पुराणों में गौसंरक्षण की कथाएँ
भारतीय संस्कृति में गाय केवल एक पशु नहीं, बल्कि मातृत्व, सहिष्णुता और पोषण का जीवंत प्रतीक है। पुराणों में अनेक कथाओं के माध्यम से गाय की महिमा और गौ-संरक्षण का संदेश दिया गया है। ये कथाएँ हमें न केवल धर्म और भक्ति से जोड़ती हैं, बल्कि सामाजिक और पर्यावरणीय दायित्वों की भी याद दिलाती हैं।
गाय का पुराणों में महत्व:
पुराण — जैसे भागवत पुराण, विष्णु पुराण, शिव पुराण, स्कंद पुराण आदि — भारतीय धार्मिक साहित्य का वह खजाना हैं जिसमें सांस्कृतिक, नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों का संग्रहीत रूप मिलता है। इन ग्रंथों में गौमाता को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के साधन के रूप में चित्रित किया गया है।
गौ-संरक्षण की प्रमुख कथाएँ:
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कामधेनु की कथा (देवी पुराण, विष्णु पुराण):
कामधेनु स्वर्ग से प्रकट हुई दिव्य गाय थी, जो इच्छानुसार सब कुछ प्रदान कर सकती थी। जब वशिष्ठ ऋषि ने कामधेनु को राजा विश्वामित्र को देने से मना किया, तो उसके रक्षण के लिए देवशक्ति का आवाहन किया गया। यह कथा दर्शाती है कि ऋषियों और देवों ने भी गाय की रक्षा को सर्वोच्च कर्तव्य माना। -
श्रीकृष्ण और गौसेवा (भागवत पुराण):
भगवान श्रीकृष्ण को गोविंद और गोपाल कहा जाता है, जो गायों के रक्षक और पालक हैं। उन्होंने अपने बचपन का अधिकांश समय गोकुल और वृंदावन में गायों की सेवा में बिताया। उन्होंने गायों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत उठाया — यह न केवल एक चमत्कारी कथा है बल्कि पर्यावरणीय संरक्षण और गौ-संवेदना का गहरा संदेश देती है। -
राजा दिलीप और नंदिनी गाय (रघुवंश, स्कंद पुराण):
राजा दिलीप ने गौमाता नंदिनी की सेवा की थी ताकि वह संतान प्राप्ति का आशीर्वाद पा सकें। उन्होंने नंदिनी की एक बार शेर से रक्षा की, यहाँ तक कि अपनी जान देने को भी तैयार हो गए। इस कथा से यह संदेश मिलता है कि गौ-सेवा ईश्वर-सेवा के समकक्ष है। -
गौहत्या का पाप (गरुड़ पुराण, अग्नि पुराण):
गरुड़ पुराण और अन्य धर्मशास्त्रों में गौहत्या को महापाप बताया गया है। कहा गया है कि “गौहत्यां करोति य: स नरकं गच्छति निश्चितम्” अर्थात जो व्यक्ति गाय की हत्या करता है वह निश्चित रूप से नरक जाता है। इससे स्पष्ट होता है कि प्राचीन काल में भी पशु संरक्षण का गहरा भाव था। -
शिव पुराण में नन्दी का महत्व:
शिवजी के वाहन नंदी एक बैल हैं, जो गौवंश का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह दर्शाता है कि देवताओं ने भी गौवंश को सम्मान और सुरक्षा का स्थान दिया है।
गौ-संरक्षण का सांस्कृतिक संदेश:
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गायों की सेवा केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं बल्कि समाज के पोषण का आधार मानी जाती थी।
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गौ-गोबर, गौमूत्र, दूध, दही, घी, और छाछ जैसे उत्पाद ग्रामीण जीवन की रीढ़ थे।
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गोधन को धन के रूप में देखा गया, और यही कारण है कि “गोधन”, “ग्राम” और “गोपालन” का सीधा संबंध कृषि और जीविका से रहा।
पुराणों में वर्णित गौ-संरक्षण की कथाएँ केवल धार्मिक या पौराणिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि आजीवन मूल्यों और प्रकृति से जुड़ी मानवता की रक्षा का संदेश देती हैं। इन कथाओं में गाय को धार्मिक आस्था, प्राकृतिक संपदा और सामाजिक व्यवस्था के केंद्र में रखा गया है।
आज के दौर में जब पर्यावरण संकट और जीव हिंसा की घटनाएँ बढ़ रही हैं, तब इन पुराणों की कहानियाँ हमें दया, करुणा और संरक्षण की राह दिखाती हैं। गौ-संरक्षण न केवल एक धार्मिक दायित्व है, बल्कि यह मानव जाति के आत्म-रक्षण का मार्ग भी है।