए हैं। सभी शाखाओं की गतिविधि,समीक्षा आगे के लक्ष्य निर्धारण के लिए संघ समन्वय-समिति की बैठक बुलाता है। भाजपा अध्यक्ष नड्डा भी इस बैठक में बुलाये गए। यह वही नड्डा है जिन्होंने बयान दिया था कि भाजपा बड़ी हो गयी है,अब संघ की जरुरत भाजपा को नहीं है? नड्डा का कोर्ट मार्शल तो होना ही था? बयान सुनने के बाद तेरे ऐसी की तैसी?आ जा अब केरल? यहीं हिसाब किताब होगा और संघ ने हिसाब कर दिया ?

समन्वय समिति की बैठक कल केरल में सम्पन्न हो गयी। वैसे संघ ऐसे ही खांडपरस्त की तलाश करता है जहाँ वह मजबूत किला बना सके।केरल का चयन इसीलिए किया भी गया? संघ के लिए यह एक केरल-डॉक्ट्रिन है। यह युगांतकारी बैठक बाद तक याद किया जाएगा। क्योंकि अगर जाति-आधारित जनगणना हो गयी तो सबकुछ बदल जाएगा। समाज का सनातन चेहरा बदल जाएगा। कुछ भी पुराना नहीं नजर आएगा। मूल्य और मानक सब बदल जायेंगें। विचार बदलेंगें और समाज के आचार भी बदलेंगे। हिन्दू,हिन्दुस्तान और हिंदुत्व का चेहरा नया होगा।

केरल में हुई समन्वय समिति की बैठक को लेकर यह अंदाजा हो गया था कि कुछ न कुछ धमाल होगा और वही हुआ? संघ की ओर से अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आम्बेकर ने बैठक के दौरान प्रेस को सम्बोधित किया और कहा कि जाति-आधारित जनगणना बहुत ही संवेदनशील मामला है। इसे गंभीरता से लेने की जरुरत है। जाति-आधारित जनगणना कराने का बयान जैसे ही आया कि मुद्दा और भी लहक गया है।

कांग्रेस नेता की मांग को जिस तरह बाल-बुद्धि और बाल-हठ कह कर मजाक उड़ाया गया,वही मजाक आज मोदी के गले पड़ गया है। भाजपा की जान अब आफत में है। भाजपा करे तो क्या करे ? पिछले चुनाव का परिणाम सामने है। विपक्ष ने ‘संविधान खतरे में है’ का नैरेटिव्ज़ बनाया था। वैसे चुनाव के बाद भी वह नैरेटिव्ज़ आज भी नूतन बना हुआ है। यह मुद्दा और मोदी एक दूसरे के पर्याय बन गए हैं। इस नैरेटिव्ज़ का आंशिक असर ही भाजपा के लिए जानलेवा साबित हुआ। पूरा असर हो जाता तो शायद भाजपा के अस्तित्व पर ही खतरा उत्पन्न हो जाता? दलित-पिछड़ों का कुछ ही प्रतिशत मत इधर-उधर खिसका कि भाजपा का सपना धराशायी हो गया। किसी तरह सरकार तो बन गयी,पर जाति आधारित जनगणना का भूत पीछा नहीं छोड़ रहा है।

चुनाव में शिकस्त के बाद भाजपा ने हिंदुत्व को धारदार बनाने का प्रयास किया। जिसको जहाँ मिला मुसलमानों को धर कर मचोड़ देने का प्रयास किया? एक से बढ़कर एक बयान आये और फरमान आये। मुसलमानों को कौन कितना बड़ा देशद्रोही साबित करेगा,इसकी होड़ लग गयी। भाजपा के मुख्यमंत्रियों के बीच प्रतियोगिता छिड़ गयी कि कौन कितना ज्यादा मुसलमानों को आतंकित करेगा वही हिन्दू-ह्रदय सम्राट बनेगा? साफ़ है कि इस प्रतियोगिता का तात्पर्य मुसलमान से कम ही था। मामला दलित,वंचित और पिछड़ों की जातीय चेतना को भोथरा करना रहा? किसी तरह से जाति आधारित जनगणना के सवाल से पिंड छुड़ाना था ? सारी कवायद बेकार हो गयी। सारे बयान बेमतलब के हो गए ? वैसे इन दिनों भाजपा जो भी तस्वीर बनाती है बिगड़ ही जाती है। संघ ने खेल बिगाड़ा या भाजपा को बचाया या भाजपा ने संघ को ताकतवर बनाया या फिर और कुछ साबित करने की कोशिश हुई, इसकी चर्चा जरूरी है।

कल ही मोदी ने अपनी पार्टी की सदस्यता-अभियान का आगाज किया। दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी होने का उनका दावा और भी बड़ी पार्टी बनाने की उनकी तैयारी ?अठारह करोड़ से अट्ठाईस करोड़ कार्यकर्त्ता की फ़ौज खड़ा करने का लक्ष्य? आखिर भाजपा का यह दम्भ किसलिए? एक पार्टी के नाते भाजपा की औकात क्या है?गलत या सही अगर जाति-आधारित जनगणना नहीं होनी है,तो नहीं होनी है? फिर पार्टी का संघ के दबाव के क्या मायने? पार्टी जब कुछ अपना निर्णय ही नहीं ले सकती और किसी निर्णय पर टिक नहीं सकती तो पार्टी होने का क्या मतलब ? कार्यकर्ताओं को ठगने की क्या जरुरत है ?डायरेक्ट संघ की ही क्यों न सदस्यता ले ली जाय जो भाजपा की सदस्यता ली जाय? या भाजपा यह साबित करना चाहती है कि देखो संघ कितना ताकत रखता है कि प्रधानमंत्री को भी झुकने पर मजबूर कर देता है? संघ भारत सरकार की कोई नियामक संस्था भी तो नहीं है जिसकी बात को भारत सरकार मानने को बाध्य होगी?
भाजपा सियासी स्वयंवर का वह घोड़ा है जिसकी लगाम दूसरों के हाथ में है। लोकतंत्र में सुपर सत्ता का उदय लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं है। जनता के बीच भाजपा को जाना होता है संघ को नहीं। झेलना भाजपा को पड़ता है संघ को नहीं। भाजपा अब जवान हो गयी है। संघ को भी अपनी गोदी से उतारकर इन्हे स्वावलम्बी होने देना चाहिए। कबतक भाजपा संघ की अंगुली पकड़कर खड़ा होता रहेगा ?

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