
पदासीन होते ही जगदीप धनकड़ ने स्वयं को आरएसएस का एकलव्य बताया था। मोहन भागवत का फोटो तो नहीं पर मनुस्मृति का तस्वीर जरूर इनके मन में होगी। ये तो गए ही थे मारीच बनकर, ताकि संविधान की आत्मा का हरण हो सके। जितना हो सका उन्होंने किया भी। वाह रे संघ का एकलव्य जगदीप!
कालांतर में इस एकलव्य से अंगूठा तो नहीं मांगा गया, पर इस्तीफा अवश्य मांग लिया गया। जिन बातों का अंदेशा था वे बातें सच साबित हुई हैं। कोई भी स्वास्थ्य संबंधी कारण नहीं था। आजादी के बाद किसी उपराष्ट्रपति के साथ पक्ष और विपक्ष का यह खेल पहली बार हो रहा है।
मोदी ने जगदीप के इस्तीफे के बाद उनके सुंदर स्वास्थ्य की कामना की। सच यही है कि इस अल्पकालीन उपराष्ट्रपति ने जनतंत्र के दीर्घकालीन भविष्य के लिए खतरा पैदा कर दिया। धनखड़ की सेवा की भी मोदी ने अपने पोस्ट में चर्चा की है। मोदी यह मान चुके हैं कि भाजपा की सेवा ही भारत की सेवा है। सेवा शब्द के उपयोग का मोदी का आशय शायद यही रहा होगा।
जगदीप की सेवादारी और लठैती का ऐसा परिणाम आएगा, यह धनकड़ ने सपने में भी नहीं सोचा होगा। सज धज के मेरा जनाजा निकला, लेकिन वो नहीं निकला, जिनके लिए मेरा जनाजा निकला। जगदीप का यह विलाप केवल एकलाप या प्रलाप भर है। कौन इन्हें सुनने बैठा है? सभी खामोश हैं। विदाई की न्यूनतम औपचारिकता भी नहीं पूरी हुई।
इस मामले में सबका चेहरा बेनकाब हुआ है। जगदीप को लेकर कांग्रेस का जो आचरण दिख रहा है, यह बिल्कुल ही पाखंडपूर्ण और घटिया है। कांग्रेस के लिए धनखड़ कभी अंपायर नहीं, बल्कि चीयरलीडर ही नजर आए। कांग्रेस के लिए लठैत और संविधान के डकैत थे जगदीप! न जाने कांग्रेस ने धनकड़ के बारे में क्या-क्या नहीं कहा? आज कांग्रेस के लिए जगदीप महान किसान-पुत्र नजर आ रहे हैं?
कितना लचर चरित्र है कांग्रेस का। यही जगदीप धनकड़ किसानों की सैकड़ों शहादत पर मौन नजर आते थे और भाजपा के तीन काले कानून के पक्ष में थे। आज कांग्रेस के लिए ये अचानक किसान-पुत्र हो गए हैं? गजबे है भाई कांग्रेस!
भाजपा इस खाली सीट पर किसी जाट को तो नहीं, पर जात को अवश्य खोज रही है। योग्यता और प्रतिबद्धता की कोई बात ही नहीं हो रही है। समीकरण को देखते हुए किसी सड़े हुए का भी चयन हो सकता है। जब कोई सड़ा हुआ व्यक्ति इस पद पर जायेगा तो दुर्गंध ही फैलाएगा।
सच यही है कि किसी भी दल को संविधान की चिंता नहीं है। सभी को अपने-अपने समीकरण की चिंता है। सभी दल अपने-अपने हिस्से के संविधान की धज्जियां उड़ाते रहे हैं। जगदीप के बहाने जंग के और भी मैदान तैयार हो रहे हैं। हस्र का इंतजार है।