कुछ तो विश्वास पैदा करो ‘कुमार’…

पहलगाम की घटना को हिन्दू मुसलमान का रंग देने का प्रयास

0 845
Create some confidence Kumar
बाबा विजयेन्द्र (स्वराज खबर, समूह सम्पादक)

बौद्धिक वेश्यावृति के सरगना कवि कुमार लगातार अपना विश्वास’ खो रहे हैं। इस ब्राह्मण कवि को भाजपा की गोद में खेलने की बड़ी बेचैनी हो गयी है। ये अपने भीतर के यथास्थितिवाद को कई मंच और मोर्चो पर निकालते रहे हैं। इन दिनों ये बजरंगी भाईजान हो गए हैं। ये इन दिनों हिन्दू मुसलमान कुछ ज्यादा ही करने लगे हैं। नया भजनियां टिक में झाल! नया-नया संघी ज्यादा ही प्यादा बनता है। इनके सूखे हुए मूँह से कई दफा जो रूखी बातें निकली हैं, वो आस्वाद ही पैदा किया है।
पहलगाम की घटना पर इनका आग्रहपूर्ण बयान बहुत ही अशोभनीय है। इस घटना को इस बकचोच कवि ने हिन्दू मुसलमान का रंग देने का प्रयास किया। कुमार विश्वास ने कहा कि आतंकवाद को सहलाने वाले लोगों पर भी कार्रवाई हो। क्या कहना चाहते हो कुमार विश्वास? तुम्हारे बयान में बदबू है। तुम मनोरंजक हो सकते हो, विदुषक हो सकते हो, पर इस देश के महानायक नहीं हो सकते।
इस समाज का चरित्र किसी सेलेब्रेटी को नायक मान लेने का कभी नहीं रहा है। यह वनवासी राम को पूजता है, गृह त्यागी बुद्ध को पूजता है, बापू और बाबा साहेब को पूजता है। तुम साहित्य के पोर्न-स्टार हो सकते हो, पूर्ण-स्टार नहीं हो सकते। कोई शरीर बेचती है तुम शब्द बेचते हो, क्या फर्क है? कुमार खड़ा बाजार में..
तुम्हारे जैसे इस छिनाल मीडिया का क्या कहना! यह तो कुछ भी नैरेटिवस गढ़ सकता है। पहलगाम की घटना पर हिन्दू मुसलमान करने का मीडिया ट्रायल भी बहुत हुआ, पर कश्मीरियों ने इनकी मंशा पर पानी फेर दिया।
कश्मीर के मुसलमान जान पर खेलकर और जज़्बात दिखाकर जो सलामी बटोर रहे हैं, मैं भी इन्हें सलाम करता हूँ। सहचर पूंजीवादी जमात ने जहां विमान भाड़ा के रूप में पहलगाम के पीड़ितों से चौगुना भाड़ा वसूला वहीं गरीब मुसलमानो ने अपना ऑटो और टेम्पो भाड़ा फ्री कर दिया।
मुसलमान आतंकवादी अवश्य हैं पर सभी मुसलमान आतंकवादी नहीं हैं। अभी प्राथमिकता आतंकवाद पर नकेल कसने की है। सीमा पार पल रहे सरगना को ख़त्म करना है तो हिन्दू मुसलमान को एक होकर रहना ही पड़ेगा। जिन विसंगतियों के कारण हम सदियों तक हारते रहे वैसी ही विसंगति फिर से न पैदा करें।
हिन्दू मुसलमान के बीच बहुत खाई है पर पहलगाम की घटना में ऐसा कुछ नजर नहीं आता। पहलगाम की घटना घटते ही साहित्य और सियासत के ऐसे पहलवान तुरत एक्स पर आ गए। इनकी तेज ऐसी कि मानो इन्हें इस घटना का इंतज़ार हो।
कुमार विश्वास जैसों कि अनुवाँशिकी एक है। इस डीएनए के लोग अपनी पोजीशनिंग के लिए कुछ भी कर सकते हैं। ये लोग समाज को फर्जी युद्ध में फंसा कर रखते हैं ताकि समाज अपने बुनियादी सवालों से मुठभेड़ न कर पाए। हासिये की जिंदगी में जो हाहाकार है उसका समाधान व्यवस्था के पास नहीं है। सत्ता के पास इन्हें शांत रखने का एक ही ईलाज है वह है युद्ध। पाकिस्तान यही कर रहा है। क्या हम भी वही करेंगे?
अभी प्रच्छन्न राष्ट्रवादियों की एक फौज खड़ी होनी है जो बंगाल और बिहार के वोट-युद्ध में जीत दिलबा सके। कुमार विश्वास इसके कमांडर साबित हो सकते हैं।
मोदी मधुबनी जा चुके हैं। मधुबनी पेंटिंग में अपना नया रंग भर आये हैं। ऐसा ही कुछ रंग पुलबामा के बाद भी देखने को मिला था।
इस घटना को कैसे लें और कैसे देखें और क्या करें? भावुक होना स्वभाविक है पर तार्किक होना भी जरुरी है। सरकार पर अतिरिक्त दबाव न डालें। सरकार को काम करने दें।

Leave A Reply

Your email address will not be published.