ट्रम्प के सलाहकार का बयान: रूसी तेल से भारतीय ब्राह्मणों को मुनाफा
वाशिंगटन ,01 सितंबर, ट्रम्प के ट्रेड सलाहकार पीटर नवारो ने भारतीय ब्राह्मणों पर रूसी तेल खरीद कर मुनाफाखोरी का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि भारत के ब्राह्मण रूसी तेल से मुनाफा कमा रहे हैं, जिसकी कीमत पूरा भारत चुका रहा है।
नवारो ने कहा कि भारत रूस से तेल खरीदकर उसे यूक्रेन पर हमला करने के लिए पैसे दे रहा है। इसलिए सबसे ज्यादा टैरिफ झेल रहा है। इससे रूस और अमेरिका को नुकसान नहीं हो रहा है, बल्कि आम भारतीयों को हो रहा है। यह बात उन्हें समझना चाहिए।
नवारो ने भारत को ‘रूस की धुलाई मशीन’ कहा और आरोप लगाया कि भारत न सिर्फ व्यापार असंतुलन बढ़ा रहा है, बल्कि ऐसे गठजोड़ भी मजबूत कर रहा है, जो अमेरिका के हितों के खिलाफ हैं।
रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी देशों ने रूस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए। इसके बावजूद भारत ने रूस से सस्ता कच्चा तेल खरीदना जारी रखा।
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भारत ने रूस से डिस्काउंटेड क्रूड ऑयल खरीदा और उसे रिफाइन करके यूरोप व एशिया के अन्य देशों में बेचा।
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इस प्रक्रिया से भारत की ऊर्जा लागत घटी और रिफाइनरी सेक्टर को भारी मुनाफा हुआ।
अमेरिकी सलाहकार का दावा है कि इस मुनाफे से भारतीय समाज का एक विशेष वर्ग, खासकर ब्राह्मण समुदाय लाभान्वित हो रहा है।
बयान से उठे सवाल
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जातीय रंग क्यों दिया गया?
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भारत का तेल व्यापार सरकार, सार्वजनिक उपक्रमों और निजी कंपनियों के हाथ में है।
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ऐसे में किसी विशेष जाति को इसका लाभ मिलने की बात केवल राजनीतिक और सामाजिक विवाद को जन्म देती है।
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अमेरिकी राजनीति का एंगल
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अमेरिका में चुनावी माहौल है और ट्रम्प के बयान व उनके सलाहकारों की टिप्पणियाँ अक्सर विवाद खड़े करती हैं।
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रूस-भारत व्यापार को लेकर अमेरिकी लॉबी पहले से नाराज है।
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भारत की प्रतिक्रिया
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आधिकारिक स्तर पर भारत सरकार ने इस पर कोई बयान नहीं दिया है।
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परंतु विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह के बयान भारत-अमेरिका संबंधों को नुकसान पहुँचा सकते हैं।
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भारतीय ऊर्जा रणनीति
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता है।
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85% से अधिक कच्चे तेल की जरूरत आयात से पूरी होती है।
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रूस से मिलने वाले सस्ते तेल ने भारत की वित्तीय स्थिति को स्थिर रखने में मदद की।
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इसका फायदा पूरे देश की अर्थव्यवस्था और आम जनता तक पहुँचा, न कि किसी विशेष समुदाय तक।
सामाजिक दृष्टि से विवाद
भारत जैसे विविधतापूर्ण समाज में किसी आर्थिक गतिविधि को जातीय आधार पर जोड़ना गंभीर परिणाम ला सकता है।
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इससे सामाजिक सद्भावना प्रभावित हो सकती है।
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विपक्षी दल इसे मुद्दा बनाकर केंद्र सरकार पर दबाव बना सकते हैं।
ट्रम्प के सलाहकार का बयान सिर्फ राजनीतिक और प्रचारात्मक बयानबाजी प्रतीत होता है, जिसका तथ्यात्मक आधार कमजोर है। भारत के लिए यह चुनौती है कि वह ऐसे विवादास्पद बयानों को नज़रअंदाज़ करते हुए अपने आर्थिक और कूटनीतिक हितों पर ध्यान केंद्रित करे।