श्रीकृष्ण और गोवर्धन पूजा- एक पर्यावरण संदेश
भारत की सांस्कृतिक परंपराएँ केवल धर्म और भक्ति तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे प्रकृति से जुड़ने और उसे सम्मान देने का भी मार्ग प्रशस्त करती हैं। गोवर्धन पूजा, जो दीपावली के अगले दिन मनाई जाती है, न केवल श्रीकृष्ण की लीलाओं की याद दिलाती है, बल्कि एक गहरे पर्यावरणीय संदेश को भी उजागर करती है। यह पर्व आज के समय में और भी प्रासंगिक हो गया है जब मानव अपने ही हाथों प्रकृति का दोहन कर रहा है।
श्रीकृष्ण और गोवर्धन की कथा:-
भागवत पुराण के अनुसार, जब ब्रजवासियों ने परंपरा अनुसार इंद्रदेव की पूजा करनी चाही, तो श्रीकृष्ण ने उन्हें समझाया कि हमें उन प्राकृतिक तत्वों की पूजा करनी चाहिए जो वास्तव में हमारे जीवन को पोषित करते हैं—जैसे पर्वत, जंगल, पशु और वर्षा। इसके बाद ब्रजवासियों ने गोवर्धन पर्वत की पूजा की और इंद्रदेव के क्रोध के परिणामस्वरूप जब मूसलधार बारिश हुई, तब श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर सभी की रक्षा की।
गोवर्धन पूजा का पर्यावरणीय संदेश:-
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प्राकृतिक संसाधनों का सम्मान:
श्रीकृष्ण ने यह दिखाया कि वर्षा, पशु, वनस्पति और पर्वत—ये सब ईश्वर की ही रूप हैं। उनकी पूजा कर हम उन्हें बचाने का संकल्प लेते हैं। -
इकोलॉजिकल बैलेंस (पारिस्थितिक संतुलन):
गोवर्धन पर्वत और उसके आस-पास की पारिस्थितिकी—पशु, पक्षी, पेड़-पौधे और जलस्त्रोत—सभी का संरक्षण आवश्यक है, तभी जीवन चक्र सुचारु रूप से चलता है। -
लोकल और सस्टेनेबल जीवनशैली:
गोवर्धन पूजा ग्रामीण जीवनशैली, देसी पशुपालन, और स्थानीय संसाधनों के उपयोग की महत्ता को दर्शाती है। यह हमें आधुनिक उपभोगवादी सोच से हटकर संतुलित जीवन अपनाने की प्रेरणा देती है। -
इंद्र का प्रतीकात्मक विरोध:
इंद्र को प्रतीक माना जाए तो वे अहंकार और असंवेदनशीलता के प्रतिनिधि हैं, जबकि श्रीकृष्ण समता, करुणा और प्रकृति-परक सोच के प्रतिनिधि। यह पर्व हमें सिखाता है कि प्रकृति के साथ संघर्ष नहीं, बल्कि सहजीवन ही समाधान है।
आज के संदर्भ में प्रासंगिकता:-
जलवायु परिवर्तन, वनों की कटाई, प्रदूषण और प्राकृतिक संसाधनों का दोहन आज मानवता के सामने गंभीर चुनौती हैं। ऐसे में गोवर्धन पूजा का संदेश हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि हम कितनी दूर प्रकृति से चले गए हैं। पर्वतों को काटना, पशुओं की अवहेलना और जल स्रोतों को दूषित करना हमें विनाश की ओर ले जा रहा है। श्रीकृष्ण का यह उपदेश कि प्रकृति की पूजा करो, क्योंकि वही तुम्हारा जीवन आधार है—आज सबसे बड़ा समाधान है।
गोवर्धन पूजा केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि यह प्रकृति के संरक्षण की दिशा में एक शक्तिशाली सांस्कृतिक संदेश है। श्रीकृष्ण ने हमें प्रकृति के साथ सहयोग, संरक्षण और श्रद्धा का पाठ पढ़ाया। इस पर्व को मनाते हुए यदि हम अपने दैनिक जीवन में पर्यावरणीय संतुलन की भावना को आत्मसात करें, तो यह न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक और वैश्विक कल्याण की दिशा में एक बड़ा कदम होगा।