सियासी ड्रामा के सूरमा भोपाली जगदीप

जगदीप धनखड़ की नई फिल्म 'इस्तीफा' रिलीज हुई

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Jagdeep Dhankhar's resignation
बाबा विजयेन्द्र (स्वराज खबर, समूह सम्पादक)

अब दिल्ली दूर नहीं। कलाकार जगदीप की दिल्ली अब वास्तव में दूर हो गई है और जगदीप भी सदा के लिए दूर हो गए हैं। हास्य-रस में डूबा यह जगदीप जो सुरमा- भोपाली के रूप में ख्यात हुए, अचानक याद आ गए। सबके जीवन में हास्य हो यह अच्छा है, पर हंसमुख होने के बजाय हास्यास्पद हो जाना दुर्भाग्यपूर्ण है।
छोड़िए उस मरे हुए जगदीप को। हम आज जिंदा जगदीप की बात करेंगे। हास्यास्पद होने की सारी शर्त को पूरा कर चुके हैं पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप। जगदीप हास्यास्पद ही नहीं बल्कि समाज और संविधान के माथे पर एक कलंक साबित हुए हैं। वैसे जो व्यक्ति गिर जाता है वह वैसे ही मर जाता है। आप भी कह रहे होंगे कि यह जीना कोई जीना है बाबा?
इस जगदीप की नई फिल्म ‘इस्तीफा’ रिलीज हुई है। यह फिल्म सुपर डुपर हिट साबित हो रही है। इस कहानी में बहुत सारे किरदार हैं। कहानी का कथानक लोकतंत्र के कलंक से जुड़ा हुआ है। राजस्थान के किठाना के इस जाट-बॉय को गुजराती-बंधुओं ने ठिकाना लगा दिया है। इस महाभियोगी- मानसून में सब कुछ उल्टा-पुल्टा हो रहा है। इस सत्र के सियासी-सूत्र का कोई ओर-छोर नहीं दिख रहा है। इसका सिरा खोजने में आपका भी सिर चकरा जाएगा।
हास्यास्पद हुए सत्ता के ये सूरमा-भोपाली जगदीप जो गुजराती-बंधुओं की सेवा में निहाल हुए थे। इनकी ही कृपा से यह जगदीप झुंझनू से सांसद, बंगाल के गवर्नर और भारत के उपराष्ट्रपति तक पहुंचे। सत्यपाल मलिक जैसे विद्रोही जाट की भरपाई के लिए भाजपा ने इस जगदीप जाट को सामने लाया था। एक जाट पुलवामा मामले में शहीद हुए, दूसरा पहलगाम मामले में।
ऑपरेशन सिंदूर को लेकर सड़क से लेकर संसद तक आज संग्राम छिड़ा हुआ है। इस बीच संग्राम में ही जगदीप का रणछोड़ हो जाना सवाल पैदा करता है। जगदीप पद छोड़े या धकियाये गए? बहस जारी है। वैसे यह देख मुझे अच्छा ही लग रहा है। ऐसे लोगों के साथ ऐसा ही होना चाहिए। उपराष्ट्रपति होकर भी मोदी का चाटुकार होना और मोदी को खुदा समझना, बहुत ही अशोभनीय काम रहा। भारत के सर्वोच्च पद पर जाकर भी मोदी के सामने सर झुकाए रहना उचित व्यवहार नहीं था।
धनखड़ भारत के उपराष्ट्रपति थे, भाजपा के नहीं। भाजपा के पास कोई शर्म नहीं हो सकता, पर भारत के पास तो शर्म है। इसमें कोई दो राय नहीं कि जगदीप ने भारत को शर्मसार किया। इनके इस जन्म में भी रुदन, जाने में भी रुदन। यह सब ये स्वयं कर रहे हैं। इनके ऐसे गिरकर जाने पर जग भला क्यों रोए? जगदीप के जीवन में अंधेरा ही अंधेरा! जग का बुझा हुआ यह दीप!
जब भी इनका मोदी के सामने हाथ जोड़े फोटो आया तो शर्म से सबों का सर झुक गया। यह भारत का अपमान था और जगदीप भारत के लोकतंत्र की धज्जी उड़ाते रहे। निजी जीवन में खूब बिछते मोदी के सामने, पर उपराष्ट्रपति होकर लोकतंत्र और संविधान के साथ जगदीप ने जो दुष्कर्म किया, उसे माफ नहीं किया जा सकता।
जगदीप के साथ बेअदबी, बेइज्जती सब हुई और हो रही है, इसका अफसोस किसी को नहीं है। जो भी कथित सहानुभूति कांग्रेस द्वारा दिखाई जा रही है, यह भी एक पॉलिटिक्स ही है। वैसे यही कांग्रेस कभी इसी जगदीप के खिलाफ महाभियोग ला रही थी।
यह किसी भी नेता के लिए बड़ी सीख है। इस घटना को देखकर सभी चाटुकारों को अपनी रीढ़ की हड्डी को मजबूत करना चाहिए। निज के लिए पद, पैसा और प्रतिष्ठा की चाहत कितना जरूरी और गैर जरूरी है यह आप जानें, पर संवैधानिक पद पर जाकर मर्यादा का पालन अवश्य किया जाना चाहिए।

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