वन नेशन वन इलेक्शन: पूर्व CJI खन्ना ने दिया सुझाव

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नई दिल्ली । 18 अगस्त 25 ।  भारत के पूर्व CJI संजीव खन्ना ने ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ विधेयक की समीक्षा कर रही संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं। उन्होंने कहा कि किसी प्रस्ताव की संवैधानिक वैधता यह नहीं दर्शाती कि उसके प्रावधान वांछनीय या आवश्यक हैं।

जस्टिस खन्ना ने समिति को बताया कि संविधान संशोधन विधेयक देश के संघीय ढांचे को कमजोर कर सकता है। भाजपा सांसद पीपी चौधरी की अध्यक्षता वाली समिति के साथ विचार साझा करने वाले अधिकांश विशेषज्ञों ने विधेयक को असंवैधानिक मानने से इनकार किया, लेकिन प्रावधानों पर सवाल उठाए।

जस्टिस खन्ना ने यह भी कहा कि अगर चुनाव आयोग को चुनाव टालने का अधिकार मिल गया तो यह अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रपति शासन जैसा होगा। इसका मतलब होगा कि केंद्र सरकार राज्यों का नियंत्रण अपने हाथ में ले सकती है।

उन्होंने कहा कि 1951-52, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के एक साथ चुनाव हुए थे, वह सिर्फ संयोग था, न कि संविधान का आदेश। पूर्व CJI खन्ना से पहले पूर्व CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेएस खेहर, जस्टिस यूयू ललित और पूर्व CJI रंजन गोगोई भी संसदीय समिति के सामने अपनी राय दे चुके हैं।

वन नेशन वन इलेक्शन पर 30 जुलाई को संसद भवन एनेक्सी में JPC की बैठक हुई थी। इसमें 15वें वित्त आयोग के अध्यक्ष एनके सिंह और इकोनॉमी की प्रोफेसर डॉ. प्राची मिश्रा ने अपनी राय रखी थी।

दोनों ने लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने को आर्थिक रूप से फायदेमंद बताया। उन्होंने कहा कि इससे चुनावों के दौरान देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 1.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो सकती है।

अपने साझा प्रेजेंटेशन में दोनों एक्सपर्ट्स ने बताया कि 2023-24 के आंकड़ों के हिसाब से GDP में यह बढ़ोतरी 4.5 लाख करोड़ रुपए की होगी। हालांकि, चुनावों के बाद ज्यादा खर्च होने से राजकोषीय घाटा (सरकार का खर्च) भी करीब 1.3 प्रतिशत बढ़ सकता है।

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