आफाक आजम
इस साल के आखिर में होने वाला विधानसभा चुनाव एनडीए और महागठबंधन के अलावा कई ऐसी पार्टियां चुनावी मैदान में होंगी जो दोनों गठबंधन के लिए परेशानी का सबब बनेगी। इसमें तीन प्रमुख पार्टियां हैं। पहले से बिहार के सीमांचल में पांव जमा चुकी असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम, प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज और पुष्पम प्रिया चौधरी की प्लुरल्स पार्टी। लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव भी अपनी टोपी का रंग बदल कर चुनावी मैदान में उतरने का ऐलान कर चुके हैं। इसके अलावा पूरे बिहार में ऐरे गेरे- नथ्थू खैरे (बिहारी कहावत) जैसे तथाकथित एवं अन्य पार्टियों से निष्कासित स्वयंभू नेताओं की पार्टियां पहले से मौजूद हैं।
पिछले विधानसभा चुनाव में कई नए समीकरण बने थे। मुकेश सहनी की पार्टी एनडीए और महागठबंधन का खेल बिगाड़ दिया। यह अलग बात है कि इसी मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी के सभी विधायकों को रातों रात बीजेपी में शामिल करा कर मुकेश सहनी को मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।गठबंधन में रह कर चिराग पासवान की पार्टी एलजेपी ने नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू का भट्ठा बैठा दिया। इस मामले में सबसे ज्यादा असर जेडीयू के मुस्लिम प्रत्याशियों पर पड़ा और ग्यारह के ग्यारह मुस्लिम प्रत्याशी चुनाव हार गए। इसका फायदा पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने उसी चिराग पासवान की पार्टी को गठबंधन में सम्मानित कर उनके चाचा पशुपति कुमार पारस को गठबंधन से बाहर का रास्ता दिखा दिया। उस चुनाव में रही सही कसर असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने सीमांचल में लालू यादव की पार्टी आरजेडी और नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू से पांच सीटें हड़प लिया। यह अलग बात है कि चुनाव जीत कर आए एआईएमआईएम के पांच में से चार विधायकों को तोड़ कर आरजेडी ने अपने साथ मिला लिया। वहीं बीएसपी से चुनाव जीते एक मात्र विधायक को नीतीश कुमार ने अपने मंत्रिमंडल की शोभा बढ़ाने के लिए जेडीयू में शामिल करा दिया। यह खेल बहुजन समाज पार्टी के साथ बिहार में पहले भी लगातार होता रहा है। इस विषय में कांशीराम से साल 2000 विधानसभा चुनाव के पहले मैंने जब बात की थी तो उन्होंने कहा था कि हमारे विधायक को हड़प लेंगे लेकिन हमारी आवाज़ और मिशन को खत्म नहीं कर सकते। हर सत्ताधारी दल या गठबंधन हमेशा छोटी पार्टियों से जीते विधायकों को निगल लेती है। इस मामले में कोई भी पार्टी दूध का धुला नहीं है, राजनीति के इस हमाम में सभी नंगे हैं। अब इस साल 2025 विधानसभा चुनाव में नये समीकरण के साथ दोनों गठबंधन चुनाव में उतर रहा हैं। एनडीए में बीजेपी, जेडीयू, एलजेपी (रामविलास), हम (सेकुलर) रालोसपा (उपेन्द्र कुशवाहा) और संभव है। चुनाव के पहले फिर कोई जमूरा पार्टी आकर इस गठबंधन में मिल जाए। तो आश्चर्य नहीं।
महागठबंधन में आरजेडी, कांग्रेस, वाम दल, वीआईपी, झामुमो तो अभी तक साथ है, आगे राम जाने।
प्रशांत किशोर ने पिछले तीन सालों से पूरे बिहार में घूम कर एक माहौल बनाया है। यह अलग बात है कि वे अभी तक कार्यकर्ता नहीं बना पाए हैं। वे अपनी पार्टी को कॉरपोरेट हाउस के तरह चला रहे हैं। संगठन तो बना लिया, लेकिन समर्पित पार्टी कार्यकर्ता नहीं बना पाए। इस विषय में हमारे उनसे जन सुराज बनने के शुरुआती दिनों में विस्तार से बात हुई थी। उनका कहना था कि वे बिहार को बदलने का प्लान लेकर मैदान में आए हैं। इस चुनाव में वे कितना बिहार को बदल पाएंगे, यह तो समय बताएगा लेकिन दोनों प्रमुख गठबंधन की टेंशन जरूर बढ़ा दी है। इसी तरह एआईएमआईएम को कम करके आंका नहीं जा सकता, इस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल इमान लगातार सदन और सदन के बाहर पार्टी का पक्ष और जनता की समस्या को मजबूती से उठाया है। यह इस चुनाव में सीमांचल के अलावा पूरे बिहार के कई सीटों पर महागठबंधन का खेल बिगाड़ सकती हैं।
पुष्पम प्रिया चौधरी की प्लुरल्स पार्टी जिस नये तेवर के साथ मैदान में आ रही है, एनडीए पर कुछ तो असर जरूर डालेंगी। बिहार हमेशा इतिहास रचा है। बिहार से संपूर्ण क्रांति का नारा देकर जयप्रकाश ने कांग्रेसी शासन का अंत कर दिया था। इसी बिहार में कर्पूरी ठाकुर और लालू प्रसाद को मुख्यमंत्री बनाया जो सामाजिक न्याय का नारा देकर सत्ता के शिखर तक पहुंच गये। यह बिहार है। जाति और जमात यहां की राजनीति का आधार है।

(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)