हिंदू पर्वों में गौमाता की भूमिका
भूमिका:-
भारतीय संस्कृति में गौमाता को केवल एक पालतू पशु नहीं, बल्कि ‘माता’ का दर्जा प्राप्त है। हिंदू धर्म में गाय को धार्मिक, सामाजिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत पूजनीय माना गया है। विभिन्न पर्वों और अनुष्ठानों में गौमाता की उपस्थिति न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि वह संरक्षण, पोषण और करुणा के मूल तत्वों को भी दर्शाती है।
गौमाता का धार्मिक महत्व:-
हिंदू धर्मग्रंथों में गाय को सप्तधातु प्रदात्री और कर्मों के फल देने वाली माना गया है। ऋग्वेद, महाभारत, श्रीमद्भगवद्गीता और पुराणों में गाय के गुणों का वर्णन बार-बार आता है। वह 33 कोटि देवताओं का निवास स्थान मानी जाती हैं और ‘कामधेनु’ के रूप में उनका रूप कल्पवृक्ष के समान है।
हिंदू पर्वों में गौमाता की भूमिका:-
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गोवर्धन पूजा (दीपावली के अगले दिन):
इस दिन गायों को सजाया जाता है, उनकी पूजा की जाती है और ‘अन्नकूट’ अर्पित किया जाता है। यह पर्व श्रीकृष्ण द्वारा गौवंश और प्रकृति के संरक्षण का संदेश देता है। -
गोपाष्टमी:
यह दिन विशेष रूप से गौ-सेवा और गौ-पूजन के लिए मनाया जाता है। इस दिन भक्तगण गायों को स्नान कराकर सजाते हैं और उनके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेते हैं। -
मकर संक्रांति, बैसाखी व पोला पर्व:
खेती से जुड़े इन पर्वों में गाय और बैल को देवता की तरह सम्मान दिया जाता है। उन्हें विशेष भोजन, हल्दी और रोली से पूजन कर ग्रामीण जीवन की आधारशिला माना जाता है। -
वट सावित्री व्रत एवं करवाचौथ:
इन व्रतों में व्रती महिलाएँ गाय के गोबर से वटवृक्ष या अन्य धार्मिक प्रतीक बनाकर पूजा करती हैं, जिससे गौमाता की पवित्रता और शुद्धता का संदेश मिलता है। -
होली:
होली से एक दिन पहले गाय के गोबर से होलिका की मूरतें बनाई जाती हैं और उसका उपयोग पवित्र अग्नि में किया जाता है। यह भी दर्शाता है कि गाय का हर अंग उपयोगी और पूजनीय है।
गौमाता: पर्यावरण और समाज का आधार:-
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गौमूत्र और गौ-गोबर से बने उत्पाद आज जैविक खेती और आयुर्वेद में व्यापक रूप से प्रयुक्त हो रहे हैं।
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गौशालाएं और गौसेवा अब पर्यावरणीय संरक्षण का माध्यम बनती जा रही हैं।
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ग्रामीण अर्थव्यवस्था और धार्मिक आयोजनों में गाय की भूमिका अब भी अपरिहार्य है।
नैतिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण:-
गाय करुणा, संयम और निस्वार्थ सेवा का प्रतीक है। उसकी ममता और सहनशीलता हमें आत्मिक शुद्धि और जीवन के उच्च मूल्यों की ओर प्रेरित करती है। हिंदू पर्वों में उसकी पूजा केवल परंपरा नहीं, बल्कि प्रकृति और प्राणी मात्र के प्रति श्रद्धा का भाव है।