आज सत्ता-बाजार में सिंदूर की कीमत कितनी रही

ऑपरेशन सिंदूर में ऑपरेशन महत्वपूर्ण है, सिंदूर नहीं

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Operation Sindoor
बाबा विजयेन्द्र (स्वराज खबर, समूह सम्पादक)

ऑपरेशन सिंदूर और सिंदूर ऑपरेशन में बहुत अंतर है। ऑपरेशन सिंदूर में ऑपरेशन महत्वपूर्ण है, सिंदूर महत्वपूर्ण नहीं है। भगवान रजनीश हो सकते हैं पर रजनीश भगवान कैसे हो सकते हैं? शब्द के इधर-उधर होने से अर्थ बदल जाता है। कभी-कभी भयानक अनर्थ भी पैदा हो जाता है। इसी ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा कराने के लिए विपक्ष ने भारी हंगामा किया। सरकार को हार कर विपक्ष की बात माननी पड़ी।
वैसे इस पर सरकार को ही पहल करनी चाहिए थी। सफल ऑपरेशन के लिए तो सरकार को ही आगे बढ़कर बताना चाहिए था कि हमने यह किया और वह किया। पर सरकार ऐसा नहीं कर, सवालों से भागती नजर आयी। वीर सैनिकों को अपनी वीरता का बखान करना ही चाहिए। यह तो देशभक्ति का मामला है। देशभक्ति के मामले में कमल मार्का पॉलिटिक्स का क्या जोड़ है? फिर सरकार को कतराने की जरूरत ही क्या थी। जब यही करना था तो सत्र को बर्बाद क्यों किया गया?
सदन में सिंदूर पर बहस शुरू हुई। पक्ष और विपक्ष की अपनी अपनी जीत और हार। सभी के अपने-अपने तर्क थे वो सामने आए। राजनाथ सिंह ने मोर्चा सम्हाला और कहा कि हमें परिणाम देखना चाहिए, न कि परीक्षा हाल में टूटी हुई कलम और पेंसिल गिननी चाहिए। कांग्रेस भी अजीब पार्टी हो गई है कि यह प्रेम-पत्र में भी स्पेलिंग चेक करती है।
पक्ष ने कहा कि कांग्रेस को केवल ऑपरेशन-तंदूर याद रहता है। ऑपरेशन सिंदूर को कांग्रेस कहां से याद रखेगी?
जनता की भी अपनी स्मृति होती है। कुछ भूलती है और कुछ याद रखती है। भारत के वीर जवानों पर किसी को कोई संशय नहीं है। यह संशय कांग्रेस काल में भी नहीं था और इस शासन पर भी नहीं है। संशय भारत के वीर जवानों पर बिल्कुल नहीं है। संशय है भाजपा के वीर बयानबाजों पर। जहां मुखर्जी का बलिदान हुआ वह टूटा हुआ कश्मीर हमारा है, या पूरा कश्मीर हमारा है। अगर पूरा कश्मीर हमारा है तो लेने से कौन रोक रहा है? इस मामले में तो पूरा देश एक साथ खड़ा है।
पाकिस्तान कितना तबाह हुआ इस पर मुग्ध होने के बजाय हम कितने ताकतवर हुए इसका आकलन जरूरी है। ट्रंप ने जो कार्ड खेला वह हिंदुस्तान के किसी भी देश भक्त लोगों को अच्छा नहीं लगा। ट्रंप होता कौन है सीज फायर की घोषणा करने वाला? पहलगाम की घटना भारत में हुई, बोस्टन में नहीं। सुहाग, हिंदुस्तान की बेटियों का उजड़ा, अमेरिका का क्या था इसमें। भारत के प्रतिशोध पर अमेरिका का अंकुश क्यों?
सीज फायर करना या नहीं करना यह तो हमारा काम था। वह हमारा आंतरिक मामला था। सीज फायर पर सरकार कुछ नहीं बोल रही है और जो बोल रही है वह निर्लज्जता के सिवाय कुछ नहीं है। भाजपा की नजर में कांग्रेस भी निर्लज्ज रही है। किसकी निर्लज्जता छोटी और किसकी निर्लज्जता बड़ी, यह हमारे बहस का हिस्सा नहीं होना चाहिए।
अगर कही कोई कमी है तो देश के मामले में ईमानदारी से काम करना चाहिए। हम चीन की लड़ाई में हार गए तो हार गए और हमने उस हार को स्वीकार भी किया। उस हार के बाद भारत अपनी कमजोरियों को दूर करने में लगा रहा और हमने कमजोरी दूर भी की है। मोदी से भूल हुई या कोई वैश्विक या सामरिक दबाव था, तो देश के सामने इसे रखने में क्या दिक्कत है?
सरकार की हर दलीलें अपने अभाव को ढकने का उपाय मात्र है। विपक्ष का काम है सवाल करना और सरकार का काम है जबाव देना। प्रश्न के बदले प्रश्न खड़ा करना उचित नहीं है। सवाल करने वाला ही क्यों बेइज्जत हो? क्या जबाव न देना सरकार की बेइज्जती नहीं है?

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