गाय के गोबर से निर्मित जैविक खाद और ऊर्जा

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भारत जैसे कृषि प्रधान देश में गाय को “गौ माता” कहा जाता है। सिर्फ धार्मिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि वैज्ञानिक और आर्थिक दृष्टि से भी गाय हमारे जीवन के लिए अत्यंत उपयोगी है। गाय का दूध पोषक होता है, वहीं उसका गोबर और गोमूत्र भी कृषि, ऊर्जा और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में अमूल्य योगदान देता है। विशेष रूप से गाय के गोबर से जैविक खाद और बायोगैस जैसे ऊर्जा स्रोत तैयार किए जा सकते हैं, जो सतत विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

1. जैविक खाद का निर्माण:

गाय के गोबर से तैयार की जाने वाली खाद को ‘गोबर की खाद’ या ‘कम्पोस्ट’ कहते हैं। इसे दो प्रमुख तरीकों से बनाया जाता है:

  • गड्ढे में सड़ाने की प्रक्रिया:
    गोबर को सूखे पत्तों, कृषि अपशिष्ट और थोड़ी मिट्टी के साथ मिलाकर गड्ढों में डाला जाता है। कुछ सप्ताहों में यह जैविक खाद में परिवर्तित हो जाता है।

  • वर्मी कम्पोस्ट (केंचुआ खाद):
    इस प्रक्रिया में केंचुओं की सहायता से गोबर को अत्यंत उपजाऊ खाद में बदला जाता है। इससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और फसलों की गुणवत्ता में सुधार होता है।

लाभ:

  • रासायनिक उर्वरकों की तुलना में यह खाद प्राकृतिक होती है।

  • मिट्टी में जीवांश की मात्रा बढ़ाती है।

  • भूमि की जल धारण क्षमता में सुधार लाती है।

  • फसलों में पोषक तत्वों की मात्रा अधिक होती है।

  • पर्यावरण प्रदूषण नहीं होता।

2. ऊर्जा का निर्माण – बायोगैस:

गाय के गोबर से बनी ऊर्जा का सबसे प्रमुख रूप है बायोगैस। बायोगैस प्लांट में गोबर को जल के साथ मिलाकर बंद टैंक में डाला जाता है। वहाँ यह मिश्रण अवायवीय अपघटन (Anaerobic digestion) से गुजरता है, जिससे मीथेन गैस उत्पन्न होती है। यही गैस बायोगैस कहलाती है।

बायोगैस के उपयोग:

  • घरों में खाना पकाने के लिए ईंधन के रूप में

  • छोटे बिजली संयंत्रों में विद्युत उत्पादन के लिए

  • कृषि उपकरणों को चलाने के लिए

  • औद्योगिक उपयोग में भी इसका विस्तार संभव है

बायोगैस से होने वाले लाभ:

  • यह स्वच्छ, नवीकरणीय और पर्यावरण अनुकूल ऊर्जा स्रोत है।

  • लकड़ी, कोयले या एलपीजी पर निर्भरता घटती है।

  • महिलाओं को रसोई में धुएं से राहत मिलती है।

  • बायोगैस प्लांट से निकली खाद अत्यंत उर्वर होती है।

3. आर्थिक और सामाजिक महत्व:

  • ग्रामीण क्षेत्रों में स्वरोजगार के अवसर बढ़ते हैं।

  • जैविक खेती से किसानों की आय में वृद्धि होती है।

  • ऊर्जा की आत्मनिर्भरता बढ़ती है।

  • गांवों में स्वच्छता बनी रहती है क्योंकि गोबर का सदुपयोग होता है।

4. पर्यावरणीय दृष्टिकोण:

  • गोबर आधारित खाद से मृदा प्रदूषण कम होता है।

  • बायोगैस के उपयोग से कार्बन उत्सर्जन घटता है।

  • कचरे का पुनः उपयोग होता है, जिससे स्वच्छता बनी रहती

गाय का गोबर केवल एक अपशिष्ट नहीं, बल्कि एक अमूल्य संसाधन है। इससे प्राप्त जैविक खाद न केवल कृषि भूमि को उपजाऊ बनाती है, बल्कि बायोगैस के रूप में यह ऊर्जा की आवश्यकता को भी पूरा करती है। आज जब दुनिया जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण संकट से जूझ रही है, तब गोबर से बनी जैविक खाद और ऊर्जा एक स्थायी समाधान प्रस्तुत करती हैं। यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त करने के साथ-साथ भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक सार्थक कदम है।

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