“राष्ट्रपति ने कहा—संविधान से ‘समाजवाद’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द नहीं हटाए जाएंगे”

“The President said—The words ‘socialism’ and ‘secularism’ will not be removed from the Constitution”

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नई दिल्ली, 25 जुलाई 2025 ।  केंद्र सरकार ने गुरुवार को राज्यसभा में बताया कि संविधान की प्रस्तावना से ‘समाजवाद’ और ‘धर्म निरपेक्ष’ शब्द हटाने की कोई मौजूदा योजना या इरादा नहीं है। ये शब्द आपातकाल के दौरान जोड़े गए थे।

कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने लिखित जवाब में कहा, ‘कुछ समूह इन शब्दों पर पुनर्विचार के लिए राय व्यक्त कर सकते हैं। इनसे सार्वजनिक चर्चा या माहौल बनता है, लेकिन यह सरकार का आधिकारिक रुख नहीं दर्शाता।’ उन्होंने बताया कि 42वें संविधान संशोधन को चुनौती देने वाली याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में नवंबर 2024 में खारिज हो चुकी हैं।

बता दें कि आपातकाल के 50 साल होने पर आरएसएस के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने यह मुद्दा उठाया था। इसके बाद निवर्तमान उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने इसे संविधान का नासूर बताया था।

दरअसल ‘सेक्युलर’ और ‘सोशलिस्ट’ शब्द 1976 में 42वें संशोधन के जरिए शामिल किए गए थे। इस दौरान देश में आपातकाल था। 25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा की थी।

धनकड़ के कहा था- ये शब्द नासूर बन गए

इससे पहले निवर्तमान उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने 26 जुलाई को कहा था कि आपातकाल के दौर में संविधान की प्रस्तावना में संशोधन करके जोड़े गए ‘धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी’ शब्द नासूर बन गए हैं। प्रस्तावना पवित्र है और इसे बदला नहीं जा सकता, जोड़े गए शब्द सनातन की भावना का अपमान हैं।

धनकड़ ने कहा- आपातकाल के दौरान 1976 में प्रस्तावना में डाले गए शब्द नासूर थे और उथल-पुथल मचा सकते थे। ये बदलाव संविधान के साथ विश्वासघात का संकेत देते हैं। यह देश की हजारों सालों की सभ्यता-संपदा और ज्ञान को छोटा करने के सिवाय कुछ नहीं है।

धनखड़ ने प्रस्तावना को एक बीज बताया, जिस पर संविधान विकसित होता है। उन्होंने कहा कि भारत के अलावा किसी अन्य संविधान की प्रस्तावना में बदलाव नहीं हुआ है। उन्होंने कहा- संविधान की प्रस्तावना में बदलाव नहीं किया जा सकता, लेकिन इस प्रस्तावना को 42वें संविधान (संशोधन) अधिनियम 1976 से बदल दिया गया, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता शब्द जोड़े गए।

26 जून को दिल्ली में डॉ. अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में हुए कार्यक्रम और 27 जून को हैदराबाद में ‘आपातकाल के 50 साल’ कार्यक्रम में RSS महासचिव दत्तात्रेय होसबाले ने कहा था- आपातकाल के दौरान भारत के संविधान की प्रस्तावना में दो शब्द सेक्युलरिज्म और सोशलिज्म जोड़े गए। ये पहले संविधान की प्रस्तावना में नहीं थे।

बाद में इन्हें निकालने की कोशिश नहीं हुई। चर्चा हुई दोनों प्रकार के पक्ष रखे गए। तो क्या ये शब्द संविधान में रहना चाहिए। इस पर विचार होना चाहिए।

उन्होंने कहा था कि इमरजेंसी के समय संविधान की हत्या की गई थी और न्यायपालिका की स्वतंत्रता खत्म कर दी गई थी। इमरजेंसी के दौरान एक लाख से ज्यादा लोगों को जेल में डाला गया, 250 से ज्यादा पत्रकारों को कैद किया गया, 60 लाख लोगों की जबरन नसबंदी करवाई गई। अगर ये काम उनके पूर्वजों ने किया था तो उनके नाम पर माफी मांगनी चाहिए।’

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