गाय को माँ क्यों कहा गया है?
भारतवर्ष में गाय को “गौमाता” कहा जाता है। यह केवल एक धार्मिक उपाधि नहीं, बल्कि एक भावनात्मक, सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान है। “माँ” शब्द स्नेह, पोषण और सुरक्षा का प्रतीक है—और गाय इन सभी गुणों की साकार मूर्ति मानी गई है। गाय की उपयोगिता, करुणा, और जीवनदायिनी क्षमता ने उसे माँ का दर्जा दिलाया है।
1. पोषणकर्ता के रूप में गाय:
गाय के दूध को अमृत के समान माना गया है। यह शिशु, वृद्ध और रोगी सभी के लिए हितकारी होता है। गाय के दूध से दही, मक्खन, घी, पनीर, छाछ आदि पोषण से भरपूर उत्पाद बनते हैं। जैसे माँ अपने बच्चों का पालन-पोषण करती है, वैसे ही गाय भी पूरे परिवार के पोषण का स्रोत बनती है।
2. वैदिक मान्यता और धार्मिक श्रद्धा:
वेदों में गाय को “अघन्या” (जिसे कभी नहीं मारा जा सकता) कहा गया है।
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ऋग्वेद में गाय को “धन की जननी” कहा गया है।
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गाय के शरीर में 33 कोटि देवी-देवताओं का वास माना गया है।
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श्रीकृष्ण ने गायों की सेवा को सर्वोच्च धर्म कहा।
इस धार्मिक दृष्टिकोण ने गाय को पूजनीय और माँ के समान मान्यता प्रदान की।
3. आर्थिक और पर्यावरणीय महत्त्व:
गाय केवल दूध देने वाली पशु नहीं, बल्कि कृषि और ग्रामीण जीवन की रीढ़ है।
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उसके गोबर से खाद, ईंधन और घर बनाने के लिए गारा तैयार होता है।
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गोमूत्र में औषधीय गुण होते हैं।
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खेत जोतने, बैलगाड़ी चलाने, और पारंपरिक कृषि में उसकी अहम भूमिका रही है।
इस प्रकार वह एक सम्पूर्ण ग्रामीण अर्थव्यवस्था की जननी है — जैसे माँ पूरे परिवार की व्यवस्था संभालती है।
4. नैतिक और सांस्कृतिक प्रतीक:
गाय करुणा, सहिष्णुता और निःस्वार्थ सेवा की प्रतीक है।
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वह बिना कुछ मांगे देती है,
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कष्ट सहकर भी दूसरों को सुख देती है,
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और सबके लिए समान भाव रखती है।
ये सभी गुण माँ के आदर्श स्वरूप को प्रकट करते हैं।
5. भारत की आत्मा में रची-बसी गाय:
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी “गौ-रक्षा” एक महत्वपूर्ण आंदोलन रहा। आज भी गाँवों में गाय को परिवार का सदस्य माना जाता है, उसका नाम रखा जाता है, उसकी पूजा होती है, और मृत्यु पर शोक मनाया जाता है।
गाय को माँ कहना केवल एक भावनात्मक विषय नहीं, बल्कि वैज्ञानिक, सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से पूर्णतः उचित है। वह जीवनदायिनी, पोषणकर्ता और संस्कृति की वाहक है।
इसलिए उसे ‘माँ’ का स्थान दिया गया है — ‘गौमाता’।